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रविवार, 19 जुलाई 2020

उल्लाला (चन्द्रमणि)

छंद सलिला:
उल्लाला (चन्द्रमणि)
संजीव 'सलिल'
*
उल्लाला हिंदी छंद शास्त्र का पुरातन छंद है। वीर गाथा काल में उल्लाला
तथा रोल को मिलकर छप्पय छंद की रचना की जाने से इसकी प्राचीनता प्रमाणित
है। उल्लाला छंद को स्वतंत्र रूप से कम ही रचा गया है। अधिकांशतः छप्पय
में रोला के 4 चरणों के पश्चात् उल्लाला के 2 दल (पद या पंक्ति) रचे
जाते हैं। प्राकृत पैन्गलम तथा अन्य ग्रंथों में उल्लाला का उल्लेख छप्पय
के अंतर्गत ही है।
जगन्नाथ प्रसाद 'भानु' रचित छंद प्रभाकर तथा ॐप्रकाश 'ॐकार' रचित छंद
क्षीरधि के अनुसार उल्लाल तथा उल्लाला दो अलग-अलग छंद हैं। नारायण दास
लिखित हिंदी छन्दोलक्षण में इन्हें उल्लाला के 2 रूप कहा गया है। उल्लाला
13-13 मात्राओं के 2 सम चरणों का छंद है। भानु जी ने इसका अन्य नाम
'चन्द्रमणि' बताया है। उल्लाल 15-13 मात्राओं का विषम चरणी छंद है जिसे
हेमचंद्राचार्य ने 'कर्पूर' नाम से वर्णित किया है। डॉ. पुत्तूलाल शुक्ल
इन्हें एक छंद के दो भेद मानते हैं। हम इनका अध्ययन अलग-अलग ही करेंगे।
'भानु' के अनुसार:
उल्लाला तेरा कला, दश्नंतर इक लघु भला।
सेवहु नित हरि हर चरण, गुण गण गावहु हो शरण।।
अर्थात उल्लाला में 13 कलाएं (मात्राएँ) होती हैं दस मात्राओं के अंतर पर
( अर्थात 11 वीं मात्रा) एक लघु होना अच्छा है।
दोहा के 4 विषम चरणों से उल्लाला छंद बनता है। यह 13-13 मात्राओं का सम
पाद मात्रिक छन्द है जिसके चरणान्त में यति है। सम चरणान्त में सम
तुकांतता आवश्यक है। विषम चरण के अंत में ऐसा बंधन नहीं है। शेष नियम
दोहा के समान हैं। इसका मात्रा विभाजन 8+3+2 है अंत में 1 गुरु या 2 लघु
का विधान है।
सारतः उल्लाला के लक्षण निम्न हैं-
1. 2 पदों में तेरह-तेरह मात्राओं के 4 चरण
2. सभी चरणों में ग्यारहवीं मात्रा लघु
3. चरण के अंत में यति (विराम) अर्थात सम तथा विषम चरण को एक शब्द से न जोड़ा जाए।
4. चरणान्त में एक गुरु मात्रा या दो लघु मात्राएँ हों।
5. सम चरणों (2, 4) के अंत में समान तुक हो।
6. सामान्यतः सम चरणों के अंत एक जैसी मात्रा तथा विषम चरणों के अंत में
एक सी मात्रा हो। अपवाद स्वरूप प्रथम पद के दोनों चरणों में एक जैसी तथा
दूसरे पद के दोनों चरणों में एक सी मात्राएँ देखी गयी हैं।
उदाहरण :
1.नारायण दास वैष्णव (तुक समानता: सम पद)
रे मन हरि भज विषय तजि, सजि सत संगति रैन दिनु।
काटत भव के फन्द को, और न कोऊ राम बिनु।।
2. घनानंद (तुक समानता: सम पद)
प्रेम नेम हित चतुरई, जे न बिचारतु नेकु मन।
सपनेहू न विलम्बियै, छिन तिन ढिग आनंदघन।
3. ॐ प्रकाश बरसैंया 'ॐकार' छंद क्षीरधि (तुक समानता: सम पद)
राष्ट्र हितैषी धन्य हैं, निर्वाहा औचित्य को।
नमन करूँ उनको सदा, उनके शुचि साहित्य को।।
प्रथम चरण 14 मात्राएँ,
4.जगन्नाथ प्रसाद 'भानु' छंद प्रभाकर (तुक समानता: प्रथम पद के दोनों
चरण, दूसरे पद के दोनों चरण)
काव्य कहा बिन रुचिर मति, मति सो कहा बिनही बिरति।
बिरतिउ लाल गुपाल भल, चरणनि होय जू रति अचल।।
5. रामदेव लाल विभोर, छंद विधान (तुक समानता: चारों चरण, गुरु मात्रा)
सुमति नहीं मन में रहे, कुमति सदा घर में रहे।
ऊधो-ऊधो सुगना कहे, विडंबना ममता सहे।।
6. अज्ञात कवि (प्रभात शास्त्री कृत काव्यांग कल्पद्रुम)
झगड़े झाँसे उड़ गए, अन्धकार का युग गया।
उदित भानु अब हो गए, मार्ग सभी को दिख गया।।
7. डॉ. मिर्ज़ा हसन नासिर (नासिर छन्दावली)
बुरा धर्म का हाल है, सत्य हुआ पामाल है।
सुख का पड़ा अकाल है, जीवन क्या जंजाल है।।
8. संजीव 'सलिल'
दस दिश खिली बहार है, अद्भुत रूप निखार है।
हर सुर-नर बलिहार है, प्रकृति किये सिंगार है।।
9.संजीव 'सलिल'
हिंदी की महिमा अमित, छंद-कोष है अपरिमित।
हाय! देश में उपेक्षित, राजनीति से पद-दलित।।
10. संजीव 'सलिल'
मौनी बाबा बोलिए, तनिक जुबां तो खोलिए।
शीश सिपाही का कटा, गुमसुम हो मत डोलिए।।
11. संजीव 'सलिल'
'सलिल' साधना छंद की, तनिक नहीं आसान है।
सत-शिव-सुन्दर दृष्टि ही, साधक की पहचान है।।
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३१-१-२०१३ 

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