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शनिवार, 21 नवंबर 2009

मैथिली कविता: "चुलबुली कन्या बनि गेलहुँ" -कुसुम ठाकुर

मैथिली कविता:

बिहार के मिथिला अंचल की जन भाषा मैथिली समृद्ध साहित्यिक सृजन परंपरा के वाहक है. प्रस्तुत है नवोदित कवयित्री कुसुम ठाकुर की प्रथम मैथिली कविता_

"चुलबुली कन्या बनि गेलहुँ"


बिसरल छलहुँ हम कतेक बरिस सँ ,
अपन सभ अरमान आ सपना ।
कोना लोक हँसय कोना हँसाबय ,
आ कि हँसी में सामिल होमय ।
आइ अकस्मात अपन बदलल ,
स्वभाव देखि हम स्वयं अचंभित ।
दिन भरि हम सोचिते रहि गेलहुँ ,
मुदा जवाब हमरा नहि भेंटल ।
एक दिन हम छलहुँ हेरायल ,
ध्यान कतय छल से नहि जानि ।
अकस्मात मोन भेल प्रफुल्लित ,
सोचि आयल हमर मुँह पर मुस्की ।
हम बुझि गेलहुँ आजु कियैक ,
हमर स्वभाव एतेक बदलि गेल ।
किन्कहु पर विश्वास एतेक जे ,
फेर सँ चंचल,चुलबुली कन्या बनि गेलहुँ ।।


-http://sansmaran-kusum.blogspot.com

9 टिप्‍पणियां:

Rajneesh K Jha ने कहा…

रजनीश के झा ...
बड्ड सुन्दर कविता,
पहिल कविता केर लेर बधाई लिय, आओर ई सिलसिला जारी राखु.
शुभकामना

Dipak 'Mashal' ... ने कहा…

Maithil meri jyada samajh to nahinaati lekin aapka likha jitna samajh me aaya bahut hi achchha hai
.. haan bhav jo samjha wo sundar laga...
Jai Hind...

Kusum Thakur ... ने कहा…

धन्यवाद रजनीश जी !!

Kusum Thakur ... ने कहा…

धन्यवाद दीपक जी !!

दिव्य नर्मदा ... ने कहा…

maithilee men pratham kavya rachna hetu hardik badhaee.

mujhe dhanyavad naheen nayee kavita chahiye.

महफूज़ अली ... ने कहा…

mujhe maithili to nahin aati.... lekin padh kar samajh gaya....

bahut achcha laga padh kar....

badhai...

श्यामल सुमन ... ने कहा…

पहिल मैथिली कविता देखल खूब बढ़ल अछि आस।
जिनका पर विश्वास बनल अछि बढ़य खूब विश्वास।।

नित नूतन चंचलता संग मे बदलय कुसुम स्वभाव।
सुमनक चाह कुसुम के रचना छोड़त हृदय प्रभाव।।

सादर
श्यामल सुमन 09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

Kusum Thakur ... ने कहा…

मैथिलि में रचना करि,
इ छलs हमर प्रयास।
अहाँ लोकनि के स्नेह देखि
बढ़ल हमर विश्वास।

श्यामल सुमन ... ने कहा…

काव्यात्मक टिप्पणी करब काज पैघ ई थीक।
टिप्पणी पर टिप्पणी केलहुँ लागल बहुते नीक।।