कुल पेज दृश्य

मंगलवार, 10 नवंबर 2009

स्मृति गीत: संजीव 'सलिल'

स्मृति गीत: संजीव 'सलिल'


सृजन विरासत

तुमसे पाई...

*

अलस सवेरे

उठते ही तुम,

बिन आलस्य

काम में जुटतीं.

सिगडी, सनसी,

चिमटा, चमचा

चौके में

वाद्यों सी बजतीं.

देर हुई तो

हमें जगाने

टेर-टेर

आवाज़ लगाई.

सृजन विरासत

तुमसे पाई...

*

जेल निरीक्षण

कर आते थे,

नित सूरज

उगने के पहले.

तव पाबंदी,

श्रम, कर्मठता

से अपराधी

रहते दहले.

निज निर्मित

व्यक्तित्व, सफलता

पाकर तुमने

सहज पचाई.

सृजन विरासत

तुमसे पाई...

*

माँ!-पापा!

संकट के संबल

गए छोड़कर

हमें अकेला.

विधि-विधान ने

हाय! रख दिया

है झिंझोड़कर

विकट झमेला.

तुम बिन

हर त्यौहार अधूरा,

खुशी पराई.

सृजन विरासत

तुमसे पाई...

*

यह सूनापन

भी हमको

जीना ही होगा

गए मुसाफिर.

अमिय-गरल

समभावी हो

पीना ही होगा

कल की खातिर.

अब न

शीश पर छाँव,

धूप-बरखा मंडराई.

सृजन विरासत

तुमसे पाई...

*

वे क्षर थे,

पर अक्षर मूल्यों

को जीते थे.

हमने देखा.

कभी न पाया

ह्रदय-हाथ

पल भर रीते थे

युग ने लेखा.

सुधियों का

संबल दे

प्रति पल राह दिखाई..

सृजन विरासत

तुमसे पाई...


*

4 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari, canada … ने कहा…

बहुत सुन्दर गीत!!

शरद कोकास ... ने कहा…

संजीव जी आज बहुत दिनों पश्चात इधर आना हुआ । यह गीत सुन्दर लगा । और कैसे है आप ? रमेश जी से हमारी मुलाकात होती रहती है आपको याद करते है ।

November 3, 2009 10:32 PM

राजीव सक्सेना, कटनी. ने कहा…

आदरणीय मामाजी सादर प्रणाम, स्मृतिगीत "सृजन विरासत तुमसे पाई" आपने इस गीत में माँ-पापा के दैनिक जीवन के कार्यो का बड़ा ही मर्मस्पर्शी चित्रण किया,बच्चो के लिए माँ-पापा बरगद की छाव के समान होते है, गीत की मार्मिक पंक्ति "माँ-पापा संकट के संबल गए छोड़कर हमे अकेला....."को पढ़कर मन द्रवित हो गया,सरल शब्दों में भावप्रधान,मार्मिकगीत है. इस गीत के लिए मेरी हार्दिक शुभ-कामनाये .

Shanno Aggarwal ने कहा…

भावनाओं की मार्मिकता......मन को बेध गयी.