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गुरुवार, 18 जनवरी 2018

दोहा दुनिया

शिव अक्रिय, सक्रिय शिवा,
ऊर्जा पुंज अनंत।
कहे गए भगवान ये,
वे भगवती न अंत।।
*
धन-ऋण ऊर्जाएं मिलें,
जन्में अगणित रूप।
कण-कण, तृण-तृण तरंगित,
बनती सृष्टि अनूप।।
*
रूप-अरूप बनें-मिटें,
शिवा सुरूपा सोह।
शिव कुरूप को शुभ करें,
सकें शिवा-मन मोह।।
*
शिव शंका का अंत कर,
गुंजा रहे हैं शंख।
शिवा कल्पना सच करें,
उड़ें लगाकर पंख।।
*
हैं श्रद्धा-विश्वास ये,
सृष्टि रचें कर अंत।
सदा-सदा पूजे गए,
जो जाने वह संत।।
*
प्रगट करें शिव तीन गुण,
करें आप में लीन।
गगन आत्मिका प्रकृति है,
माया परम प्रवीण।।
*
जान न सकते जिसे, जो
होता खुद उत्पन्न।
व्यक्त-लीन सब कार्यकर,
लिंगराज संपन्न।।
*
तीन मेखमय वेदिका,
जग धात्री भग शक्ति।
लिंग चिन्ह आधार भग,
मिल जग रच दें मुक्ति।।
*
बिंदु अण्ड ही पिण्ड हो,
शून्य सिंधु आधार।
षड् समृद्धि 'भग' नाम पा,
करें जगत-व्यापार।।
*
शिव हरि रवि गणपति शिवा,
पंच देव मय वृत्त।
चित्र गुप्त कर प्रगट विधि,
होते आप निवृत्त।।
*
निराकार साकार हो,
प्रगटें नाना रूप।
नाद तरंगें कण बनें,
गहरा श्यामल कूप।।
***
१८-१-२०१८, जबलपुर।

बुधवार, 17 जनवरी 2018

नवगीत

एक रचना:
गए साल की सासू सें
कमरा छिन गओ रे!
नए साल की दुलहन खों
कमरा मिल गओ रे!
*
गए बरस में देवर-ननदी,
तीन सौ पैंसठ रए अकरते।
परिवर्तन की भौजाई सें
बिनउ बात भी रए झगरते।
धरती अम्मा नें टोंका तो
बिन शरमाए बोले: 'हओ रे!
*
कोसिस चूला फूँक जला रए, 
हर नेकी खों तुरत भुला रए।
खैनी-गुटका साँप बिसैलो
लगा गले सें हात झुला रए।
सब मिट गओ तो कलपें
दैया! जे का हो रओ रे!
*
टके सेर है मोल फसल को
ब्याज नें पूजे, भूल असल को।
नेता-अफसर-सेठ डकारें
बीज नें बाकी रओ नसल को।
अब लों कबऊ नें जैसो भओ थो
अब उसईं भओ रे!
*
सूरज डुकरो झाँक ने पाए
बंद खिड़किया सँग किवाड़े।
चैन ने पा रओ तन्नक कोनौ
रो रए पिछड़े संग अगाड़े।
बादे झुठलाउत जुमला कै
हरिस्चंद् खुद को कै रओ रे!
*
जंगल काट, पहाड़ खोद,
तालाब पूर खें सड़क बना रए।
कर बिनास बोलें बिकास बे
कुरसी अपनी आप भुना रए।
जन की छाती, होरा भूंजे तंत्र
कैत जनतंत्र नओ रे!
*
गए साल की सासू सें
कमरा छिन गओ रे!
नए साल की दुलहन खों
कमरा मिल गओ रे!
****

doha duniya

दोहा दुनिया
*
शिव में खुद को देख मन,
मनचाहा है रूप।
शिव को खुद में देख ले,
हो जा तुरत अरूप।।
*
शिव की कर ले कल्पना,
जैसी वैसा जान।
शिव को कोई भी कहाँ,
कब पाया अनुमान?
*
शिव जैसे शिव मात्र हैं,
शिव सा कोई न अन्य।
आदि-अंत, नागर सहज,
सादि-सांत शिव वन्य।। 
*
शिव से जग उत्पन्न हो,
शिव में ही हो लीन।
शिवा शक्ति अपरा-परा,
जड़-चेतन तल्लीन।।
*
'भग' न अंग,ऐश्वर्य षड,
धर्म ज्ञान वैराग।
सुख समृद्धि यश समन्वित,
'लिंग' सृजन-अनुराग।।
*
राग-विराग समीप आ,
बन जाते भगवान।
हों प्रवृत्ति तब भगवती,
कर निवृत्ति का दान।।
*
ज्योति लिंग शिव सनातन,
ज्योतिदीप हैं शक्ति।
दोनों एकाकार हो,
देते भाव से मुक्ति।।
***
१७-१-२०१८ 
   
 




मंगलवार, 16 जनवरी 2018

doha duniya

दोहा दुनिया
*
शिव शंकर ओंकार हैं, नाद ताल सुर थाप।
शिव सुमरनी सुमेरु भी, शव ही जापक-जाप।।
*
पूजा पूजक  पूज्य शिव, श्लोक मंत्र श्रुति गीत।
अक्षर मुखड़ा अंतरा, लय रस छंद सुरीत।।
*
आत्म-अर्थ परमार्थ भी, शब्द-कोष शब्दार्थ।
शिव ही वेद-पुराण हैं, प्रगट-अर्थ निहितार्थ।।
*
तन शिव को ही पूजना, मन शिव का कर ध्यान।
भिन्न न शिव से जो रहे, हो जाता भगवान।।
*
इस असार संसार में, सार शिवा-शिव जान।
शिव में हो रसलीन तू, शिव रसनिधि रसखान।।
***
१६-१-२०१८ ,
विश्व वाणी हिंदी संस्थान, जबलपुर

doha duniya

दोहा दुनिया
*
शिव को पा सकते नहीं, सिव से सकें न भाग।
शिव अंतर्मन में बेस, मिलें अगर अनुराग।।
*
शिव को भज निष्काम हो, शिव बिन चले न काम।
शिव अनुकम्पा नाम दे, शिव हैं आप अनाम।।
*
वृषभ देव शिव दिगंबर, ढँकते सबकी लाज।
निर्बल के बल शिव बनें, पूर्ण करें हर काज।।
*
शिव से छल करना नहीं, बल भी रखना दूर।
भक्ति करो मन-प्राण से, बजा श्वास संतूर।।
*
शिव त्रिनेत्र से देखते, तीन लोक के भेद।
असत मिटा सत बचाते, करते कभी न भेद।।
*
१५-१-२०१८ एफ़ १० ८ सरिता विहार दिल्ली 
  

दोहा दुनिया

निराकार शिव से प्रगट,
होता हर आकार।
लीन सभी साकार हों,
शिव में एकाकार।।
*
शिव शुभ ही शुभ रक्षते,
अशुभ तजें तत्काल।
शक्ति सहायक हो सदा,
शेष न रहे बबाल।।
*
शिव हरदम संक्रांत हैं,
शिव पल-पल विक्रांत।
शिव न कभी उद्भ्रांत हों,
शिव न कभी दिग्भ्रांत।।
*
परम शांति हैं, क्रांत भी,
शिव परिवर्तन शील।
श्यामछिद्र बनकर सतत,
रहे अशुभ हर लील।।
*
१४.१.२०१८
सरिता विहार दिल्ली

शनिवार, 13 जनवरी 2018

दोहा दुनिया

शिव न कर्म करते कभी,
होकर मोहाधीन।
शिव न कर्म तजते कभी,
हो भय-द्रोहाधीन।।
*
शिव जी परम प्रशांत हैं,
शिव ही परम अशांत।
काम क्रोध मद जयी हैं,
होते कभी न भ्रांत।।
*
शिव को बाहर खोज मत,
अंतर्मन में झांक।
शिव तत्त्वों का आइना,
लेकर खुद को आंक।।
*
शिव सत-सुंदर समुच्चय,
शिव ही हैं जग-प्राण।
सत्-चित्-आनंद हैं शिवा,
शिव बिन सब निष्प्राण।।
*
जो सब का शुभ सोचकर,
करता सारे काम।
सच्चा शिव-पूजक वही,
रहता सदा अनाम।।
***
१३.१.२०१८

शुक्रवार, 12 जनवरी 2018

दोहा दुनिया


शिव से यह संसार है, शिव का यह संसार।
शिव में यह संसार है, शिव अंसार में सार।।
*
जीव रूप शिव लिंग हैं, आत्म रूप शिव बिंदु।
देह रूप शिव पिंड हैं, नेह रूप शिव सिंधु।।
*
शिव से मोह न कीजिए, शिव से रहें न दूर।
शिव आराधें स्नेह से, शिव चाहें भरपूर।।
*
शिव जी शुभ संकल्प हैं, शिव का नहीं विकल्प।
निमिष-निमिष हैं एक शिव, कल्प-कल्प शिव तल्प।।
*
शिव भावों से शून्य हैं, शिव ही सारे भाव।
शिव अतिरेकी हैं नहीं, शिव में नहीं अभाव।।
*
भावाभाव न शंभु में, शिव थिर शांत स्वभाव।
कोई नहीं जिस पर न शिव, छोड़ें अमिट प्रभाव।।
*
सहज सरल शिव मति विमल, शिव कुशाग्र मतिधीर।
परमानंदित शिव रहें, शिव जीतें हर पीर।।
***
२२.१.२०१८
सरिता विहार, दिल्ली

गुरुवार, 11 जनवरी 2018

दोहा दुनिया

निंगा देव विराट हैं,
वनवासी के इष्ट।
बड़ा देव बनकर भरें,
सबके सभी अनिष्ट।।
*
बड़े-बड़े संकट मिटा,
कंटक कर-कर दूर।
अमरकंटकी ने किया,
सबका शुभ भरपूर।।
*
अनगिन कार्य महान कर,
महादेव पा नाम।
जीवों के स्वामी हुए,
पशुपति पूज्य सुनामी।
*
बेकल मन में कल बसी,
मेकल बसे शशीश।
जलपति, नभपति विरुद पा,
वनद-वनज पृथ्वीश।।
*
शंकाओं के शत्रु बन,
देते हैं विश्वास।
श्रद्धा होती सहचरी,
जगजननी सायास।।
*
वनवासी श्यामांग शिव,
श्रेष्ठिजनों प्रिय गौर।
गौरा संग नित रमण कर,
हुए सृष्टि सिरमौर।।
*
नहीं असंभव कुछ रहा,
करें सतत कल्याण।
हों प्रसन्न वरदान दें,
रूठें ले लें प्राण।।
*
काल आप भयभीत हो,
शिव का ऐसा तेज।
रूठ मौत को मौत दें,
यम को यमपुर भेज।।
"
रौद्र रूप देखे डरे,
थर-थर कांपे सृष्टि।
आंख दिखा दे रुद्र को,
कहीं न ऐसी दृष्टि।।
***
११.१.२०१८
दत्त भवन, नोएडा

बुधवार, 10 जनवरी 2018

दोहा दुनिया

शिव सत हैं, शिव सनातन,
शिव का आदि न अंत।
शिव सा भोगी कौन है
शिव सा योगी-संत।।
*
सती असत को सत करें,
शिव न सती से भिन्न।
रहें हमेशा मुदित शिव
होते कभी न खिन्न।।
*
सत से जग-कल्याण हो,
रहो असत निरपेक्ष।
सृष्टि सतासत का मिलन,
दृष्टि सत्य-सापेक्ष।।
*
सत प्रकाश छाया असत,
शिव दोनों में व्याप्त।
शिवा मोह-माया मुदित,
रचना करतीं आप्त।।
*
मिलें शिवा-शिव तत्व जब,
हो चेतन-जड़ युक्ति।
खेल खेलते-खिलाते,
जब तक हो न विमुक्ति।।
*
शिव जड़ को संजीव कर,
देते आत्म-प्रबोध।
सलिल-धार बनकर शिवा,
दूर करें अवरोध।।
*
शिवा समर्पित साधना,
शिवा नर्मदा-नेह।
मन्वन्तर तक शिव-शिवा,
पूज्य नहीं संदेह।।
***
१०.१.२०१८
दत्त भवन, नोएडा

द्विपदी/शे'र

हम न होते जो आप जैसे तो
हममें रिश्ता कभी न हो पाता

मंगलवार, 9 जनवरी 2018

मुक्तिका

कलम खामोश क्यों?
*
तीन-पांच कर रही है,
राजनीति दिन-रात।
जनप्रतिनिधि जन से करें,
घात कहें सौगात।।
देश मदहोश क्यों?
क़लम ख़ामोश क्यों?
*
अफसरशाही चूसती,
आमजनों का खून।
लोकतंत्र का खा रही,
भर्ता पल-पल भून।
देश बेहोश क्यों?
क़लम ख़ामोश क्यों?
*
धनी अधिक धनवान हो,
निर्धन अधिक गरीब।
सांसों-आसों को मिली,
निश-दिन हाय! सलीब।
शेर खरगोश क्यों?
कलम खामोश क्यों?
***
गोंडवाना एक्सप्रेस, बी ३, ५७
९.१.२०१८

navgeet

नवगीत:
निर्माणों के गीत गुँजायें...
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
चलो सड़क एक नयी बनायें,
निर्माणों के गीत गुँजायें...
*
मतभेदों के गड्ढें पाटें,
सद्भावों की मुरम उठायें.
बाधाओं के टीले खोदें,
कोशिश-मिट्टी-सतह बिछायें.
निर्माणों के गीत गुँजायें...
*
निष्ठां की गेंती-कुदाल लें,
लगन-फावड़ा-तसला लायें.
बढ़ें हाथ से हाथ मिलाकर-
कदम-कदम पथ सुदृढ़ बनायें.
निर्माणों के गीत गुँजायें...
*
आस-इमल्शन को सींचें,
विश्वास गिट्टियाँ दबा-बिछायें.
गिट्टी-चूरा-रेत छिद्र में-
भर धुम्मस से खूब कुटायें.
निर्माणों के गीत गुँजायें...
*
है अतीत का लोड बहुत सा,
सतहें समकर नींव बनायें.
पेवर माल बिछाये एक सा-
पंजा बारम्बार चलायें.
निर्माणों के गीत गुँजायें...
*
मतभेदों की सतह खुरदुरी,
मन-भेदों का रूप न पायें.
वाइब्रेशन-कोम्पैक्शन कर-
रोलर से मजबूत बनायें.
निर्माणों के गीत गुँजायें...
*
राष्ट्र-प्रेम का डामल डालें
प्रगति-पन्थ पर रथ दौड़ायें.
जनगण देखे स्वप्न सुनहरे,
कर साकार, बमुलियाँ गायें.
निर्माणों के गीत गुँजायें...
*
श्रम-सीकर का अमिय पान कर,
पग को मंजिल तक ले जाएँ.
बनें नींव के पत्थर हँसकर-
काँधे पर ध्वज-कलश उठायें.
निर्माणों के गीत गुँजायें...
*
टिप्पणी:
१. इमल्शन = सड़क निर्माण के पूर्व मिट्टी-गिट्टी की पकड़ बनाने के लिये डामल-पानी का तरल मिश्रण, पेवर = डामल-गिट्टी का मिश्रण समान मोती में बिछानेवाला यंत्र, पंजा = लोहे के मोटे तारों का पंजा आकार, गिट्टियों को खींचकर गड्ढों में भरने के लिये उपयोगी, वाइब्रेटरी रोलर से उत्पन्न कंपन तथा स्टेटिक रोलर से बना दबाव गिट्टी-डामल के मिश्रण को एकसार कर पर्त को ठोस बनाते हैं, बमुलिया = नर्मदा अंचल का लोकगीत.
२. इस रचना में नवगीत के तत्व न्यून हैं किन्तु सड़क-निर्माण की प्रक्रिया वर्णित होने के कारण यह प्रासंगिक है.
***

tasalees: suraj

तसलीस (उर्दू त्रिपदी)                                                                                      
सूरज 
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
बिना नागा निकलता है सूरज,
कभी आलस नहीं करते देखा.
तभी पाता सफलता है सूरज..
*
सुबह खिड़की से झाँकता सूरज,
कह रहा जग को जीत लूँगा मैं.
कम नहीं खुद को आंकता सूरज..
*
उजाला सबको दे रहा सूरज,
कोई अपना न पराया कोई.
दुआएं सबकी ले रहा सूरज..
*
आँख रजनी से चुराता सूरज,
बाँह में एक, चाह में दूजी.
आँख ऊषा से लड़ाता सूरज..
*
जाल किरणों का बिछाता सूरज,
कोई चाचा न भतीजा कोई.
सभी सोयों को जगाता सूरज..
*
भोर पूरब में सुहाता सूरज,
दोपहर-देखना भी मुश्किल हो.
शाम पश्चिम को सजाता सूरज..
*
काम निष्काम ही करता सूरज,
मंजिलें नित नयी वरता सूरज.
खुद पे खुद ही नहीं मरता सूरज..
 *
अपने पैरों पे ही बढ़ता सूरज,
डूबने हेतु क्यों चढ़ता सूरज?
भाग्य अपना खुदी गढ़ता सूरज..
*
लाख़ रोको नहीं रुकता सूरज,
मुश्किलों में नहीं झुकता सूरज.
मेहनती है नहीं चुकता सूरज..
*****

सोमवार, 8 जनवरी 2018

taanka

तांका सलिला 
*
सियासत है 
तीन-पांच का खेल
किंतु बेमेल.
जनता मजबूर
मरी जा रही झेल.
*
बाप ना बेटा
सिर्फ सत्ता है प्यारी.
टकराते हैं
अपने स्वार्थ हित
जनता से गद्दारी.
*
खाते हैं मेवा
कहते जनसेवा.
देवा रे देवा
लगा दे पटकनी
बना भी दे चटनी.
*
क्यों करेगी
किसी से छेड़छाड़
कोई लड़की?
अगर है कड़की
करेगी डेटिंग
*
कुछ गलत
बदनाम हैं सभी.
कुछ हैं सही
नेकनाम न सब.
किसका करतब?
*

laghukatha


लघुकथा-
गुरु जी 
*
मुझे आपसे बहुत कुछ सीखना है, क्या आप मुझे शिष्य बना नहीं सिखायेंगे? 
बार-बार अनुरोध होने पर न स्वीकारने की अशिष्टता से बचने के लिए सहमति दे दी। रचनाओं की प्रशंसा, विधा के विधान आदि की जानकारी लेने तक तो सब कुछ ठीक रहा। 
एक दिन रचनाओं में कुछ त्रुटियाँ इंगित करने पर उत्तर मिला- 'खुद को क्या समझते हैं? हिम्मत कैसे की रचनाओं में गलतियाँ निकालने की? मुझे इतने पुरस्कार मिल चुके हैं।  फेस बुक पर जो भी लिखती हूँ सैंकड़ों लाइक मिलते हैं।  मेरी लिखे में गलती हो ही नहीं सकती।  आइंदा ऐसा किया तो...' 


आगे पढ़ने में समय ख़राब करने के स्थान पर शिष्या को ब्लोक कर चैन की सांस लेते कान पकड़े कि अब नहीं  बनेंगे किसी के गुरु। ऐसों को गुरु नहीं गुरुघंटाल ही मिलने चाहिए। 
***

laghukatha

लघुकथा 
खाँसी 
*
कभी माँ खाँसती, कभी पिता. उसकी नींद टूट जाती, फिर घंटों न आती। सोचता काश, खाँसी बंद हो जाए तो चैन की नींद ले पाए।  
पहले माँ, कुछ माह पश्चात पिता चल बसे।  उसने इसकी कल्पना भी न की थी.
अब करवटें बदलते हुए रात बीत जाती है, माँ-पिता के बिना सूनापन असहनीय हो जाता है।  जब-तब लगता है अब माँ खाँसी, अब पिता जी खाँसे।
तब खाँसी सुनकर नींद नहीं आती थी, अब नींद नहीं आती है कि सुनाई दे खाँसी।
***

doha

दोहा दुनिया
लज्जा या निर्लज्जता, है मानव का बोध
समय तटस्थ सदा रहे, जैसे बाल अबोध

दोहा शिव

शिव-सत्ता सत पर टिकी, करें सृष्टि कल्याण।
स्वार्थ नहीं सर्वार्थ ही, करें सर्व-कल्याण।।
*
नियति-प्रकृति का झूमना, शिव नर्तन लें जान।
करें प्रकृति संहार तो, संकट में हो जान।।
*
पार्वती पर्वतसुता, शंकर उनके इष्ट।
गिरिजा गिरि-कन्या बसें, वन में करो न नष्ट।
*
कंकर में शंकर बसें, कंकर मिलें पहाड़।
झाड़-लता जंगल बनें, बसते सिंह दहाड़।।
*
सर्प-वृषभ वन में पलें, हों रुद्राक्ष अनेक।
संग पखेरू-पशु रहें, कीड़े-कृमि सविवेक।।
मृदा कणों को बांधती, सलिल धार दे सींच।
कली-पुष्प को तितलियां, लें बांहों में भींच।।
*
परिपूरक हैं शिवा-शिव, संपूरक भी जान।
आत्म और परमात्म हैं, भेद न किंचित मान।।
*
८.१.२०१८

दोहा दुनिया

शिव सुरमय हैं, असुर को
सदा पढ़ाते पाठ।
सब चाहें जो वही गा,
तब ही होगा ठाठ।।
*
निज-पर हित दो शंकु ले,
रहे संतुलन पूर्ण।
राग चर्म वैराग की,
रही बिना अपूर्ण।।
*
बम-बम अनहद नाद कर,
भोले का जयघोष।
भोलेपन का आचरण,
देता सुख-संतोष।।
*
पौरुष डमरू जब बजे,
करे सफलता नृत्य।
विघ्न सर्प फुंफकार कर,
करे वंदना नित्य।।
*
कर-पग के कंगन बजे,
करते जय-जयकार।
जटा सर्पिणी झूमती,
मुदित नर्मदा- धार।।
*
उन्मीलित सरसिज नयन,
सत-शिव-सुंदर रूप।
लास-रास का समन्वय,
अद्भुत दिव्य अनूप।।
*