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शनिवार, 4 मई 2019

दोहा-द्विपदी

तेरह-ग्यारह; विषम-सम, दोहा में दुहराव. ग्यारह-तेरह सोरठा, करिए सहज निभाव.
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दोहा ने दोहा सदा, शब्द-शब्द का अर्थ.
दोहा तब ही सार्थक, शब्द न हो जब व्यर्थ.

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जिया जिया में बसा ले, दोहा छंद पुनीत. 
दोहा छंद जिया अगर, दिन दूनी हो प्रीत.
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उत्सव
एकाकी रह भीड़ का अनुभव है अग्यान।
छवि अनेक में एक की, मत देखो मतिमान।।
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दिखा एकता भीड़ में, जागे बुद्धि-विवेक।
अनुभव दे एकांत का, भीड़ अगर तुम नेक।।
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जीवन-ऊर्जा ग्यान दे, अमित आत्म-विश्वास।
ग्यान मृत्यु का निडरकर, देता आत्म-उजास।।
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शोर-भीड़ हो चतुर्दिक, या घेरे एकांत।
हर पल में उत्सव मना, सज्जन रहते शांत।।
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जीवन हो उत्सव सदा, रहे मौन या शोर।
जन्म-मृत्यु उत्सव मना, रहिए भाव-विभोर।।
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12.4.2018

आज प्रियदर्शी बना है अम्बर, शिव लपेटे हैं नाग- बाघम्बर।
नेह की भेंट आप लाई हैं- चुप उमा छोड़ सकल आडम्बर।।

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बाग़ पुष्पा है, महकती क्यारी,  गंध में गंध घुल रही न्यारी।                                                                                                            मंत्र पढ़ते हैं भ्रमर पंडित जी- तितलियाँ ला रही हैं अग्यारी।।

जो मिला उससे है संतोष नहीं छोड़ता है कुबेर कोष नहीं
नाग पी दूध ज़हर देता है यही फितरत है, कहीं दोष नहीं।।
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बोल जब भी जबान से निकले, पान ज्यों पानदान से निकले 
कान में घोल दे गुलकंद 'सलिल, ज्यों उजाला विहान से निकले
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