कुल पेज दृश्य

शुक्रवार, 17 मई 2019

मुक्तिका

मुक्तिका 
जितने चेहरे उतने रंग 
सबकी अलग-अलग है जंग 
.
ह्रदय एक का है उदार पर 
दूजे का दिल बेहद तंग
.
तन मन से अतिशय प्रसन्न है
मन तन से है बेहद तंग
.
रंग भंग में डाल न करना
मतवाले तू रंग में भंग
.
अवगुंठन में समझदार है
नासमझों के दर्शित अंग
.
जंग लगी जिसके दिमाग में
वह नाहक ही छेड़े जंग
.
बेढंगे में छिपा हुआ है
खोज सको तो खोजो ढंग
.
नेह नर्मदा 'सलिल' स्वच्छ पर
अधिकारों की दूषित गंग
***

कोई टिप्पणी नहीं: