षट्पदी : निर्झर - नदी
निर्झर - नदी न एक से, बिलकुल भिन्न स्वभाव
इसमें चंचलता अधिक, उसमें है ठहराव
उसमें है ठहराव, तभी पूजी जाती है
चंचलता जीवन में, नए रंग लाती है
कहे 'सलिल' बहते चल, हो न किसी पर निर्भर
रुके न कविता-क्रम, नदिया हो या हो निर्झर
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