गीत:
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देख नज़ारा दुनिया का...
संजीव 'सलिल'
*
देख नज़ारा दुनिया का...
*
कौन स्नेह में पगा नहीं है।
किसने किसको ठगा नहीं है।
खाता और खिलाता कसमें-
इन्सा भूला दगा नहीं है।
जला रहे अपनों को अपने-
कोई किसी का सगा नहीं है।
ओ ऊपरवाले जादूगर!
देख पिटारा दुनिया का...
*
दर-दरवाज़ा अगर न हो
तो कैसे टूटेगा ताला?
खालू अगर दहेज़ न माँगे,
तो क्यों रोयेगी खाला?
जाने की तैयारी कर ले
जोड़ रहा धन क्यों लाला?
ओ नीचेवाले नटनागर!
अजब पसारा दुनिया का...
*
तन को बार बार धोते हैं.
मन पर मन बोझा ढोते हैं.
चले डुबाने औरों को पर
बीच धार खाते गोते हैं.
राम सीखकर मरा जप रहे
पिंजरे में बंदी तोते हैं.
बेपेंदी की फूटी गागर!
सदृश खटारा दुनिया का...
***
Acharya Sanjiv verma 'Salil'http://divyanarmada.blogspot.com
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2 टिप्पणियां:
sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com
kavyadhara
आ० आचार्य जी , आज के परिवेश पर
सुन्दर गीत के लिये बधाई | विशेष -
' बेपेंदी की फूटी गागर!
सदृश खटारा दुनिया का... '
सादर
कमल
wha wha sir very nice
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