नवगीत:
संजीव 'सलिल'
हिंद और
हिंदी की जय हो...
*
जनगण-मन की
अभिलाषा है.
हिंदी भावी
जगभाषा है.
शत-शत रूप
देश में प्रचलित.
बोल हो रहा
जन-जन प्रमुदित.
ईर्ष्या, डाह, बैर
मत बोलो.
गर्व सहित
बोलो निर्भय हो.
हिंद और
हिंदी की जय हो...
*
ध्वनि विज्ञानं
समाहित इसमें.
जन-अनुभूति
प्रवाहित इसमें.
श्रुति-स्मृति की
गहे विरासत.
अलंकार, रस,
छंद, सुभाषित.
नेह-प्रेम का
अमृत घोलो.
शब्द-शक्तिमय
वाक् अजय हो.
हिंद और
हिंदी की जय हो...
*
शब्द-सम्पदा
तत्सम-तद्भव.
भाव-व्यंजना
अद्भुत-अभिनव.
कारक-कर्तामय
जनवाणी.
कर्म-क्रिया कर
हो कल्याणी.
जो भी बोलो
पहले तौलो.
जगवाणी बोलो
रसमय हो.
हिंद और
हिंदी की जय हो...
**************
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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शुक्रवार, 13 नवंबर 2009
नवगीत: हिंद और/ हिंदी की जय हो... संजीव 'सलिल'
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आचार्य संजीव वर्मा सलिल
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6 टिप्पणियां:
महफूज़ अली ने आपकी पोस्ट " नवगीत: हिंद और हिंदी की जय हो... संजीव 'सलिल' " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
bahut achchi lagi yeh kavita.....
Udan Tashtari ने आपकी पोस्ट " नवगीत: हिंद और हिंदी की जय हो... संजीव 'सलिल' " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
बहुत बढ़िया!!
आशीष कुमार 'अंशु' ...
Sundar hai...
बेहतरीन रचना
आपका आभार
संजीव जी की लेखनी की कोई सानी नहीं
मैं बस यही कहूँगी बहुत ही अच्छी रचना है !!!
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