रचना-प्रति रचना :
...लिखूँगा
मुकेश श्रीवास्तव-संजीव 'सलिल'
*
*
अपनी भी इक दिन कहानी लिखूंगा
टीस है कितनी पुरानी - लिखूंगा
तफसील से तुम्हारी अदाएं याद हैं
ली तुमने कब कब अंगड़ाई - लिखूंगा
साए में तुम्हारे गुज़ारे हैं तमाम दिन
ज़ुल्फ़ हैं तुम्हारी - अमराई लिखूंगा
तपते दिनों में ठंडा ठंडा सा एहसास
है रूह तुम्हारी रूहानी - लिखूंगा
छेड़ छेड़ डालती रही मुहब्बत के रंग
है आँचल तुम्हारा - फगुनाई लिखूगा
तुलसी का बिरवा, मुहब्बत की बेल
स्वर्ग सा तुम्हारा - अंगनाई लिखूंगा
टीस है कितनी पुरानी - लिखूंगा
तफसील से तुम्हारी अदाएं याद हैं
ली तुमने कब कब अंगड़ाई - लिखूंगा
साए में तुम्हारे गुज़ारे हैं तमाम दिन
ज़ुल्फ़ हैं तुम्हारी - अमराई लिखूंगा
तपते दिनों में ठंडा ठंडा सा एहसास
है रूह तुम्हारी रूहानी - लिखूंगा
छेड़ छेड़ डालती रही मुहब्बत के रंग
है आँचल तुम्हारा - फगुनाई लिखूगा
तुलसी का बिरवा, मुहब्बत की बेल
स्वर्ग सा तुम्हारा - अंगनाई लिखूंगा
***
मुकेश जी आपकी कहानी तो आपकी हर रचना में पढ़ कर हम आनंदित होते ही हैं. इस सरस रचना हेतु बधाई. आपको समर्पित कुछ पंक्तियाँ-
मुक्तिका:
लिखूँगा...
संजीव 'सलिल'
*
कही-अनकही हर कहानी लिखूँगा.
बुढ़ाती नहीं वह जवानी लिखूँगा..
उफ़ न करूँगा, मिलें दर्द कितने-
दुनिया है अनुपम सुहानी लिखूँगा..
भले जग बताये कि नातिन है बच्ची
मैं नातिन को नानी की नानी लिखूँगा..
रही होगी नादां कभी मेरी बेटी.
बिटिया है मेरी सयानी लिखूँगा..
फ़िदा है नयेपन पे सारा जमाना.
मैं बेहतर विरासत पुरानी लिखूँगा..
राइम सुनाते हैं बच्चे- सुनायें.
मैं साखी, कबीरा, या बानी लिखूँगा..
गिरा हूँ, उठा हूँ, सम्हल कर बढ़ा हूँ.
'सलिल' हूँ लहर की रवानी लिखूँगा..
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
मुक्तिका:
लिखूँगा...
संजीव 'सलिल'
*
कही-अनकही हर कहानी लिखूँगा.
बुढ़ाती नहीं वह जवानी लिखूँगा..
उफ़ न करूँगा, मिलें दर्द कितने-
दुनिया है अनुपम सुहानी लिखूँगा..
भले जग बताये कि नातिन है बच्ची
मैं नातिन को नानी की नानी लिखूँगा..
रही होगी नादां कभी मेरी बेटी.
बिटिया है मेरी सयानी लिखूँगा..
फ़िदा है नयेपन पे सारा जमाना.
मैं बेहतर विरासत पुरानी लिखूँगा..
राइम सुनाते हैं बच्चे- सुनायें.
मैं साखी, कबीरा, या बानी लिखूँगा..
गिरा हूँ, उठा हूँ, सम्हल कर बढ़ा हूँ.
'सलिल' हूँ लहर की रवानी लिखूँगा..
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
3 टिप्पणियां:
pranavabharti@gmail.com द्वारा yahoogroups.com kavyadhara
आ.मुकेश जी!
बहुत सुहाने अहसासों की माला बनाई है आपने......
आ सलिल जी ने उसमें चार चाँद लगा दिए हैं.......
आप दोनों को बहुत २ बधाई.....
कबीर की बानी लिखूंगा........
नातिन को नानी की नानी लिखूंगा.......
वाह.......प्रणाम
सभी पीड़ा तजकर हंसूं ,मुस्कुराऊं ,
मैं जीवन की ऐसी रवानी लिखूंगा ....|
सादर
प्रणव भारती
Lalit Walia
आ. संजीव 'सलिल' जी...
मुकेश जी के अश'आर पर खूब प्रतिक्रिया दी है..., दोनों को ढेर सारी दाद क़ुबूल हो..|
क्षमा के साथ, दूसरे शे'र में शब्दों को यूं कर दिया है..., ज़रा ग़ौर फरमाएं,
मैं उफ़ ना करूंगा मिलें दर्द कितने
है दुनिया ये अनुपम सुहानी, लिखूंगा |
संजीव जी , मुकेश जी,
दोनों की कला को और कलम को नमन !
सादर एवं सस्नेह
कनु
इस मंच पर सौहार्द बहुत ज़बरदस्त पसरा हुआ है. एक परिवार का सा माहौल हुई, सब परस्पर बड़े प्रेम भाव से बने हुए है, यह बात मुझे बहुत सुकून देती है.
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