मेघदूत ..३६ से ४०
Hindi translation ..by Prof. C.B. Shrivastava" vidagdh"..JABALPUR
मूल संस्कृत
भर्तुः कण्ठच्चविर इति गणैः सादरं वीक्ष्यमाणः
पुण्यं यायास त्रिभुवनगुरोर धाम चण्डीश्वरस्य
धूतोद्यानं कुवलयरजोगन्धिभिर गन्धवत्यास
तोयक्रीडानिरतयुवतिस्नानतिक्तैर मरुद्भिः॥१.३६॥
हिन्दी पद्यानुवाद
वहां केशगंधी अगरु धूम्र से हृष्ट
पा गृहशिखी से मिलन नृत्य उपहार
सुमन गंधसज्जित चरमराग रंजित
भवन श्री निरख , भूल श्रम , मार्ग कर पार
मूल संस्कृत
अप्य अन्यस्मिञ जलधर महाकालम आसाद्य काले
स्थातव्यं ते नयनविषयं यावद अत्येति भानुः
कुर्वन सन्ध्यावलिपटहतां शूलिनः श्लाघनीयाम
आमन्द्राणां फलम अविकलं लप्स्यसे गर्जितानाम॥१.३७॥
हिन्दी पद्यानुवाद
स्वामी सदृश कंठ , छबिवान तुम
गण समावृत महाकाल के धाम जाना
नदी स्नान क्रीड़ा निरत युवतिजन की
कमल धूलि मिस्रित पवन गंध पाना
मूल संस्कृत
पादन्यासैः क्वणितरशनास तत्र लीलावधूतै
रत्नच्चायाखचितवलिभिश चामरैः क्लान्तहस्ताः
वेश्यास त्वत्तो नखपदसुखान प्राप्य वर्षाग्रबिन्दून
आमोक्ष्यन्ते त्वयि मधुकरश्रेणिदीर्घान कटक्षान॥१.३८॥
हिन्दी पद्यानुवाद
कहीं शाम के पूर्व जो मेघ पहुंचो
वहां सूर्य के अस्त तक विरम जाना
त्रिशूली महाकाल के सांध्यवंदन
समय गर्ज दुन्दुभि बजा पुण्य पाना
मूल संस्कृत
पश्चाद उच्चैर्भुजतरुवनं मण्डलेनाभ्लीनः
सांध्यं तेजः प्रतिनवजपापुष्परक्तं दधानः
नृत्तारम्भे हर पशुपतेर आर्द्रनागाजिनेच्चां
शान्तोद्वेगस्तिमितनयनं दृष्टभक्तिर भवान्या॥१.३९॥
हिन्दी पद्यानुवाद
वहां चरण निक्षेप से क्वणित रसना
जड़ित चँवरधारे , थके हाथ वाली
नखक्षत सुखद मेहकण पा लखेंगी
भ्रमर पंक्ति नयना तुम्हें देवदासी
मूल संस्कृत
गच्चन्तीनां रमाणवसतिं योषितां तत्र नक्तं
रुद्धालोके नरपतिपथे सूचिभेद्यैस तमोभिः
सौदामन्या कनकनिकषस्निग्धया दर्शयोर्वीं
तोयोत्सर्गस्तनितमुहरो मा च भूर्विक्लवास्ताः॥१.४०॥
हिन्दी पद्यानुवाद
फिर नृत्य में उठे भुजतरु शिखर लिप्त
हो , शंभु के धर जुही सांध्य लाली
हर गज अजिन आद्र परिधान इच्छा
लखें भक्ति , सस्मितवदन तव , भवानी
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
सोमवार, 23 नवंबर 2009
मेघदूत ..३६ से ४०
सामाजिक लेखन हेतु ११ वें रेड एण्ड व्हाईट पुरस्कार से सम्मानित .
"रामभरोसे", "कौआ कान ले गया" व्यंग संग्रहों ," आक्रोश" काव्य संग्रह ,"हिंदोस्तां हमारा " , "जादू शिक्षा का " नाटकों के माध्यम से अपने भीतर के रचनाकार की विवश अभिव्यक्ति को व्यक्त करने का दुस्साहस ..हम तो बोलेंगे ही कोई सुने न सुने .
यह लेखन वैचारिक अंतर्द्वंद है ,मेरे जैसे लेखकों का जो अपना श्रम, समय व धन लगाकर भी सच को "सच" कहने का साहस तो कर रहे हैं ..इस युग में .
लेखकीय शोषण , व पाठकहीनता की स्थितियां हम सबसे छिपी नहीं है , पर समय रचनाकारो के इस सारस्वत यज्ञ की आहुतियों का मूल्यांकन करेगा इसी आशा और विश्वास के साथ ..
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें