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बुधवार, 31 मार्च 2021

बुंदेली लोककथा सच्ची लगन

सच्ची लगन  

बहुत पुरानी बात है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती ने श्मशानवासी शिव से शादी करने का प्रण लिया।

महामुनि नारद ने सुना तो झट से पार्वती की परीक्षा लेने के लिए चल पड़े। पर्वतराज हिमालय के दरबार में पहुँचे। पर्वतराज ने आसन से उठकर देवर्षि नारद को प्रणाम किया। आतिथ्य स्वीकार करने के पहले नारद ने राजकुमारी को आशीर्वाद देने की इच्छा व्यक्त की।

पार्वती की हस्त रेखा और मस्तक रेखाएँ देखकर नारद ने कहा कि तुम्हारे भाग्य में अखण्ड सौभाग्यवती होने का योग है और तुम्हारा सुहाग तीनों लोक में पूज्य होगा।

यह सुनकर हिमालय बहुत प्रसन्न हुए और पूछ बैठे कि ऐसा वर कहाँ मिलेगा? आप ही कुछ अता-पता बताइए।

नारद बोले मैं तो ऐसे लक्षणों से युक्त एक ही वर को जानता हूँ।

हिमालय बोले कि हे त्रिलोक में विचरण करनेवाले मुनिराज आप कृपाकर उनका नाम बताइए और उन्हें पार्वती से विवाह हेतु मनाइए।

नारद ने कहा ऐसे शुभ लक्षणों से युक्त एकमात्र वर श्री विष्णु हैं। वे मेरी बात नहीं टालेंगे। उनसे पार्वती का विवाह तय कर आता हूँ। यह कह कर नारद जाने को उद्यत हुए।

पार्वती ने यह सुना तो आपे से बाहर होकर आसमान सिर पर उठा लिया। शिव से विवाह करने का अपना दृढ़ संकल्प दोहराते हुए पार्वती ने नारद तथा विष्णु को खूब खरी-खोटी सुनाई।

नारद ने किसी बात का बुरा न मानते हुए शिव से विवाह की राह में आने आनेवाली अड़चनों और संकटों से आगाह किया। पार्वती सुनी-अनसुनी करते हुए सखी सहित जंगल में जाकर मनोकामना पूरी होने तक तपस्या करने करने चल दीं।

जंगल में पार्वती ने बारह वर्ष तक फल ग्रहण कर, फिर बारह वर्ष तक बेलपत्र खाकर तपस्या की। फिर एक माह तक धूम्रपान करने के बाद माघ माह में जल में खड़ी रहीं, फिर वैशाख मास में पंचधूनी तापी। अंत में सावन महीने में निराहार रहीं।

इस बीच पिता हिमालय अपने अनुभव क से लगातार पार्वती की खोज कराते रहे पर पता न चला। तब उन्होंने सब पर्वतों से पार्वती की खोज करने को कहा। पार्वती ने एक गुफा में बालू के शिवलिंग बनाकर निराहार रहकर अहर्निश शिव पूजन आरंभ कर दिया। इस कठिन व्रत के प्रभाव से शिव का आसन डोल गया। शिव ने पार्वती को दर्शन देकर कहा कि वे पूजन से प्रसन्न हैं। पार्वती वर माँगें।

तब पार्वती ने शिव से विवाह का वर माँगा। शिव यह वरदान देकर कैलाश पर्वत पर जा विराजे। पार्वती ने व्रत का विधिवत समापन किया। इसी समय हिमालय पार्वती को खोजते हुए पहुँचे। उन्हें मन न होते हुए भी पार्वती का हठ स्वीकार करना पड़ा। वे पार्वती को घर ले आए तथा धूमधाम से शिव के साथ विवाह करा दिया।

'हर' अर्थात शिव का पूजन 'ताल' में जल में खड़ी रहकर पूर्ण करने के कारण भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया को आज भी स्त्रियाँ निर्जला रहकर हरतालिका व्रत करती हैं। वे सोलह श्रंगार कर शाम को काली मिट्टी के शिव-पार्वती बनाकर प्रतिष्ठित कर सजाती हैं। बेलपत्र तथा फूलों से सज्जित फुलहरा शिवलिंग के ऊपर टाँगती हैं। गुझिया, पपड़िया आदि पक्वान्नों के साथ तेंदू पत्ते के दोने में मके की लाई, महुआ, गुड़ आदि (वह सब जो पार्वती ने व्रत करते समय ग्रहण की थी) रखकर शाम, अर्धरात्रि तथा अलस्सवेरे पूजन कर हाथ में अक्षत (चावल के साबित दाने) लेकर कथा सुनती हैं ताकि पार्वती की तरह वे भी अखंड सौभाग्यवती हों।

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