निमाड़ी मुक्तिका
ब्रजेश बड़ोले
*
चादर असी काईं वड़ेल छे।
माथो ढाकेल पाँय उघड़ेल छे।।1
छोरा वऊ सयर मs रमिया।
माय बाप गांव मs एकला पड़ेल छे।2
कां जाय बिचारा काकड़ छोड़ी नs।
पुरखा उनका भी तो व्हाज गड़ेल छे।3
जिनगी काटी ढूडण मs तुखs।
असी कसी कां तू दपडेल छे।।4
इनी होळई सुकी नी रहयगs ।
बजेस कs भी भांग चड़ेल छे।।5
उतरs जsव नसों ,सब फ़िको फ़िको।
बिना थारा, रंग सगळा उड़ेल छे।।6
यार दोस भी फिरी रह्यज असाज।
एक लावतो नी, दुसरा की अड़ेल छे।7
*
ब्रजेश बड़ोले
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चादर असी काईं वड़ेल छे।
माथो ढाकेल पाँय उघड़ेल छे।।1
छोरा वऊ सयर मs रमिया।
माय बाप गांव मs एकला पड़ेल छे।2
कां जाय बिचारा काकड़ छोड़ी नs।
पुरखा उनका भी तो व्हाज गड़ेल छे।3
जिनगी काटी ढूडण मs तुखs।
असी कसी कां तू दपडेल छे।।4
इनी होळई सुकी नी रहयगs ।
बजेस कs भी भांग चड़ेल छे।।5
उतरs जsव नसों ,सब फ़िको फ़िको।
बिना थारा, रंग सगळा उड़ेल छे।।6
यार दोस भी फिरी रह्यज असाज।
एक लावतो नी, दुसरा की अड़ेल छे।7
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