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सोमवार, 9 नवंबर 2009

भ्रष्टाचार की जय हो !

अव्यंग
भ्रष्ट व्यवस्था के लाभ

विवेक रंजन श्रीवास्तव
ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर ४८२००८
मो ००९४२५८०६२५२

भ्रष्टाचार की जय हो ! एक और घोटाला सफलता पूर्वक संपन्न हुआ . सरकार हिल गई . स्वयं प्रधानमंत्री को एक बार फिर से भ्रष्टाचार के विरुद्ध कठोर से कठोर कदम उठाने की घोषणायें दोहरानी पड़ी . एक और उच्चस्तरीय जांच कमेटी गठित की गई . सी बी आई के पास एक और फाइल बढ़ गई . भ्रष्टाचार यूं तो सारे विश्व में ही व्याप्त है , पर उन देशो में अधिक है जहां आबादी अधिक संसाधन कम , और भ्रष्टाचार के पनपने के मौके ज्यादा हैं , भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के सरकारी नियम कमजोर हैं . भारत के संदर्भ में बात करे तो मै समझता हूं कि हम सदा से किसी न किसी से डर कर ही सही काम करते रहे हैं चाहे राजा से , भगवान से , या स्वयं अपने आप से . पिछले सालो मे आजादी के बाद से हमारा समाज निरंकुश होता चला गया . हर कहीं प्रगति हुई , बस आचरण का पतन हुआ . नैतिक शिक्षा को स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल जरूर किया गया है पर जीवन से नैतिकता गायब होती जा रही है . धर्म निरपेक्षता के चलते धर्म का , दिखावे का सार्वजनिक स्वरूप तो बढ़ा पर धर्म के आचरण का व्यैक्तिक चरित्र पराभव का शिकार हुआ . यह बात लोगो के जहन में घर कर गई कि सरकारी मुलाजिमो को खरीदा जा सकता है , कम या अधिक कीमत में . हाल के , घोटाले ने भ्रष्टाचार की इस चर्चा को पुनः सामयिक , प्रासंगिक बना दिया है . अपने इस व्यंग लेख में मैं किसी घोटाले विशेष का नाम न लिखकर इसे जनरलाइज करते हुये व्यंग लिख रहा हूं , जिससे कैलेंडर की तारीखें मेरे व्यंग को पुराना न कर सकें . घोटालों का क्या है , औसतन महीने में दो की दर से उच्च स्तरीय ऐसे घोटाले होते ही रहते हैं , जो चैनलों के लिये सनसनी खेज होते हैं ,पत्र पत्रिकाओ के लिये स्कूप स्टोरी बन सकते हैं , जिनमें सरकारों को हिलाने का दम होता है , जो विरोधी पार्टी को नवजीवन और एकजुटता प्रदर्शित करने का मौका देते हैं . सो मेरा यह आलेख आर्काइव के रूप में संजोया जा सकता है , जिस संपादक को जब मन हो तब इसे प्रकाशित करे , यह सामयिक , तात्कालिक और प्रासंगिक रहेगा .

सरवाइवल आफ फिटेस्ट के सिद्धांत को ध्यान में रखे , तो हम सहज ही समझ सकते हैं कि तमाम कोशिशो के बावजूद भी जिस तरह से भ्रष्टाचार दिन दूनी रात चौगुनी गति से फल फूल रहा है , उसे देखते हुये मेरा मानना है कि अब समय आ गया है कि विशव गुरु भारत को भ्रष्टाचार के पक्ष में खुलकर सामने आ जाना चाहिये . हमें दुनियां को भ्रष्टाचार के लाभ बताना चाहिये .पारदर्शिता का समय है , विज्ञापन बालायें और फिल्मी नायिकायें पूर्ण पारदर्शी होती जा रही हैं . पारदर्शिता के ऐसे युग में भ्रष्टाचार को स्वीकारने में ही भलाई है .स्वयं हमारे प्रधानमंत्री जी स्वीकार कर चुके हैं कि दिल्ली से चला एक रुपया , गांवो में पहुंचते पहुंचते १५ पैसे में बदल जाता है ... भ्रष्टाचार करते हुये , सार्वजनिक रूप से भ्रष्टाचार की बुराई करने की दोहरी मानसिकता के साथ अब और जीना ठीक नही . जब भ्रष्टाचार के ढ़ेर सारे लाभ हैं तो फिर उन्हें गिने गिनायें और गर्व से यह कहें कि हाँ हम भ्रष्टाचारी हैं ,हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे . भ्रष्टाचार के अनंत लाभ हैं . बिना लम्बी लाइन में लगे हुये यदि घर बैठे आपका काम हो जाये तो इसमें बुरा क्या है ? अब जब ऐसा होगा तो इसके लिये कुछ सुविधा शुल्क भी आप चुकायेंगे . देने वाले राजी , लेने वाले राजी , पर आपकी इस सफलता व योग्यता को देखकर लाइन में लगे बेचारे आम आदमी इस सबको भ्रष्टाचार की संज्ञा दें , तो यह उनकी नादानी ही कही जानी चाहिये . स्कूल कालेज में एडमीशन का मसला हो , नौकरी का मामला हो , नियम कानून को पकड़कर बैठो तो बस परीक्षा और इंटरव्यू ही देते रहो . समय , पैसे सबकी बरबादी ही बरबादी होती है .बेहतर है सिफारिशी फोन करवायें , और पहले ही प्रयास में मन वांछित फल पायें . अब जब मन वांछित फल मिलेगा तो आप मूर्ख थोड़े ही हैं जो प्रसाद न चढ़ायेंगे ? इस प्रक्रिया को जो भ्रष्टाचार मानते हैं उन्हें नैतिकता का राग अलापने दें , ये समय से सामंजस्य न बैठा पाने वाले असफल लोग हैं . जो कुछ जितने में खरीदा जाना है वह तो उतने में ही आयेगा , अब यदि सप्लायर सदाशयी व्यवाहार के चलते आर्डर करने वाले अधिकारी और बिल पास करने वाले बाबू साहब को कुछ भेंट करे तो समझ से परे है कि यह भ्रष्टाचार कैसे हुआ . शिकायत कर्ता को उसका समाधान मिल जाये , उसके दुख , कष्ट दूर हो जायें और वह खुशी से वर्दी वालों को कुछ दे देवे तो भि भ्रष्टाचार के विरुद्ध मुहिम चलाने वालों के पेट में दर्द होने लगता है , अरे भैया ! दान , दक्षिणा , भेंट , बख्शीस , आदान प्रदान , का महत्व समझिये .
भ्रष्टाचार के लाभ ही लाभ हैं . परस्पर प्रेम बना रहता है , कामों में सुगमता होती है , निश्चिंतता रहती है . सब एक दूसरे की चिंता करते हैं . सद्भाव पनपता है . भ्रष्टाचार एक जीवन शैली है . इसे अपनाना समय की जरूरत है . इस व्यवस्था में आनंद ही आनंद है . एक बार इसका हिस्सा बनकर तो देखिये , आपकी रुकी हुई फाइल दौड़ पड़ेगी , कार्यालयों के व्यर्थ चक्कर लगाने से जो समय बचे उसे परमार्थ में लगाइये , कुछ भ्रष्टाचार कीजिये किसी का भला ही करेंगे आप इस तरह . गीता का ज्ञान गांठ बांध लीजीये , साथ क्या लाये थे ? साथ क्या ले जायेंगे , अरे कुछ व्यवहार बनाइये . मिल बांटकर खाइये खिलाइये .जियो और जीने दो . जितनी ईमानदारी भ्रष्टाचार की अलिखित व्यवस्था में है उतनी स्टेंप पेपर में नोटराइज्ड एग्रीमेंट्स में हो जाये तो अदालतो के चक्कर ही न लगाना पड़े लोगों को . भ्रष्ट व्यवस्था में कभी भी अविश्वास , संदेह , या गवाही जैसी बकवास चीजो की कोई जरुरत नही होती . यदि कभी कोई भ्रष्टाचारी विवशतावश किसी का कोई काम नहीं कर पाता तो , सामने वाला उसे सहज ही क्षमा करने का माद्दा रखता है , वह स्वयं भ्रष्टाचार कर अपने नुकसान को पूरा करने की हिम्मत रखता है , ऐसी उदारहृदय व्यवस्था ,मानवीयता की वाहक है , आइये भ्रष्टाचार का खुला समर्थन करें , भ्रष्टाचार अपनायें , भ्रष्ट व्यवस्था के अभिन्न अंग बने . जब हम सब हमाम में नंगे हैं ही तो फिर शर्म कैसी ?

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