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गुरुवार, 14 जून 2012

हिंदी में संयुक्त अक्षरों की मात्रा गणना -डॉ. प्राची सिंह

हिंदी में संयुक्त अक्षरों की मात्रा गणना       

(आदरणीय संजीव वर्मा 'सलिल' जी से वार्तालाप के आधार पर ) 

            डॉ. प्राची सिंह


संयुक्त अक्षरों की मात्रा गणना:
(आदरणीय संजीव वर्मा 'सलिल' जी से वार्तालाप के आधार पर )
•जब दो अक्षर मिलकर संयुक्त अक्षर बनाते हैं तो जिस अक्षर की आधी ध्वनि होती है उसकी गणना पूर्व अक्षर के साथ होती है.
यथा:अर्ध = (अ + आधा र) + ध = २ + १ = ३
मार्ग = (मा + आधा र) + ग = २ + १ = ३
दर्शन = (द + आधा र) + श + न = २ + १ + १ = ४
•आधे अक्षर के पहले दीर्घ या बड़ा अक्षर हो तो आधा अक्षर उसके साथ मिलकर उच्चरित होता है इसलिए मात्रा २ ही रहती हैं. ढाई या तीन मात्रा नहीं हो सकती.
क्ष = आधा क + श
कक्षा = (क + आधा क) + शा = २ + २ = ४
क्षत = (आधा क + श ) + त = १ + १ = २
विक्षत = ( वि + आधा क ) + श + त = २ +१+१ = ४
ज्ञ = आधा ग + य
विज्ञ = (वि + आधा ग) + य = २ + १ = ३
ज्ञान की मात्रा ३ होगी, पर विज्ञान की मात्रा ५ होगी
त्र में त तथा र का उच्चारण एक साथ होता है अतः त्र की मात्रा २ होगी
पत्र = १ + २ = ३
पात्र = २ + २ = ४
•संयुक्त अक्षर यदि प्रथम हो तो अर्ध अक्षर की गणना नहीं होती
प्रचुर १+१+१ = ३
त्रस्त = २ + १ = ३
क्षत = (आधा क + श ) + त = १ + १ = २
•जिन्हें तथा उन्हीं की मात्रा गणना किस प्रकार होगी ?
जिन्हें तथा उन्हीं को जोर से बोलिए अप पहले जि फिर न्हें तथा उ फिर न्हीं बोलेंगी. इसी अधार पर गिनिए. मात्रा गणना के नियन ध्वनि विज्ञान अर्थात उच्चारण के अधार पर ही बने हैं.
उन्हीं = उ + (आधा न + हीं) = १ + २ = ३
जिन्हें = जि + (आधा न + हें) = १ + २ = ३
इन्हें यदि ४-४ गिनेंगे तो भ्रम होगा.
•मात्रा गणना बिलकुल आसान है . शब्द को जोर से बोलिए... उच्चारण में लगने वाले समय का ध्यान रखें. कम समय लघु मात्रा १, अधिक समय दीर्घ मात्रा २ . कुल इतना है... शेष अभ्यास...
बोलकर अंतर समझें कन्या, हंस आदि में ‘न’ का उच्चारण क्रमशः ‘क’ व ‘ह’ के साथ है. कन्हैया में ‘न’ का उच्चारण ‘है’ के साथ है क + न्है + या
कन्या = (क + आधा न) + या = २ + २ = ४
हंस = (ह + आधा न) + स = २ + १ = ३
कन्हैया = क + न्है + या = १ + २ + २ = ५

28 टिप्‍पणियां:

tilak raj kapoor ने कहा…

Tilak Raj Kapoor

मुख्‍य बात यह है कि ''मात्रा गणना के नियन ध्वनि विज्ञान अर्थात उच्चारण के अधार पर ही बने हैं'' अत: उच्‍चारित कर ही वज़्न निकालना चाहिये विशेषकर जहॉं भ्रम हो। उदाहरणस्‍वरूप 'कसक' में यह भ्रम हो सकता है कि यह 111 है या 21 या 12; लेकिन उच्‍चरित कर देखें 'क' और 'सक' अलग अलग उच्‍चरित होते हैं अत: इसका वज़्न 12 हुआ।

त्रस्त त्‍रस्‍त में स्‍त एक साथ रहेंगे इसलिये इसका वज़्न 11 रहेगा।

कहीं कहीं आपने 3 और 4 वज़्न लिखे हैं जबकि यह मात्रिक योग तो माना जा सकता है लेकिन वज़्न नहीं। वज़्न लघु या दीर्घ ही होता है।

dr, prachi singh ने कहा…

Dr.Prachi Singh

आदरणीय तिलक राज कपूर जी,
उपरोक्त आलेख में, मात्रा गणना मात्रिक योग के आधार पर की गयी है, जैसा की दोहा, रोला, कुण्डली इत्यादि के लिए की जाती है..

अगर कहीं कोई भी संदेहास्पद स्थिति है, तो कृपया इंगित करें व संशोधित कर हमें त्रुटिहीन छंद रचना के लिए मार्गदर्शन अवश्य दें..

आप हार्दिक आभार.

tolak rah kapoor ने कहा…

Tilak Raj Kapoor

उचित रहेगा कि गणना मार्गदर्शन लघु दीर्घ तक ही सीमित रखें। कुल मात्रिक योग तो सभी कर ही लेंगे।

आपने इतना अच्‍छा लख लिखा उसमें लघु दीर्घ से आगे जाने पर भ्रम पैछा हो कता है।

saurabh pandey ने कहा…

Saurabh Pandey

आदरणीय सलिल जी द्वारा आपकी हुई वार्ता के बाद बहुत कुछ स्पष्ट हो कर सामने आया है. अच्छा हुआ, आपने सबके साथ साझा भी कर लिया.

विश्वास है, प्रस्तुत लेख व्यक्तिगत समझ के साथ-साथ सभी जिज्ञासु पाठकों की समझ को आवश्यक विस्तार देगा. बस इन्हीं गणना पर संयत रहें.

सोदाहरण लेख के लिये आपका, डा. प्राची, हार्दिक धन्यवाद.

वस्तुतः, ’क्षत-विक्षत’ से समझ आया कि इस गहन वार्तालाप का मूल क्या है.

tilak raj kapoor ने कहा…

Tilak Raj Kapoor

आपने एक उदाहरण लिया हंस या ह न्‍ स का 2 1 के रूप में। यह एक अच्‍छा उदाहरण है यह स्पष्ट करने के लिये चंद्रबिन्दु की गणना नहीं होती, यानि हँस का मात्रिक वज़्न 2 ही होगा जबकि हंस का 2 1।

इसी प्रकार कृपण में कृ 1 पण 2 होगा।

विवरण में ऐसे ही अन्य रूप और सम्मिलित हो जायें तो उचित रहेगा। जैसे क्‍ र मिलकर क्र होगा क र् मिलकर क्‍या होगा इसे देखने के लिये आगे एक अक्षर और लेना होगा जैसे कि क र् त व्‍ य का सामान्‍य गणनानुसार वज़्न होगा कर्तव्य या 221 लेकिन कर्तव्‍य को कर्त व्‍य पढ़ा जाता है तो वज़्न रहेगा 211। अत: यह ध्‍शन रखना आवश्‍यक होगा कि सही उच्‍चारण करने पर ही सही मात्रिक क्रम प्राप्‍त होगा अन्यथा त्रुटि हो सकती है।

मेरा भाषा ज्ञान सीमित है इसलिये अपेक्षा है कि विद्वजन इसे और स्‍पष्‍ट करेंगे।

vindheshvari prasad tripahi ने कहा…

विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी

आदरणीय तिलक सर!
सादर नमन
मेरे मतानुसार-
कर्तव्य की मात्रा गणना दोनों ही स्थितियों में 221 होगी,211 नहीं;यदि आपने पूर्व में व् का भार 'त' पर माना है तो क्योंकि कर्त व्य अलग करने पर भी व् का मात्रा भार 'त' पर ही पड़ेगा।हालांकि उच्चारण में व् का भार त पर नहीं पड़ रहा हैं।अत: मात्रा गणना 211 सही होगा।

tilak raj kapoor ने कहा…

Tilak Raj Kapoor

सहमत हूँ। भार किस पर आ रहा है यह कैसे देखेंगे; उच्‍चारण से या लेखन से। मैं जो बिन्दु रखना चाह रहा हूँ वह यह है कि सही गणना हम तब ही कर सकते हैं जब हमारा उच्चारण शुद्ध हो।

प्राची जी ने एक अच्‍छा लेख प्रस्‍तुत किया है और इसे विस्‍तृत चर्चा से आगे बढ़ाने में सब ही (सभी) का सक्रिय योगदान प्राप्‍त हो तो इस विषय पर पूर्णता प्राप्‍त हो सकती है।

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Permalink Reply by Saurabh Pandey yesterday
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//सही गणना हम तब ही कर सकते हैं जब हमारा उच्चारण शुद्ध हो//

उच्चारण शुद्धता ही तो कसौटी है, फिर तो सारी मात्राएँ स्वतः गणना में आ जाती हैं. संस्कृत पाठों के शब्दों का उच्चारण कितना सधा हुआ होता है यह अब कहने की बात नहीं है. संस्कृत इसलिये कि हिन्दी भाषा की क्सौटी संस्कृत के आधार पर साधी जा सकती है. हिन्दी लिपि (देवनागरी) में वही लिखा जाता है जो हम उच्चारित करते हैं या जो उच्चारित होता है वही लिखा जाता है. किन्तु, शुद्ध उच्चारण ही सबसे बड़ी समस्या है. मूल रूप से स्कूल को इस्कूल या सकूल और ऐसे कई-कई उदाहरण हैं, कहने की आदत किस तरह से मात्राओं की गणना करेगी? अन्य व्याकरण जन्य दोष अलग तरह की समस्याएँ हैं.

उपरोक्त लेख में सारा कुछ सही है. सतत प्रयास आगे स्वयमेव गणना के प्रति अभ्यस्त कर देता है.

sanjiv salil ने कहा…

sanjiv verma 'salil'

प्राची जी
आपका आभार. संभवतः निम्न से शंका-समाधान हो सकेगा-
अस्त + त = २ + १ = ३
ट्रस्ट = त्रस्त = २ + १ = ३
हंस = (ह + आधा न) + स = २ + १ = ३
निम्न = २ + १ = ३
लोक भाषाओँ और विविध अंचलों में उच्चारण के तरीके भिन्न होने से भ्रम होता है. खड़ी हिंदी संस्कृत के सर्वाधिक निकट है.
हँस = १ + १ = २
कृपया = १ + १ + २ = ४
क्रिया = १ + २ = ३
वृष्टि = २ + २ = ४
व्रत = १ + १ = २
वक्र = १ + २ = ३
शुक्र = १ + २ = ३
कृपण = १ + १ + १ = ३
अकृपण = १ + १ + १ + १ = ४
कर्तव्य = २ + २ + १ = ५
श्रुति = २
श्रव्य = २ + १ = ३

- akpathak317@yahoo.co.in ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति....बधाई

संजीव = सन्+ जी+व =2+2+1=5

साथ ही

हंस= 2+1 =3
हँस= 1+1 =2

चन्द्र् विन्दु की गणना नहीं होगी

उर्दू में भी ऐसी ही गणना होती है और उसे ’वज़न’ कहते हैं और वो ’मल्फ़ूज़ी’ (यानी तल्फ़्फ़ुज़=उच्चारण के आधार पर होती है
दो-हर्फ़ी कलमा को ’सबब’ और 3- हर्फ़ी कलमा को ’वतद’ और 4-हर्फ़ी कलमा को फ़ासिला’ कहते हैं
सादर

आनन्द पाठक,जयपुर
my blog for GEET-GAZAL-GEETIKA http://akpathak3107.blogspot.com

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my blog for URDU SE HINDI http://urdu-se-hindi.blogspot.com
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Email akpathak3107@gmail.com

dr. deepti gupta ने कहा…

साधुवाद, संजीव जी और प्राची जी !

बहुत ही सुलझे हुए और स्पष्ट ढंग से गणना सिखाई है !

बहुत पसंद आया गणना का पाठ !

अक्षर = अ+क् + श + र = २+ १+ १ = ४
दीप्ति = दी +प् + ति = २ + १ = ३
प्राची = प्रा + ची = २ +२ = ४
संजीव = सं + जी + व = १ + २ + १ = ४
सलिल = स + लि + ल = १ + १ + १ = ३

हमने क्या उपर्युक्त गणनाएं ठीक की ?

सादर,
छात्रा दीप्ति

- pindira77@yahoo.co.in ने कहा…

आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी ,

संयुक्त अक्षरों का ज्ञानवर्धन आपनें बहुत ही अच्छी तरह किया है | काव्य लेखन के लिए यह बहुत आवश्यक भी है | इसके लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद |आशा है आप मेरी एक शंका का समाधान करके मुझे उपकृत करेंगी | मझे कुछ ऐसा याद है कि ‘क्ष’ संयुक्त अक्षर में क् और मूर्धन्य ष का योग है न कि तालव्य श का , कृपया उचित मार्ग दर्शन कर मुझे कृतार्थ करें |आपसे अनुरोध है कि मेरी इस जिज्ञासा को आप अन्यथा नहीं लेंगी | क्षमा माँगते हुए आपकी इन्दिरा |

- kanuvankoti@yahoo.com ने कहा…

आदरणीया दीप्ति जी,

क्या अनुस्वार और हर वर्ग के अंत में आने वाला पंचम वर्ण एक ही होता है या अलग ? मेरे संदेह का निवारण करेगी तो आभारी होऊंगा .
सादर,
कनु

sn Sharma ✆ ahutee@gmail.com ने कहा…

sn Sharma ✆ ahutee@gmail.com द्वारा yahoogroups.com vicharvimarsh


दीप्ति जी,
संजीव में पांच मात्राए हैं चार नहीं -
सं - २, जी -२ , व -१ = ५
दादा

deepti gupta ✆ ने कहा…

drdeepti25@yahoo.co.in द्वारा yahoogroups.com vicharvimarsh


आदरणीय कनु जी,

अनुनासिक : कवर्ग , चवर्ग आदि के अंतिम पंचम वर्ण 'अनुनासिक' कहलाते हैं , जिनमें में ध्वनि मुख के साथ साथ नासिका से भी निकलती है Nasal Sound के कारण ही ये अंतिम पाँच व्यंजन अनुनासिक कहलाते हैं !


(क वर्ग ) क , ख ,ग ,घ, ड.
(च वर्ग ) च , छ, ज ,झ, ञ
(ट वर्ग ) ट , ठ , ड , ढ, ण
(त वर्ग) त ,थ , द, ध, न
(प वर्ग ) प , फ ,ब , भ, म
य, र, ल, व
श, ष, स, ह

अनुस्वार : स्वर के बाद बोला जाने वाला हलंत अनुनासिक वर्ण अनुस्वार कहलाता है ! इसका चिन्ह . होता है !

अब आप कोई भी अनुस्वार लगा शब्द देखें.....जैसे ..गंगा , कंबल , झंडा , मंजूषा, धंधा
यहाँ अनुस्वार को वर्ण में बदलने का नियम है कि जिस अक्षर के ऊपर अनुस्वार लगा है उससे अगला अक्षर देखें ! जैसे कंबल –
यहाँ अनुस्वार के बाद ब अक्षर है जो 'प वर्ग' का है ..ब वर्ग का पंचमाक्षर म है इसलिए ये अनुस्वार म वर्ण में बदला जाता है
संबल - सम्बल
झंडा - झण्डा
मंजूषा - मञ्जूषा
मंद - मन्द
छंद - छन्द
संजय - सञ्जय (उवाच - गीता)

ध्यान देने योग्य बात ----
१ अनुस्वार के बाद यदि अन्तस्थ - य, र, ल, व
ऊष्म - श, ष, स, ह वर्ण आते हैं' तो अनुस्वार को बिंदु के रूप में ही प्रयोग किया जाता है .. तब उसे किसी वर्ण में नहीं बदला जाता...जैसे संयम ...यहाँ अनुस्वार के बाद य अक्षर है, यहाँ बिंदु ही लगेगा.
संलाप ,

- kanuvankoti@yahoo.com ने कहा…

आदरणीय संजीव जी, दीप्ति जी,

मैंने बहुत पहले पढ़ा था कि संस्कृत में कुछ वर्णों को 'अच् ' और 'हल् ' भी कहा जाता है. ये क्या कवर्ग आदि से अलग वर्ण होते हैं ?

कुछ याद नहीं आ रहा. भाषा की उस धुंधली स्मृति को मैं फिर से जीवित करना चाहता हूँ. संस्कृत वाकई एक वैज्ञानिक भाषा है जिनसे अन्य भाषाओं को, खासतौर से हिन्दी को बहुत अवदान दिया.

प्लीज़ मुझे बताएं 'अच् ' और 'हल् ' के बारे मैं ,
सादर,
कनु

deepti gupta ✆ ने कहा…

drdeepti25@yahoo.co.in द्वारा yahoogroups.com 9:12 pm (1 घंटे पहले)

vicharvimarsh


आदरणीय कनु जी,

आपने बड़ा कठिन सवाल किया है ! वो तो इत्तेफाक है कि हमें इंटर, बी.ए. में पढ़ी व्याकरण थोड़ी बहुत - टूटी-फूटी सी याद है !
अगर आपको 'अच्' और ' हल्' कुछ -कुछ याद हैं तो १४ माहेश्वर सूत्र भी कुछ तो याद आएगें ! जिन पर पाणिनि अष्टाध्यायी आधारित है !

१४ माहेश्वर सूत्रों में से १ से ४ सूत्र के अंदर सारे स्वर हैं ! अ, आ इ, ई आदि !
१) इसलिए स्वरों का दूसरा नाम अच् है क्योंकि पाणिनि के क्रमानुसार स्वरवाची प्रत्याहार सूत्र सब १ से ४ इसके अंतर्गत आ जाते हैं ! प्रथम सूत्र का प्रथम अक्षर अ और चतुर्थ सूत्र का अंतिम अक्षर च् !


१४ माहेश्वर सूत्रों के ५ से १४ सूत्रों में सारे व्यंजन हैं ! क, ख, ग से लेकर श, ष, स, ह तक !
२) इसलिए व्यंजनों का दूसरा नाम हल् है , क्योंकि व्यंजनवाची प्रत्याहार सूत्र सब ५ से १४ तक इसके अंतर्गत आ जाते हैं ! इन हल् व्यंजनों के स्वर विहीन शुद्ध रूप को प्रकट करने के लिए इनके नीचे रेखा लगा देते हैं जिसे हल् चिन्ह कहते है !

शेष संजीव जी पुष्टि कर लें तो बेहतर होगा !
सादर,
दीप्ति

अभी भी कोई शंका हो तो नि:संकोच पूछिए, आचार्य संजीव और हम बताने की कोशिश करेगें ! ऎसी चर्चाओं का स्वागत है ! खूब कीजिए !

- pindira77@yahoo.co.in ने कहा…

प्रिय दीप्ति जी ,

अच् और हल् में डूबा कुनबा सारा .

अरे दीप्ति जी ! आपने ये क्या कर डाला |

रातों को नींद न दिन को आराम ,

लो हमनें सारा व्याकरण उलट डाला |

मिला नहीं चैन तो विशेषज्ञों को पुकारा |

अब समझ आया डमरू का ज्ञान सारा |

जय शिव शंकर , जय शिव शंकर ,

भला हो हमारा,बहती रहे गंगा यूँही

मिले जल उसमें तुम्हारा काव्यधारा | इन्दिरा

- shishirsarabhai@yahoo.com ने कहा…

- shishirsarabhai@yahoo.com

वाह..वाह ....इंदिरा जी, क्या सुन्दर काव्य आपने रच डाला ......दीप्ति जी बनी प्रेरणा ....

भला हो हमारा,बहती रहे गंगा यूँही
मिले जल उसमें तुम्हारा काव्यधारा |.............................ये हुई न बात ! काव्यधारा में यूं ही पारस्परिक स्नेह की , एक दूसरे से सीखने -सिखाने की, पावन संस्कृत की, उससे जन्मी हिन्दी की, बहती रहे पवित्र ज्ञान की गंगा.........प्रखरता से, तेजस्विता से तरगें उठाती रहें दीप्ती जी, इंदिरा जी और संजीव जी के छंदों पे गुंजित हो काव्य संगीत...

शिशिर

- kanuvankoti@yahoo.com ने कहा…

आदरणीय इंदिरा जी,

आपने बड़ी ही प्यारी कविता लिखी है

दीप्ति जी ने तो मेरी स्मृति का धुंधलका खत्म कर डाला,
शिव के चौदह माहेश्वर सूत्रों का ज्ञान मंच पे उड़ेल डाला

जय गंगा, शरद जीवेत काव्यधारा........!

सादर,
कनु

Saurabh Pandey ने कहा…

Saurabh Pandey

//सही गणना हम तब ही कर सकते हैं जब हमारा उच्चारण शुद्ध हो//

उच्चारण शुद्धता ही तो कसौटी है, फिर तो सारी मात्राएँ स्वतः गणना में आ जाती हैं.संस्कृत पाठों के शब्दों का उच्चारण कितना सधा हुआ होता है यह अब कहने की बात नहीं है. संस्कृत इसलिये कि हिन्दी भाषा की क्सौटी संस्कृत के आधार पर साधी जा सकती है. हिन्दी लिपि (देवनागरी) में वही लिखा जाता है जो हम उच्चारित करते हैं या जो उच्चारित होता है वही लिखा जाता है. किन्तु, शुद्ध उच्चारण ही सबसे बड़ी समस्या है. मूल रूप से स्कूल को इस्कूल या सकूल और ऐसे कई-कई उदाहरण हैं, कहने की आदत किस तरह से मात्राओं की गणना करेगी? अन्य व्याकरण जन्य दोष अलग तरह की समस्याएँ हैं.

उपरोक्त लेख में सारा कुछ सही है. सतत प्रयास आगे स्वयमेव गणना के प्रति अभ्यस्त कर देता है.

Tilak Raj Kapoor ने कहा…

सहमत हूँ। भार किस पर आ रहा है यह कैसे देखेंगे; उच्‍चारण से या लेखन से। मैं जो बिन्दु रखना चाह रहा हूँ वह यह है कि सही गणना हम तब ही कर सकते हैं जब हमारा उच्चारण शुद्ध हो।

प्राची जी ने एक अच्‍छा लेख प्रस्‍तुत किया है और इसे विस्‍तृत चर्चा से आगे बढ़ाने में सब ही (सभी) का सक्रिय योगदान प्राप्‍त हो तो इस विषय पर पूर्णता प्राप्‍त हो सकती है।

विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी ने कहा…

विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी
आदरणीय तिलक सर! सादर नमन
मेरे मतानुसार-
कर्तव्य की मात्रा गणना दोनों ही स्थितियों में 221 होगी,211 नहीं;यदि आपने पूर्व में व् का भार 'त' पर माना है तो क्योंकि कर्त व्य अलग करने पर भी व् का मात्रा भार 'त' पर ही पड़ेगा।हालांकि उच्चारण में व् का भार त पर नहीं पड़ रहा हैं।अत: मात्रा गणना 211 सही होगा।

Tilak Raj Kapoor ने कहा…

Tilak Raj Kapoor

आपने एक उदाहरण लिया हंस या ह न्‍ स का 2 1 के रूप में। यह एक अच्‍छा उदाहरण है यह स्पष्ट करने के लिये चंद्रबिन्दु की गणना नहीं होती, यानि हँस का मात्रिक वज़्न 2 ही होगा जबकि हंस का 2 1।

इसी प्रकार कृपण में कृ 1 पण 2 होगा।

विवरण में ऐसे ही अन्य रूप और सम्मिलित हो जायें तो उचित रहेगा। जैसे क्‍ र मिलकर क्र होगा क र् मिलकर क्‍या होगा इसे देखने के लिये आगे एक अक्षर और लेना होगा जैसे कि क र् त व्‍ य का सामान्‍य गणनानुसार वज़्न होगा कर्तव्य या 221 लेकिन कर्तव्‍य को कर्त व्‍य पढ़ा जाता है तो वज़्न रहेगा 211। अत: यह ध्‍शन रखना आवश्‍यक होगा कि सही उच्‍चारण करने पर ही सही मात्रिक क्रम प्राप्‍त होगा अन्यथा त्रुटि हो सकती है।

मेरा भाषा ज्ञान सीमित है इसलिये अपेक्षा है कि विद्वजन इसे और स्‍पष्‍ट करेंगे।

विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी ने कहा…

विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी
आदरणीय तिलक सर! सादर नमन
मेरे मतानुसार-
कर्तव्य की मात्रा गणना दोनों ही स्थितियों में 221 होगी,211 नहीं;यदि आपने पूर्व में व् का भार 'त' पर माना है तो क्योंकि कर्त व्य अलग करने पर भी व् का मात्रा भार 'त' पर ही पड़ेगा।हालांकि उच्चारण में व् का भार त पर नहीं पड़ रहा हैं।अत: मात्रा गणना 211 सही होगा।

Tilak Raj Kapoor ने कहा…

Tilak Raj Kapoor

सहमत हूँ। भार किस पर आ रहा है यह कैसे देखेंगे; उच्‍चारण से या लेखन से। मैं जो बिन्दु रखना चाह रहा हूँ वह यह है कि सही गणना हम तब ही कर सकते हैं जब हमारा उच्चारण शुद्ध हो।

प्राची जी ने एक अच्‍छा लेख प्रस्‍तुत किया है और इसे विस्‍तृत चर्चा से आगे बढ़ाने में सब ही (सभी) का सक्रिय योगदान प्राप्‍त हो तो इस विषय पर पूर्णता प्राप्‍त हो सकती है।

Saurabh Pandey ने कहा…

Saurabh Pandey

//सही गणना हम तब ही कर सकते हैं जब हमारा उच्चारण शुद्ध हो//

उच्चारण शुद्धता ही तो कसौटी है, फिर तो सारी मात्राएँ स्वतः गणना में आ जाती हैं. संस्कृत पाठों के शब्दों का उच्चारण कितना सधा हुआ होता है यह अब कहने की बात नहीं है. संस्कृत इसलिये कि हिन्दी भाषा की क्सौटी संस्कृत के आधार पर साधी जा सकती है. हिन्दी लिपि (देवनागरी) में वही लिखा जाता है जो हम उच्चारित करते हैं या जो उच्चारित होता है वही लिखा जाता है. किन्तु, शुद्ध उच्चारण ही सबसे बड़ी समस्या है. मूल रूप से स्कूल को इस्कूल या सकूल और ऐसे कई-कई उदाहरण हैं, कहने की आदत किस तरह से मात्राओं की गणना करेगी? अन्य व्याकरण जन्य दोष अलग तरह की समस्याएँ हैं.

उपरोक्त लेख में सारा कुछ सही है. सतत प्रयास आगे स्वयमेव गणना के प्रति अभ्यस्त कर देता है.

Tilak Raj Kapoor ने कहा…

Tilak Raj Kapoor

आदरणीय सलिल जी
मेरा मानना है कि:
वृष्टि = २ + २ = ४ न होकर २+१ = ३ होना चाहिये
वक्र = १ + २ = ३ न होकर २+१ = ३ होना चाहिये
शुक्र = १ + २ = ३ न होकर २+१ = ३ होना चाहिये
शंका समाधान प्रार्थित है।

Saurabh Pandey ने कहा…

Saurabh Pandey

आचार्यवर की गणना प्रक्रिया से मैं पूरी तरह से संतुष्ट हूँ. इसके साथही, तिलकराजजी द्वारा इंगित शब्दों की मात्राओं पर मैं तिलकराजजी का अनुमोदन करता हूँ. लगता है उक्त शब्दों की मात्राओं की गणना में अनजाने में भूल हो गयी है. या, कुछ और तथ्य हों तो आचार्यवर कृपया साझा करेंगे.

सादर