बाबा रामदेव के प्रति दोहांजलि :
संजीव 'सलिल'
सत-शिव-सुन्दर ध्येय है, सत-चित आनंद प्रेय.
कंकर को शंकर करें, रामदेव प्रज्ञेय .. १
'दूर रोग कर योग से', कहते: 'बनो निरोग'.
काल बली पर मत बने, मनुज भोग का भोग..२
अनिल अनल भू नभ सलिल, पञ्चतत्त्वमय देह.
गह न तेरा, जनक सम, हो हर मनुज विदेह.. ३
निर्देशक परमात्मा, आत्मा केवल पात्र.
रंगमंच जीवन-जगत, तेरे साधन मात्र.. ४
वाग्वीर बाबा नहीं, करते स्वयं प्रयोग.
दिखा, सिखाते, कर सके, जो देखे वह योग.. ५
बाबा दयानिधान हैं, तन-मन की हर पीर.
कहते- 'मत भागो' 'सलिल', करो जगत बेपीर.. ६
'सौ रोगों का एक है', बाबा कहें: 'इलाज.
संयम, श्रम, आसन, नियम, अपना कल मत-आज'. ७
कुंठा हरकर दे रहे, नव आशा-विश्वास.
बाबा से डरकर भगे, दुःख पीड़ा संत्रास.. ८
बाबा की महिमा अमित, वह पाता है जान,
जो श्रृद्धा रखकर करे, उपदेशों का पान.. ९
'जीव मात्र पर कर दया', बाबा का उपदेश.
'सबमें है परमात्मा, सेवा मते क्लेश'. १०
नशा नाश का मार्ग है, भोग रोग का मूल.
योगासन है मुक्तिपथ, बाधा हरे समूल.. ११
सबको मान समान तू, मना सभी की क्षेम.
बाबा सबसे पा रहे, देकर सबको प्रेम.. १२
पातंजलि के योग पर, पीताम्बर का रंग.
जन-मन भय सुलभ यह, योगासन सत्संग.. १३
शीतल पेय न पीजिये, यह है ज़हर समान.
आंत-उदर क्षतिग्रस्त कर, करता सुलभ मसान.. १४
'कोल्ड ड्रिंक विष मूल है', जठर-अग्नि कर मंद.
पाचन तंत्र बिगाड़ता, खो जाता आनंद.. १५
पेप्सी-कोला शत्रु हैं, करिए इस क्षण त्याग.
उपजाते शत रोग ये, मिलता नहीं सुराग.. १६
आसव, शरबत, दुग्ध, रस, ठंडाई लें आप.
तन-मन तृप्त-स्फूर्त हों, आप सकें जग-व्याप.. १७
जल-शीतक संयन्त्र में, मिटते जीवन तत्व.
गुणविहीन ताज 'सलिल', ज्यों भोजन बिन सत्व. १८
आडंबर से दूर रह, नैतिकता का पाठ.
बाबा से जो सीख ले, होते उसके ठाठ.. १९
सदा जीवन रख सदा, रखना उच्च विचार.
बाबा का गुरु मंत्र ले, तरें 'सलिल' स्वीकार. २०
करो राष्ट्र पर गर्व सब, जाग्रत रखो विवेक.
भारत माता कर सके, गर्व- रहो बन एक.. २१
नित्य प्रात उठ घूमिये, करिए प्राणायाम.
तन-मन हों जीवंत तब, भारत हो शुभ-धाम.. २२
ध्यान करो एकाग्र हो, जाग्रत हो निज आत्म.
कंकर में शंकर दिखे, प्रगटे खुद परमात्म.. २३
योगासन जब सीख लें, तभी करें प्रारंभ.
बिना टिकिट मत कीजिये, यात्रा का आरंभ.. २४
करतल-ध्वनि से रक्त का, हो कर में संचार.
नख-घर्षण से दूर हों, तन के विविध विकार.. २५
आत्महीनता दे मिटा, पल भर का आध्यात्म.
'सलिल' आत्म-गौरव जगे, योग करे विश्वात्म.. २६
रामदेव जी का लगे, जयकारा हो धूम.
योगी के पदकमल ले, स्वयं विधाता चूम.. २७
प्रकृति-पुत्र इंसान है, क्यों प्रकृति से दूर?
माँ को तजकर भटकता, आँखें रहते सूर.. २८
धरती माँ का नाशकर, कसे पाप का पाश.
माँ ही रक्षा कर सके, सत्य समझ ले काश.. २९
भू को पहना वस्त्र नव, कर सुन्दर श्रृंगार.
हरी-भरी होकर धरा, हो तुझ पर बलिहार.. ३०
राष्ट्र हेतु जिसने किया, जीवन का बलिदान.
अमर कीर्ति उसको मिली, सुर करते गुणगान.. ३१
हर पत्ता है औषधी, जान सके तो जान.
मिट्टी, पत्थर, काष्ठ भी, 'सलिल' गुणों की खान.. ३२
'बाबा खाते: 'मृदा से भी मिटते हैं रोग.
कर इलाज विश्वास रख, ताज कुटैव, लत, भोग..३३
परनारी को माँ-बहन, जैसा दे सम्मान.
लम्पटता से जिंदगी, बनती नरक-समान.. ३४
अन्न उगाता है कृषक, पाले सबका पेट.
पूंजीपति मिलकर करें, उस का ही आखेट.. ३५
नहीं भोग में तृप्ति है, भोगी रहे अतृप्त.
संयम साधे जो उसे, 'सलिल' मिलें सुख सप्त.. ३६
बूचडखाने से बहे, पशुओं का मल-स्राव.
चाकलेट में वह मिले, तू खाता ले चाव.. ३७
मृग की अंतर्ग्रंथी का, स्राव बना परफ्यूम.
भागी हत्या का बने, तू ले उसको चूम.. ३८
भोग शक्तिवर्धक दावा, करें बहुत नुकसान.
पशु-अंगों संग आह ले, बनता न र्हैवान.. ३९
मनु पशु पौधों सभी में, बसा वही परमात्म.
सबल निबल की जान ले, रुष्ट रहें विश्वात्म.. ४०
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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शनिवार, 21 नवंबर 2009
बाबा रामदेव के प्रति दोहांजलि : संजीव 'सलिल'
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करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
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