कुल पेज दृश्य

शनिवार, 3 जून 2017

chhand bahar 16

छंद बहर का मूल है १६
अष्ट वार्णिक अनुष्टुप जातीय छंद
चौदह मात्रिक मानव जातीय मनोरम छंद
मुक्तिका
*
सूर्य ऊगा तो सवेरा ८/१४
सूर्य डूबा तो अँधेरा
.
प्रीत की जादूगरी है
नूर ऊषा ने बिखेरा
.
नींद तू भी जाग जा रे!
मुर्ग ने दे बाँग टेरा
.
भू न जाती सासरे को
सूर्य लेता संग फेरा
.
साँझ बाँधे रोज राखी
माँग तारे टाँक धीरा
.
है निशा बाँकी सहेली
बाँध-तोड़े मोह-घेरा
.
चाँदनी-चंदा लगाए
आसमां में प्रीत डेरा
***

कोई टिप्पणी नहीं: