दोहा सलिला
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नर से वानर जब मिले, रावण का हो अंत
'सलिल' न दानव मारते, किन्नर सुर मुनि संत
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अक्षर की आराधना, हो जीवन का ध्येय
सत-शिव-सुन्दर हो 'सलिल', तब मानव को ज्ञेय
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सत-चित-आनंद पा सके, नर हो अगर नरेन्द्र
जीवन की जय बोलकर, होता जीव जितेंद्र
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१५-४-२०२०
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