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गुरुवार, 4 नवंबर 2010

बोध कथा : ''भाव ही भगवान है''. संजीव 'सलिल'

बोधकथा                                                    
''भाव ही भगवान है''.
संजीव 'सलिल'
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एक वृद्ध के मन में अंतिम समय में नर्मदा-स्नान की चाह हुई. लोगों ने बता दिया की नर्मदा जी अमुक दिशा में कोसों दूर बहती हैं, तुम नहीं जा पाओगी. वृद्धा न मानी... भगवान् का नाम लेकर चल पड़ी...कई दिनों के बाद उसे एक नदी... उसने 'नरमदा तो ऐसी मिलीं रे जैसे मिल गै मतारे औ' बाप रे' गाते हुए परम संतोष से डुबकी लगाई. कुछ दिन बाद साधुओं का एक दल आया... शिष्यों ने वृद्धा की खिल्ली उड़ाते हुए बताया कि यह तो नाला है. नर्मदा जी तो दूर हैं हम वहाँ से नहाकर आ रहे हैं. वृद्धा बहुत उदास हुई... बात गुरु जी तक पहुँची. गुरु जी ने सब कुछ जानने के बाद, वृद्धा के चरण स्पर्श कर कहा : 'जिसने भाव के साथ इतने दिन नर्मदा जी में नहाया उसके लिए मैया यहाँ न आ सकें इतनी निर्बल नहीं हैं. मैया तुम्हें नर्मदा-स्नान का पुण्य है लेकिन जो नर्मदा जी तक जाकर भी भाव का अभाव मिटा नहीं पाया उसे नर्मदा-स्नान का पुण्य नहीं है. मैया! तुम कहीं मत जाओ, माँ नर्मदा वहीं हैं जहाँ तुम हो.''

'कंकर-कंकर में शंकर', 'मन चंगा तो कठौती में गंगा' का सत्य भी ऐसा ही है. 'भाव का भूखा है भगवान' जैसी लोकोक्ति इसी सत्य की स्वीकृति है. जिसने इस सत्य को गह लिया उसके लिये 'हर दिन होली, रात दिवाली' हो जाती है. 
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