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शनिवार, 6 नवंबर 2010

मुक्तिका : उपहार सुदीपों का... संजीव 'सलिल'

मुक्तिका :                                                            
उपहार सुदीपों का...
संजीव 'सलिल'
*
सारा जग पाये उपहार सुदीपोंका.
हर घर को भाये सिंगार सुदीपोंका..

रजनीचर से विहँस प्रभाकर गले मिले-
तारागण करते सत्कार सुदीपोंका..

जीते जी तम को न फैलने देते हैं
हम सब पर कितना उपकार सुदीपोंका..

जो माटी से जुडी हुई हैं झोपड़ियाँ.
उनके जीवन को आधार सुदीपोंका..

रखकर दिल में आग, अधर पर हास रखें.
'सलिल' सीख जीवन-व्यवहार सुदीपोंका..

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6 टिप्‍पणियां:

Divya Narmada ने कहा…

आदरणीय आचार्य सलिल जी - अति उत्तम !

रजनीचर से विहँस प्रभाकर गले मिले-
तारागण करते सत्कार सुदीपों का..

क्या सजीव चित्रं किया है आपने, ग़ज़ल की जुबान में इसको मंज़र निगारी कहा जाता है !

जो माटी से जुडी हुई हैं झोपड़ियाँ.
उनके जीवन को आधार सुदीपों का.

लाजवाब - बहुत गहरी बात कह दी इन दो पंक्तियों में आपने ! साधुवाद स्वीकार करें ! .

Asheesh Yadav ने कहा…

रखकर दिल में आग, अधर पर हास रखें.
'सलिल' सीख जीवन-व्यवहार सुदीपों का..
acharya ji yaha aapne rangat puri tarah se bhar dali. bahu sukhad lga padh kar.

kusum sinha ने कहा…

priy sanjivji
happy deepavali
etni sundar rachana ke liye badhai antim panktiyan to bahut hi sundar hain
kusum

surinder ratti. ने कहा…

रखकर दिल में आग, अधर पर हास रखें.'सलिल' सीख जीवन-व्यवहार सुदीपोंका..
verma ji bahut sunder gehre bhaav ki kavita hai
dhanyavaad

surinder ratti. ने कहा…

verma ji aapki har rachna mein kuchh to naya pan hota hai
verma ji mere blog per deepavali per likhi ek rachna hai kripaya usaay pad len

http://surinderratti.blogspot.com

PUJA ANIL ने कहा…

बहुत आभार आचार्य जी :)

सुन्दर मुक्तिका - उपहार सुदीपों का... :)