छंद बहर का मूल है
एक मुक्तिका
[चौदह मात्रिक मानव जातीय, मनोरम छंद, पदादि गुरु, पदांत यगण
मापनी २१२२ २१२२, बहर फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन]
*
ज़िन्दगी ने जो दिया है
बन्दगी से ही लिया है
.
सूर्य-ऊषा हैं सिपाही
युद्ध किरणों ने किया है
.
आदमी बेटा पिलाता
स्वेद भू माँ ने पिया है
.
मौत से जो प्रेम पाले
वो मरा तो भी जिया है
.
वक़्त कैसा क्या बताएँ?
होंठ ने खुद को सिया है
***
Sanjiv verma 'Salil', 94251 83244
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in
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