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सोमवार, 6 फ़रवरी 2017

das maatrik chhand

ॐ 
दस मात्रिक छंद 
१. पदादि यगण 
सुनो हे धनन्जय!
हुआ है न यह जग 
किसी का कभी भी। 
तुम्हारा, न मेरा
करो मोह क्यों तुम?
तजो मोह तत्क्षण।  
न रिश्ते, न नाते 
हमेशा सुहाते। 
उठाओ धनुष फिर 
चढ़ा तीर मारो। 
मरे हैं सभी वे 
यहाँ हैं खड़े जो 
उठो हे परन्तप!
*
२. पदादि मगण 
सूनी चौपालें 
सूना है पनघट
सूना है नुक्कड़ 
जैसे हो मरघट 
पूछें तो किससे?
बूझें तो कैसे?
बोया है जैसा 
काटेंगे वैसा 
नाते ना पाले 
चाहा है पैसा
*
३. पदादि तगण 
चाहा न सायास  
पाया अनायास 
कैसे मिले श्वास?
कैसे मिले वास?
खोया कहाँ नेह?
खोया कहाँ हास?
बाकी रहा द्वेष 
बाकी रहा त्रास 
होगा न खग्रास 
टूटी नहीं आस 
ऊगी हरी घास 
भौंरा-कली-रास
होता सुखाभास 
मौका यही ख़ास 
*
४. पदादि रगण 
वायवी सियासत 
शेष ना सिया-सत 
वायदे भुलाकर 
दे रहे नसीहत 
हो रही प्रजा की
व्यर्थ ही फजीहत 
कुद्ध हो रही है 
रोकिए न, कुदरत
फेंकिए न जुमले 
हो नहीं बगावत
भूलिए अदावत 
बेच दे अदालत 
कुश्तियाँ न असली    
 है छिपी सखावत 
*
५. पदादि जगण 
नसीब है अपना 
सलीब का मिलना
न भोर में उगना 
न साँझ में ढलना 
हमें बदलना है 
न काम का नपना  
भुला दिया जिसको 
उसे न तू जपना 
हुआ वही सूरज 
जिसे पड़ा तपना 
नहीं 'सलिल' रुकना
तुझे सदा बहना 
न स्नेह तज देना 
न द्वेष को तहना 
*
६. पदादि भगण 
बोकर काट फसल
हो  तब ख़ुशी प्रबल
भूल न जाना जड़
हो तब नयी नसल 
पैर तले चीटी 
नाहक तू न मसल 
रूप नहीं शाश्वत 
चाह न पाल, न ढल 
रूह न मरती है 
देह रही है छल 
तू न 'सलिल' रुकना 
निर्मल देह नवल 
*
७. पदादि नगण 
कलकल बहता जल 
श्रमित न आज न कल 
        रवि उगता देखे 
        दिनकर-छवि लेखे 
        दिन भर तपता है 
        हँसकर संझा ढल
        रहता है अविचल 
रहता चुप अविकल
कलकल बहता जल
        नभचर नित गाते 
        तनिक न अलसाते 
        चुगकर जो लाते
        सुत-सुता-खिलाते
        कल क्या? कब सोचें?
        कलरव कर हर पल 
कलरव सुन हर पल  
कलकल बहता जल 
        नर न कभी रुकता 
        कह न सही झुकता
        निज मन को ठगता 
        विवश अंत-चुकता 
        समय सदय हो तो 
        समझ रहा निज बल 
समझ रहा निर्बल 
कलकल बहता जल
*
८. पदादि सगण    
चल पंछी उड़ जा 
        जब आये तूफां 
        जब पानी बरसे 
        मत नादानी कर  
मत यूँ तू अड़ जा    
        पहचाने अवसर  
        फिर जाने क्षमता  
        जिद ठाने क्यों तू?  
झट पीछे मुड़ जा 
        तज दे मत धीरज 
        निकलेगा सूरज 
        वरने निज मंजिल 
चटपट हँस बढ़ जा 
***
संपर्क - ९४२५१८३२४४ / salil.sanjiv@gmail.com 


 

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