पूज्य मातुश्री स्व. शांतिदेवी की प्रथम बरसी पर-
संजीव 'सलिल'
गयी नहीं हो...
*
बरस हो गया
तुम्हें न देखा.
मिति न किंचित
स्मृति रेखा.
प्रतिदिन लगता
टेर रही हो.
देर हुई, पथ
हेर रही हो.
गोदी ले
मुझको दुलरातीं.
मैया मेरी
बसी यहीं हो.
तुम जाकर भी
गयी नहीं हो...
*
सच घुटने में पीर बहुत थी.
लेकिन तुममें धीर बहुत थी.
डगर-मगर उस
भोर नहाया.
प्रभु को जी भर
भोग लगाया.
खाई न औषधि
तुम जाकर भी
गयी नहीं हो...
*
गिरी, कँपा
सारा भू मंडल.
युग सम बीता
पखवाडा-पल.
आँख बोलती
जिव्हा चुप्प थी.
जीवन आशा
हुई गुप्प थी.
नहीं रहीं पर
रहीं यहीं हो
तुम जाकर भी
गयी नहीं हो...
*
10 टिप्पणियां:
gahari aashatha ke bhav liye kavita bahut achhi lagi. Maa ke prati aisi bhavana sabke man mein jagart honi hi chahiye, Jeewan data jo hai hamari Narmada Maa.
शत शत नमन शुभकामनायें
पूज्य मातुश्री स्व. शांतिदेवी को उनकी प्रथम बरसी पर नमन करता हूँ!
आचार्य जी,
मातुश्री की पहली बरसी पर नमन करता हूँ!
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
सलिल जी!
आज ही के दिन मैंने भी अपने माँ को खोया था. बीएस उसे पूरे पंद्रह वर्ष हो गए और आप उन्हें पहली बरसी पर श्रृद्धा सुमन अर्पित कर रहे हैं. इससे श्रेष्ठ श्रृद्धांजलि और क्या होगी? मेरा भी नमन.
वह माँ के आँचल की छाया जिसमें छिपकर सो जाता था.
वही पुराना टूटा छप्पर जहाँ सपनों में खो जाता था.
मधुर सुरीली माँ की लोरी तडपायेगी तुझे जरूर. माता जी को शत-शत नमन.
bahut sundar bhaw hai apke...maa aur humari atma judi hui hoti hai..
पूज्य मातुश्री स्व. शांतिदेवी जी को शत शत नमन करता हूँ.
मातुश्री की पहली बरसी पर नमन करता हूँ..!!तुम गयी नहीं हो ,यहीं कहीं हो....!सच में माँ तो हमेशा साथ ही रहती है..
सलिल जी ,
ऐसी यादें साँसों में बसती हैं .
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