दोहा गीत:
दुनिया का व्यापार...
संजीव 'सलिल
*

*
मौन मौलश्री देखता,
दुनिया का व्यापार.
बनो मौन साधक सुने.
जग जिसके उद्गार...
*

'तत-त्वं-असि' समझा-दिखा,
दर्पण में प्रतिबिम्ब.
सच मानो हैं एक ही,
पंछी-कोटर-डिंब.
श्वास-श्वास लो इस तरह
हो जीवन श्रृंगार.
बनो मौन साधक सुने.
जग जिसके उद्गार...
*

'सत-शिव-सुंदर' है वही,
जो 'सत-चित-आनंद'.
ध्वनि-अक्षर के मिलन से,
गुंजित हैं लय-छंद.
आस-आस मधुमास हो.
पल-पल हो त्यौहार.
बनो मौन साधक सुने.
जग जिसके उद्गार...
*

खोया-पाया समय की,
चक्की के दो पाट.
काया-छाया में उलझ,
खड़ी हो गयी खाट.
त्रास बदल दे हास में,
मीठे वचन उचार.
बनो मौन साधक सुने.
जग जिसके उद्गार...
*

गर्मी बरखा शीत दें,
जीवन को सन्देश.
परिवर्तन स्वीकार ले,
खुशियाँ मिलें अनेक.
ख़ास मान ले आम को,
पा ले खुशी अपार.
बनो मौन साधक सुने.
जग जिसके उद्गार...
*

बीज एक पत्ते कई,
कोई नहीं विवाद.
भू जो पोषक तत्व दे,
सब लेते मिल स्वाद.
पास-दूर, खिल-झर रहे,
'सलिल' बिना तकरार.
बनो मौन साधक सुने.
जग जिसके उद्गार...
*
टीप: जबलपुर स्थित मौलश्री वृक्ष और उसकी छाँव में सिद्धि प्राप्त साधक ओशो. आजकल प्रतिदिन प्रातः भ्रमण यहीं करता हूँ।
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in
दुनिया का व्यापार...
संजीव 'सलिल
*
*
मौन मौलश्री देखता,
दुनिया का व्यापार.
बनो मौन साधक सुने.
जग जिसके उद्गार...
*
'तत-त्वं-असि' समझा-दिखा,
दर्पण में प्रतिबिम्ब.
सच मानो हैं एक ही,
पंछी-कोटर-डिंब.
श्वास-श्वास लो इस तरह
हो जीवन श्रृंगार.
बनो मौन साधक सुने.
जग जिसके उद्गार...
*
'सत-शिव-सुंदर' है वही,
जो 'सत-चित-आनंद'.
ध्वनि-अक्षर के मिलन से,
गुंजित हैं लय-छंद.
आस-आस मधुमास हो.
पल-पल हो त्यौहार.
बनो मौन साधक सुने.
जग जिसके उद्गार...
*
खोया-पाया समय की,
चक्की के दो पाट.
काया-छाया में उलझ,
खड़ी हो गयी खाट.
त्रास बदल दे हास में,
मीठे वचन उचार.
बनो मौन साधक सुने.
जग जिसके उद्गार...
*
गर्मी बरखा शीत दें,
जीवन को सन्देश.
परिवर्तन स्वीकार ले,
खुशियाँ मिलें अनेक.
ख़ास मान ले आम को,
पा ले खुशी अपार.
बनो मौन साधक सुने.
जग जिसके उद्गार...
*
बीज एक पत्ते कई,
कोई नहीं विवाद.
भू जो पोषक तत्व दे,
सब लेते मिल स्वाद.
पास-दूर, खिल-झर रहे,
'सलिल' बिना तकरार.
बनो मौन साधक सुने.
जग जिसके उद्गार...
*
टीप: जबलपुर स्थित मौलश्री वृक्ष और उसकी छाँव में सिद्धि प्राप्त साधक ओशो. आजकल प्रतिदिन प्रातः भ्रमण यहीं करता हूँ।
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in
11 टिप्पणियां:
sundar prastuti
sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com
kavyadhara
ओशो चिंतनधारा पर सचित्र सुन्दर गीत की
प्रस्तुति के लिये साधुवाद |
ध्वनि-अक्षर के मिलन से,
गुंजित हैं लय-छंद.
आपके गीतों की विशेषता यही हैं |
सादर
कमल
- kanuvankoti@yahoo.com
आपके कवित्व को शत शत नमन !
सादर,
कनु
shar_j_n ✆ shar_j_n@yahoo.com
ekavita
आदरणीय आचार्य जी,
सदा की भांति अतिसुन्दर और सार्थक!
ये अनुपम :
मौन मौलश्री देखता,
दुनिया का व्यापार.
'तत-त्वं-असि' समझा-दिखा,
दर्पण में प्रतिबिम्ब
'सत-शिव-सुंदर' है वही,
जो 'सत-चित-आनंद'
खोया-पाया समय की,
चक्की के दो पाट.
सादर शार्दुला
mstsagar@gmail.com द्वारा yahoogroups.com ekavita
आपका गीत: दुनियां का व्यापार (शीर्षक)से, ज्यादा बड़ी,चितन से भरपूर, आध्यात्मिक तत्वों को समेटे हुए चित्त को आनंद देने वाली रचना है और प्रस्तुति तो लाज़वाब |बधाई ,साधुवाद ,सादर ,
महिपाल , १ ६ / ५ / २० १२
mstsagar@gmail.com द्वारा yahoogroups.com ekavita
आपका गीत: दुनियां का व्यापार (शीर्षक)से, ज्यादा बड़ी,चितन से भरपूर, आध्यात्मिक तत्वों को समेटे हुए चित्त को आनंद देने वाली रचना है और प्रस्तुति तो लाज़वाब |बधाई ,साधुवाद ,सादर ,
महिपाल , १ ६ / ५ / २० १२
Santosh Bhauwala ✆ द्वारा yahoogroups.com kavyadhara
आदरणीय आचार्य जी,
गीत बहुत ही अच्छा है साधुवाद !!!
संतोष भाऊवाला
deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com
kavyadhara
आदरणीय संजीव जी,
रचना तो सुन्दर है ही, लेकिन चित्रों का जवाब नहीं !
साधुवाद !
सादर,
दीप्ति
दीप्ति जी!
गत माह स्थानांतरण कराकर जबलपुर आ गया हूँ. नित्य प्रातः श्रीमती जी के साथ यहीं प्रातः भ्रमण होता है. ध्यान के बाद काव्य सृजन भी हो जाता है.
anand krishna ✆kavyadhara
bahut khoob bhaiya.......
osho ko saakshaat saamne laa diyaa...
आनंद को आनंद आया तो सृजन सार्थक हुआ.
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