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शनिवार, 6 नवंबर 2010

गीत: प्यार उजियारा प्रिये... --- संजीव 'सलिल'

गीत:                                               

प्यार उजियारा प्रिये...

संजीव 'सलिल'
*
दीप हूँ मैं,
तुम हो बाती,
प्यार उजियारा प्रिये...
*
हाथ में हैं हाथ अपने
अधूरे कोई न सपने,
जगत का क्या?, वह बनाता
खाप में बेकार नपने.
जाति, मजहब,
गोत्र, कुनबा
घोर अँधियारा प्रिये!....
*
मिलन अपना है दिवाली,
विरह के पल रात काली,
लक्ष्मी पूजन करें मिल-
फुलझड़ी मिलकर जलाली.
प्यास बाँटी,
हास बाँटा,
हुआ पौ बारा प्रिये!...
*
आस के कुछ मन्त्र पढ़ लें.
रास के कुछ तंत्र कर लें.
श्वास से श्वासें महक लें-
मन व तन को यंत्र कर लें.
फोड़ कर बम
मिटा दें गम
देख ध्रुवतारा प्रिये!
*

4 टिप्‍पणियां:

Ganesh Jee 'Bagi' ने कहा…

पुनः एक सुंदर गीत,
जाति, मजहब,
गोत्र, कुनबा
घोर अँधियारा प्रिये!....
यह काफी खुबसूरत लगा, सुंदर गीत हेतु बधाई |

Anupama ने कहा…

bahut sundar geet!!!
दीप हूँ मैं,
तुम हो बाती,
प्यार उजियारा प्रिये...
waah!

Sanjiv Verma 'Salil' ने कहा…

aabharee hoon apka.

dharmendra kumar singh ने कहा…

आस के कुछ मन्त्र पढ़ लें.
रास के कुछ तंत्र कर लें.
श्वास से श्वासें महक लें-
मन व तन को यंत्र कर लें.
फोड़ कर बम
मिटा दें गम
देख ध्रुवतारा प्रिये!

बहुत सुन्दर आचार्य जी। बधाई

मैंने किसी बेबसाइट पर देखा था कि आपने दोहा लिखना सिखाया था, ऐसा ही कुछ ओबीओ पर भी कर दीजिए तो मजा आ जाए।