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गुरुवार, 29 जून 2017

muktika

समस्यापूर्ति 
प्रदत्त पंक्ति- मैं जग को दिल के दाग दिखा दूँ कैसे - बलबीर सिंह।
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मुक्तिका:
(२२ मात्रिक महारौद्र जातीय राधिका छंद)   
मैं जग को दिल के दाग, दिखा दूँ कैसे?
अपने ही घर में आग, लगा दूँ कैसे?
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औरों को हँसकर सजा सुना सकता हूँ  
अपनों को खुद दे सजा, सजा दूँ कैसे?
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सेना को गाली बकूँ, सियासत कहकर 
निज सुत सेना में कहो, भिजा दूँ कैसे?
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तेरी खिड़की में ताक-झाँक कर खुश हूँ 
अपनी खिड़की मैं तुझे दिखा दूँ कैसे?
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 'लाइक' कर दूँ सब लिखा, जहाँ जो जिसने 
क्या-कैसे लिखना, कहाँ सिखा दूँ कैसे?
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