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बुधवार, 15 अप्रैल 2020

प्यार के दोहे

प्यार के दोहे:
तन-मन हैं रथ-सारथी
संजीव 'सलिल'
*
तन-मन हैं रथ-सारथी, नहीं विरोधी जान
एक दूसरे का इन्हें, सच्चा पूरक मान
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दो पहलू हैं एक ही, सिक्के के नर-नार।
दोनों में पलता सतत, आदि काल से प्यार।।
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प्यार कभी मनुहार है, प्यार कभी तकरार।
हो तन से अभिव्यक्त या, मन से हो इज़हार।।
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बिन तन के मन का नहीं, किंचित भी आधार।
बिन मन के तन को नहीं, कर पाते स्वीकार।।
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दो अपूर्ण मिल एक हों, तब हो पाते पूर्ण।
अंतर से अंतर मिटे, हों तब ही संपूर्ण।।
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जब लेते स्वीकार तब, मिट जाता है द्वैत।
करते अंगीकार तो, स्थापित हो अद्वैत।।
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१५-४-२०१०

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