कुल पेज दृश्य

शुक्रवार, 23 जून 2017

mukatak

🌱 मुक्तक 🍀🌵
*************************
हम हैं धुर देहाती शहरी दंद-फंद से दूर पुलकित होते गाँव हेर नभ, ऊषा, रवि, सिंदूर कलरव-कलकल सुन कर मन में भर जाता है हर्ष किलकिल तनिक न भाती, घरवाली लगती है हूर. * तुम शहरी बंदी रहते हो घर की दीवारों में पल-पल घिरे हुए अनजाने चोरों, बटमारों में याद गाँव की छाँव कर रहे, पनघट-अमराई भी सोच परेशां रहते निश-दिन जलते अंगारों में **********************************************

कोई टिप्पणी नहीं: