प्रयास:
अवनीश तिवारी मुम्बई
*
(ग़ज़ल) -1
काफिया - आई ,
रदीफ़ - होती है
आज - कल अक्सर तनहाई होती है ,
रात तड़प और नींद से जुदाई होती है | चलते लोगों को पुकार रुकाता हूँ ,
हर शख्स में तेरी परछाई होती है |
चाहे शहर तेरा हो या शहर मेरा ,
मोहब्बत पर रोक और मनाई होती है |
दिखे कभी जो मुखड़ा तेरा ,
हुश्न औ इश्क की सगाई होती है |
बिन तेरे किस घर जाऊं अब ,
हर घर ' अवि ' की बुराई होती है |
***
बिन मेरे
ग़ज़ल 2
काफिया - ऊरत ,रदीफ़ - है
जैसे यह रात, चाँद की रोशनी से ख़ूबसूरत है ,
वैसे जिन्दगी में मेरे तेरे प्यार की जरुरत है ,
हुया करता कईयों से दीदार रोज अपना ,
जो मन में बसी वो तेरी ही प्यारी सूरत है ,
बदले दिन, बदले बरस और बदले मौसम ,
मिलने की तुझसे ना जाने कौनसी महूरत है ,
ना आये ख्याल तेरा दीमाग में मेरे ,
ऐसा हर दिन बेजान, हर रात बदसूरत है ,
बिन मेरे तेरा अपना वजूद हो सकता है ,
बिन तेरे ' अवि ' एक खामोश मूरत है |
*
अवनीश तिवारी
मुम्बई
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