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बुधवार, 18 नवंबर 2009

नवगीत: सूना-सूना घर का द्वार -संजीव 'सलिल'

नवगीत:

संजीव 'सलिल'

सूना-सूना
घर का द्वार,
मना रहे
कैसा त्यौहार?...
*
भौजाई के
बोल नहीं,
बजते ढोलक-
ढोल नहीं.
नहीं अल्पना-
रांगोली.
खाली रिश्तों
की झोली.
पूछ रहे:
हाऊ यू आर?
मना रहे
कैसा त्यौहार?...
*
माटी का
दीपक गुमसुम.
चौक न डाल
रहे हम-तुम.
सज्जा हेतु
विदेशी माल.
कुटिया है
बेबस-बेहाल.
श्रमजीवी
रोता बेज़ार.
मना रहे
कैसा त्यौहार?...
*
हल्लो!, हाय!!
मोबाइल ने,
दिया न हाथ-
गले मिलने.
नातों को
जीता छल ने .
लगी चाँदनी
चुप ढलने.
'सलिल' न प्रवाहित
नेह-बयार.मना रहे
कैसा त्यौहार?...
****************

5 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

सुन्दर लगा आपका यह गीत!! बधाई.

सदा ने कहा…

नहीं अल्पना रंगोली
खाली रिश्तों की झोली

बहुत ही सुन्दर शब्द रचना.
आभार

रचना दीक्षित ने कहा…

बहुत भावुक का र्गई आपकी यह कृति और आइना भी दिखा गयी. बधाई स्वीकारें इस सुन्दर प्रस्तुति पर.

मनोज कुमार ने कहा…

आपका सृजनात्मक कौशल हर पंक्ति में झाँकता दिखाई देता है.

Krishna Kanhaiya ने कहा…

kanhaiyakrishna@hotmail.com

Adareey Achary Jee,

Bahut khoob kataksh hai adhunikta par.

Badhayee ho.

-Krishna Kanhaiya


Krishna Kanhaiya