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बुधवार, 9 सितंबर 2020

मालवी सरसती वंदना

मालवी सलिला
माँ सरसती
संजीव
*
माँ सरसती! की किरपा घणी

लिखणो-पढ़णो जो सिखई री
सब बोली हुण में समई री
राखे मिठास लबालब भरी

मैया! कसी तमारी माया
नाम तमाया रहा भुलाया
सुमिरा तब जब मुस्कल पड़ी

माँ सरसती! दे मीठी बोली
ज्यूँ माखन में मिसरी घोली
सँग अक्कल की पारसमणि

मिहनत का सिखला दे मंतर
सच्चाई का दे दै तंतर
खुशियों की नी टूटै लड़ी

नादां गैरी नींद में सोयो
आँख खुली ते डर के रोयो
मन मंदिर में मूरत जड़ी
*
२०-११-२०१७
जीवन नी सौगात नखत स्वाती लई आयो
सीप सलिल दुई मिला एक मोती झट जायो
हिवड़ा नाच्यो झूम कपासी बोंड़ी फूली
आसमान से तारा उतरि धरा पर आयो

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