दो दुम के दोहे
*
मन में क्या किससे कहें?, कौन सुनेगा बात?
सुनकर समझेगा 'सलिल', अब न रहे हालात
कर रहे सब मनमानी
बिखरते घर नादानी
*
देख रहे हैं तमाशा, अब अपने ही लोग.
ऋण ऋण मिल ऋण ही रहें, कैसा है दुर्योग?
रो रहा लोकतंत्र है
ठठाता कोकतंत्र है
*
जब जिसने जो कह दिया, बोला सच्ची बात
सच न कहीं है अगर तो, सच दोषी कर घात
सत्य की झूठी कसमें
निभाते खाकर रसमें
*
एक दूसरे को चलो, दें हम दोनों दोष.
मिल-जुल लूटें देश को,दिखला झूठा रोष.
लोग संतोष करेंगे
हमारा कोष भरेंगे
**
राजनीति में नीति का, कहीं न किंचित काम.
निज प्रशस्ति कर आप मुख, रहो बढ़ाते दाम.
लोग बिलखें या रोएँ
काँध पर तुमको ढोएँ
*
*
मन में क्या किससे कहें?, कौन सुनेगा बात?
सुनकर समझेगा 'सलिल', अब न रहे हालात
कर रहे सब मनमानी
बिखरते घर नादानी
*
देख रहे हैं तमाशा, अब अपने ही लोग.
ऋण ऋण मिल ऋण ही रहें, कैसा है दुर्योग?
रो रहा लोकतंत्र है
ठठाता कोकतंत्र है
*
जब जिसने जो कह दिया, बोला सच्ची बात
सच न कहीं है अगर तो, सच दोषी कर घात
सत्य की झूठी कसमें
निभाते खाकर रसमें
*
एक दूसरे को चलो, दें हम दोनों दोष.
मिल-जुल लूटें देश को,दिखला झूठा रोष.
लोग संतोष करेंगे
हमारा कोष भरेंगे
**
राजनीति में नीति का, कहीं न किंचित काम.
निज प्रशस्ति कर आप मुख, रहो बढ़ाते दाम.
लोग बिलखें या रोएँ
काँध पर तुमको ढोएँ
*
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें