क्षणिका:
कविता कैसे बनती है
अर्चना मलैया
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भावना के सागर पर
वेदना की किरण पड़ती है
भावों की भाप
मानस पर जमती है.
धीरे धीरे भाप
मेघ में बदलती है .
मेघ फटते है ,
बरसात होती है,
ये नन्ही-नन्ही बूँदें
कविता होती हैं.
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
1 टिप्पणी:
अर्चना जी
अंतरजाल पर प्रथम रचना प्रकाशन हेतु बधाई.
आपकी क्षणिका गागर में सागर है.
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