गीत:
प्यार उजियारा प्रिये...
संजीव 'सलिल'
*
दीप हूँ मैं,
तुम हो बाती,
प्यार उजियारा प्रिये...
*
हाथ में हैं हाथ अपने
अधूरे कोई न सपने,
जगत का क्या?, वह बनाता
खाप में बेकार नपने.
जाति, मजहब,
गोत्र, कुनबा
घोर अँधियारा प्रिये!....
*
मिलन अपना है दिवाली,
विरह के पल रात काली,
लक्ष्मी पूजन करें मिल-
फुलझड़ी मिलकर जलाली.
प्यास बाँटी,
हास बाँटा,
हुआ पौ बारा प्रिये!...
*
आस के कुछ मन्त्र पढ़ लें.
रास के कुछ तंत्र कर लें.
श्वास से श्वासें महक लें-
मन व तन को यंत्र कर लें.
फोड़ कर बम
मिटा दें गम
देख ध्रुवतारा प्रिये!
*
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
शनिवार, 6 नवंबर 2010
गीत: प्यार उजियारा प्रिये... --- संजीव 'सलिल'
चिप्पियाँ Labels:
/samyik hindi kavya,
aachman. jabalpur,
aasha,
batee,
contemporary hindi poetry acharya sanjiv 'salil',
deep,
geet,
shvas.,
ujiyara
आचार्य संजीव वर्मा सलिल
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
4 टिप्पणियां:
पुनः एक सुंदर गीत,
जाति, मजहब,
गोत्र, कुनबा
घोर अँधियारा प्रिये!....
यह काफी खुबसूरत लगा, सुंदर गीत हेतु बधाई |
bahut sundar geet!!!
दीप हूँ मैं,
तुम हो बाती,
प्यार उजियारा प्रिये...
waah!
aabharee hoon apka.
आस के कुछ मन्त्र पढ़ लें.
रास के कुछ तंत्र कर लें.
श्वास से श्वासें महक लें-
मन व तन को यंत्र कर लें.
फोड़ कर बम
मिटा दें गम
देख ध्रुवतारा प्रिये!
बहुत सुन्दर आचार्य जी। बधाई
मैंने किसी बेबसाइट पर देखा था कि आपने दोहा लिखना सिखाया था, ऐसा ही कुछ ओबीओ पर भी कर दीजिए तो मजा आ जाए।
एक टिप्पणी भेजें