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सोमवार, 16 जुलाई 2012

ग़ज़ल: जब जब.... --मैत्रयी अनुरूपा

ग़ज़ल:

जब जब....

मैत्रयी अनुरूपा
*

जब जब उनसे बातें होतीं
बेमौसम बरसातें होतीं
 
जब भी खेले खेल किसी ने
केवल अपनी मातें होतीं
 
सपने सुख के जिनमें आते
काश कभी वो रातें होती
 
कुर्सी को तो मिलती आईं
हमको भी सौगातें होती
 
अनुरूपा की कलम चाहती
कभी दाद की पांतें होती
*******************
maitreyi_anuroopa@yahoo.com 

स्मरण: साहिल सहरी --आदिल रशीद

स्मरण:

साहिल सहरी

आदिल रशीद
 



Aadil Rasheed

*
मैं लौटने के इरादे से जा रहा हूँ मगर 
सफ़र सफ़र है मेरा इंतज़ार मत करना ..  साहिल सहरी
हिंदी उर्दू साहित्य मे दिलचस्पी रखने वाला शायद ही कोई  शख्स हो जिस ने ये शेर न सुना हो ये मशहूर शेर साहिल सहरी नैनीताली का है जिन्होंने कभी दिमाग  का कहना नहीं माना, हमेशा दिल का कहना ही किया उसी दिल ने आज उनके साथ बेवफाई की और धड़कन बंद हो जाने के सबब आज सुब्ह ८.30 बजे  उनका निधन हो गया... अल्लाह उन्हें जन्नत मे ऊँचा  मुकाम अता फरमाए.
साहिल सहरी का जन्म 4  नवम्बर 1949   को नैनीताल में हुआ उनका असली नाम रहीम खान था. उनके पिता रहमत अली खान भी एक उस्ताद शायर थे और अह्कर देहलवी तखल्लुस फरमाते थे. उनकी माँ और साहिल सहरी की दादी पुरानी दिल्ली के एक इल्मी अदबी बाजौक घराने से तआल्लुक रखती थी. इसलिए उन्होंने अपने तखल्लुस में नैनीताल के होते हुए भी दिल्ली की निस्बत को प्राथमिकता दी. इस तरह ये बात दलील के साथ कही जा सकती है कि साहिल सहरी को शायरी का ज्ञान विरासत में मिला और शायरी उनके खून में शामिल थी.
साहिल सहरी के लिए यह बात कही जा सकती है की जो लोग उनके पास उठे-बैठे वो शायर हो गए तो भला साहिल सहरी साहिब की पत्नि उनके प्रभाव से कैसे बचतीं साहिल सहरी की पत्नि निशात साहिल ने भी उनके रहनुमाई में बड़ी पुख्ता शायरी की है. उनकी औलादों में 6   बेटियां, 1 बेटा है. एक बहुत पुरानी कहावत है कि  मछली के बच्चों को तैराकी सीखनी नहीं पड़ती, ये हुनर उनमें  पैदाइशी होता है. साहिल सहरी की औलादों में भी शायरी के गुण पाये गये. उनकी बेटियों ने वालिद के नक़्शे-क़दम पर चलते हुए हमेशा मेआरी शायरी की है. उनकी एक बेटी तरन्नुम निशात ने अपने मेंआरी कलाम से अदब की खूब खिदमत की और शादी के बाद अपने परिवार को समय देने के  कारण खुद को मुशायरों से दूर कर लिया लेकिन शेर अब भी कहती हैं. उनकी छोटी बेटी नाजिया सहरी इस समय  मुशायरों में बहुत कामयाब शायरा है तथा पूरे भारत में उनको पसंद किया जाता है.
मरहूम साहिल सहरी से मेरी बड़ी कुर्बत थी. वे हमेशा मेरा हौसला बढ़ाते थे और जब देहली आते तो ज़रूर मुलाक़ात करते. उनसे मेरी  पहली मुलाक़ात तब हुई थी जब मैंने और हामिद अली अख्तर ने एक कुल हिंद मुशायरा बा उनवान "एक शाम डाक्टर ताबिश मेहदी के नाम" दिल्ली में कराया था. इसमें साहिल सहरी के शागिर्द मशहूर शायर और नाज़िमे मुशायरा एजाज़ अंसारी ने उन्हें आमंत्रित किया था. वे अपने बेहद अज़ीज़ शागिर्द जदीद लहजे के मुनफ़रिद शायर व् कवि और उत्तरांचल पावर कारपोरेशन में  DGM  के पद पर कार्यरत जनाब इकबाल आज़र के साथ तशरीफ़ लाये थे. इकबाल आज़र साहेब में एक खास बात यह है की वे ब यक वक़्त उर्दू और हिंदी भाषा में शायरी करते हैं जो की एक व्यक्ति का दायें और बाएं हाथ से लिखने जैसा बेहद कठिन काम है लेकिन इकबाल आज़र  साहेब उसको उतनी ही आसानी से कर लेते है जितनी आसानी से नट रस्सी पर सीधा चलता है.
साहिल सहरी साहब ने मुझे बहुत से मुशायरों में खुद भी बुलाया और  दूसरी जगह भी प्रमोट किया, यह कह कर कि   "अच्छी शायरी  को अच्छे  लोगों तक पहुंचना चाहिए. यह हम अदीबों की ज़िम्मेदारी है. मैं स्वयं  भी और मेरी टूटी-फूटी शायरी भी उनके इस सच्चे जज्बे की हमेशा ममनून रहेगी. मरहूम बड़े साफ़ दिल, बड़ी साफ़-साफ़ बात करने वाले इंसान थे किसी तरह की मसलहत और गीबत को बिलकुल पसंद नहीं करते थे.
एक बार उनका यही मिसरा " सफ़र सफ़र है मेरा इंतज़ार मत करना" तरही के तौर पर दिया गया जिस पर मैं ने कुछ यूँ गिरह लगायी जो उनके इस बड़े शेर से बिलकुल उलट थी के
ये बात सच है मगर कह के कौन जाता है 
" सफ़र सफ़र है मेरा इंतज़ार मत करना"
                                                                                                               - आदिल रशीद,2005
 कुछ "अजब से लोगों ने"  कुछ "अजब से अंदाज़" में उनको ये शेर सुनाया और उनको "कुछ अजब" से मतलब समझाने चाहे. उन्होंने उन्हें कोई भी उत्तर दिए बिना जेब से मोबाइल निकालकर उन लोगों के सामने ही मुझे फ़ोन लगाया और आदत अनुसार हँसते हुए कहा "बरखुरदार मुबारक हो हमारा रिकॉर्ड तोड़ दिया". मैं सटपटा गया और घबराते हुए मैं ने कहा  "उस्ताद मैं समझा नहीं" तो उन्होंने हँसते हुए बगैर किसी का नाम लेते हुए कहा "कुछ लोग मुझे  तुम्हारा ये शेर सुना रहे हैं जो तुमने मेरे मिसरे पर मिसरा लगाया है, मैं ने सोचा के तुमने अच्छा काम किया है तो इनके सामने ही तुम्हें  मुबारकबाद दे दूँ". मेरे उस वक़्त भी और बाद में भी कई कई बार इल्तिजा करने पर भी उन्होंने मुझे उन "अजीब से लोगों" के नाम कभी नहीं बताये और अब अगर वो उनके नाम बताना भी चाहें तो बता नहीं सकते क्योंकि रूहें बोलती नहीं. उनको  अपनी बात कहने के लिये जिस्म  की ज़रुरत होती है और जिस्म तो आज सुपुर्दे खाक हो गया.
मैं ने जब-जब उनसे ऐसे "अजीब आदमी नुमा प्राणियों" के विषय में बात की उन्होंने यही कहा 'आदिल मियां तुम अपना काम {साहित्य सेवा} करते रहो इस साहित्य के सफ़र में तुमको अभी बहुत से अजीब अजीब प्राणी मिलेंगे'.

साहिल सहरी भी पेशे से घडी साज़ थे और मैं भी पेशे से घडी साज़. एक बार जब  मैं ने उन्हें अपना ये शेर सुनाया
''औरों की घड़ियाँ हमने संवारी हैं रात दिन -
और अपनी इक घडी की हिफाज़त न कर सके"
तो उनकी आँख नम हो गई और उन्होंने मेरे सर पर हाथ रख कर मुबारकबाद दी और कहा मुझे ख़ुशी के साथ अफ़सोस है  आदिल रशीद कि यह शेर मुझे कहना चाहिए था.
मरहूम साहिल सहरी सच्चे शायर सच्चे इंसान थे उन्होंने कभी मुशायरे पढने के लिए जोड़-तोड़ की राजनीती नहीं की, कभी दाद हासिल करने के लिए अपने ही बन्दों द्वारा फरमाइश की पर्ची भेजने का भोंडा ढोंग भी नहीं किया. वे अपने आपको संतुष्ट करने के लिए शेर कहते थे. अच्छे शेर कहने और सुनने का उन्हें जूनून था. अक्सर रात के पिछले पहर उनका फोन आ जाता और हमेशा की तरह  वही एक जुमला होता "भाई, कोई अच्छा शेर सुना दो". जब  मैं अपना या अपने हाफ़िज़े में से किसी और का कोई अच्छा शेर उन्हें सुना देता तो एक लम्बी ठंडी सांस लेते हुए कहते अब नींद आ जायेगी. वे  अक्सर शेर कहने के लिए पूरी-पूरी रात जागते  इसीलिए उन्होंने कहा
''ये हमसे पूछो के किस तरह शेर होते हैं
के हम सहर की अजानो के बाद सोते हैं''
साहिल सहरी के उस्ताद कुंवर महिंदर सिंह बेदी "सहर" थे, इसीलिए वे सहरी लिखते थे. साहिल सहरी कुंवर महिंदर सिंह बेदी "सहर" जिन्हें सब "आली जा " कहते थे के बेहद अज़ीज़ शागिर्द थे, जिसका ज़िक्र आली जा ने 'यादों का जश्न' में बड़ी ही मुहब्बत से किया है, जो लोग आली जा की ज़िदगी में आली जा से एक मुलाक़ात करने या आली जा का शागिर्द होने के लिए साहिल सहरी के आगे-पीछे घूमते थे आली जा की आँखे बंद होते ही उन्हीं लोगों ने उनके पीछे से गाल बजाने शुरू कर दिए लेकिन उनके मरते दम तक उनके सामने नज़रें उठाने की हिम्मत न कर सके.
उन्हें हमेशा इस बात का गिला रहा कि लोगों ने उनसे लिया तो बहुत कुछ मगर उन्हें उसका सिला जो उनका  हक था वो तक  कभी नहीं दिया. कच्ची मिटटी के ऐसे कई दिये हैं जिन्हें साहिल सहरी ने आफ़ताब किया था, लेकिन मौक़ा पड़ने पर उन्होंने अपने मुहसिन का हाथ जलाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी.
साहिल सहरी साहिब से मशवरा करनेवालों की गिनती यूँ तो बहुत ही जियादा है लेकिन चन्द शागिर्द जिनका नाम साहिल सहरी साहिब बड़े ही फख्र से लेते थे उनमें ख्याल खन्ना कानपुरी, मशहूर नाजिम ऐ मुशायरा एजाज़ अंसारी दिल्ली, इकबाल आजर देहरादून, वसी अहमद वसी फरुखाबाद, अबसार सिद्दीकी खटीमा, शकील सहर एटवी के नाम काबिले ज़िक्र हैं.
उनका एक ग़ज़ल संग्रह "सफ़र सफर है" 2005 में प्रकाशित होकर मशहूर हो चुका था और उनकी ज़िन्दगी में ही उनके अज़ीज़ शागिर्द इकबाल आजर साहेब के हाथों उनकी दूसरी किताब पर काम शुरू हो चुका था जिसे अब जनाब इकबाल आजर "कुल्लियाते साहिल सहरी " के नाम से मुरत्तब कर रहे हैं जो जल्द प्रकाशित होगा.
साहिल सहरी को अनेको सम्मान मिले. दूरदर्शन, आकाशवाणी, ऍफ़ एम् चैनलों पर उनका कलाम प्रसारित हुआ तथा भारत और भारत से बाहर पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ.       
एक समय पर मुशायरों पर राज करने वाला बड़ा शायर, मुशायरे के माईक से शेर की तरह दहाड़ने वाला शायर {जिसकी नकल करके बहुत से शायर मुशायरों में बहुत कामयाब हुए} अपनी बढ़ती उम्र के साथ रफ्ता-रफ्ता मुशायरों से दूर होता गया और आखिरकार आज दुनिया से भी दूर हो गया लेकिन अगर वो चाहे भी तो साहित्य और साहित्य प्रेमियों के दिल से दूर नहीं हो सकता उनके कहे अशआर अदब पारों में हमेशा महफूज़ रहेंगे.
--
aadil.rasheed1967@gmail.com

कविता सब से मधुर संगीत ---लक्ष्मीनारायण गुप्त

कविता 




सब से मधुर संगीत

 
---लक्ष्मीनारायण गुप्त
*
सुने हैं मैंने बहुत सारे वाद्य
बहुत सारे संगीत
हिन्दुस्तानी, कर्नाटक
पाश्चात्य पक्का संगीत
ऑपेरा, राक
जैज़ और लोक संगीत
बोलीवुड ,होलीवुड
ग़ज़ल और गीत
मन को सब भाए हैं 
सुन-गुनकर 
बहुत सुख पाए हैं
किन्तु सब से मधुर संगीत
मैं ने जो पाया है
धेवतों की किलकारियों ने
मन भरमाया है
रेशम और एका के सुनहरे बोल
नाना के कानों को 
लगते अनमोल
कृतज्ञ हूँ 
मैंने बहुत कुछ पाया है
सबसे मधुर संगीत 
नातियों ने सुनाया है


Laxmi Gupta  lngsma@rit.edu

रविवार, 15 जुलाई 2012

The real story: Paid in full --Narayanan kutty.

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  Narayanan...

One day, a poor boy called Howard Kelly, who was selling goods from door to door to pay his way through school, found he had only one thin dime left, and he was hungry.

He decided he would ask for a meal at the next house. However, he lost his nerve when a lovely young woman opened the door.

Instead of a meal he asked for a glass of water! . She looked at him and thought he looked hungry so brought him a large glass of milk. He drank it so slowly, and then asked, "How much do I owe you madam?"

You don't owe me anything," she replied. "Mother has taught us never to accept pay for a kindness."

He was so grateful and said ... "Then I thank you from my heart."

As Howard Kelly left that house, he not only felt stronger physically, but hisfaith in God and man was strong also. He had been ready to give up and quit.

Many year's later that same young woman became critically ill. The local doctors were baffled. They finally sent her to the big city, where they called in specialists to study her rare disease.

Dr.Howard Kelly was called in for the consultation. When he heard the name of the town she came from, a strange light filled his eyes.

Immediately he rose and went down the hall of the hospital to her room. Dressed in his doctor's gown he went in to see her. He recognized her at once.
He went back to the consultation room determined to do his best to save her life. From that day he gave special attention to her case.

After a long struggle, the battle was won.

Dr. Kelly requested the business office to pass the final bill to him for approval. He looked at it, then wrote something on the edge, and the bill was sent to her room. She feared to open it, for she was sure it would take the rest of her life to pay for it all. Finally she looked, and something caught her attention on the side of the bill. She read these words ...

"Paid in full with one glass of milk"

(Signed) 
Dr. Howard Kelly.

Tears of joy flooded her eyes as her happy heart prayed: "Thank You, God, that Your love has spread broad through human hearts and hands."
There's a saying which goes something like this: Bread cast on the water comes back to you. The good deed you do today may benefit you or someone you love at the least expected time. If you never see the deed again at least you will have made the world a better place - And, after all, isn't that what life is all about?

Now you have two choices.

1. You can send this page on and spread a positive message.

Or 
 
2. Ignore it and pretend it never touched your heart.

The hardest thing to learn in life is which bridge to cross and who to cross with.....
 
***

गद्य गीत: वर्षा -- किरण







*
हर किसी ने मन रूपी नेत्रों से तुम्हे अलग-अलग रूपों में देखा.
 
कहीं किसी ने प्रेम का प्रतीक मान प्रेम बांटते देखा,  तो कहीं किसी ने वियोग में विरहनी बन अश्रु धारा बहाते देखा!

कभी किसी ने हर्षित चंचला बन मचलते देखा, तो कहीं रूद्र रूप धारण कर साधारण जन को अपनी शक्ति से डराते देखा !

किसी ने इन नन्ही नन्ही बूंदों में  जीवन के हर पड़ाव को आते-जाते देखा, कहीं किसी ने चातक बन अपने सपनों को पूरा होते देखा !
मैंने अपने जीवन में तुम्हें को मन का अवसाद धोते देखा, माँ बन कर तन को, मन को, धोते-स्वच्छ करते देखा! 
माँ वर्षा तुम हर वर्ष विभिन्न रूपों में ऐसे ही आते रहना भीगा-भीगा, प्यारा-प्यारा खुशहाली बरसाता आशीर्वाद देते रहना !
*
"kiran" <kiran5690472@yahoo.co.in>

गजल: बारिश --मदन मोहन शर्मा







*
या तो अवधूतों की बारिश
या फिर मजबूतों की बारिश.

जिंदा लाशों की बस्ती में 
अब जैसे भूतों की  बारिश.
चंद सवालों की रिमझिम सी 
फिर  चप्पल-जूतों की बारिश.

उजले मुंह काले कर देगी 
काली करतूतों की बारिश.

सबके द्वार कहाँ होती है 
अपने बल-बूतों की बारिश.
*
Madan Mohan Sharma  madanmohanarvind@gmail.com

POEM: THE FINAL INSPECTION


POEM:

THE FINAL INSPECTION



 *

सच्चा मित्र:real friend --सलिल

सच्चा मित्र: सलिल 


उन्नति करते आप, जानते मित्र तुरत ही आप कौन-क्या?
अवनति में यह आप जानते, कौन मित्र पाया है सच्चा??
भले समय में साथ कई दें, उन्हें न अपना मित्र मानिये.
बुरे समय में साथ रहें जो, उनको सच्चा मित्र जानिए..
समय और संसाधन अपने देकर मित्र बढ़ाते आगे.
मदद हेतु वे आते आगे, तभी नया जब पीठ दिखाते..



*****
real friend 

 


 *

आज का विचार, Thought of the Day, salil

 
आज का विचार: 
 सलिल
विधि की कैसी विडंबना है?
जो करते हैं कद्र हमारी 
उनकी करी उपेक्षा हमने.
जो करते हैं हमें उपेक्षित 
उन्हें बिठाया सर पर हमने.
जिसने आहत किया उसी पर 
हमने खुद को वार दिया है.
उसको आहत किया हमेंशा 
जिसने हमको प्यार किया है। 
*
Thought of the Day:









 *

शनिवार, 14 जुलाई 2012

गीत: हारे हैं... संजीव 'सलिल'

गीत:

हारे हैं...





संजीव 'सलिल'
*
कौन किसे कैसे समझाए
सब निज मन से हारे हैं?.....
*



इच्छाओं की कठपुतली हम
बेबस नाच दिखाते हैं.
उस पर भी तुर्रा यह खुद को
तीसमारखाँ पाते हैं.
रास न आये सच कबीर का
हम बुदबुद गुब्बारे हैं...
*


बिजली के जिन तारों से
टकरा पंछी मर जाते हैं.
हम नादां उनसे बिजली ले
घर में दीप जलाते हैं.
कोई न जाने कब चुप हों
नाहक बजते इकतारे हैं...
*


पान, तमाखू, जर्दा, गुटका,
खुद खरीदकर खाते हैं.
जान हथेली पर लेकर
वाहन जमकर दौड़ाते हैं.
'सलिल' शहीदों के वारिस,
या दिशाहीन गुब्बारे हैं...
*



करें भोर से भोर शोर हम,
चैन न लें, ना लेने दें.
अपनी नाव डुबाते, औरों को
नैया ना खेने दें.
वन काटे, पर्वत खोदे,
सच हम निर्मम हत्यारे है...
*




नदी-सरोवर पाट दिये,
जल-पवन प्रदूषित कर हँसते.
सर्प हुए हम खाकर अंडे-
बच्चों को खुद ही डंसते.
चारा-काँटा फँसा गले में
हम रोते मछुआरे हैं...
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in



मुक्तिका: मुहब्बत संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

मुहब्बत




संजीव 'सलिल'
*
खुदा की हसीं दस्तकारी मुहब्बत,
इन्सां की है ह्स्तकारी मुहब्बत।
*



चक्कर पे चक्कर लगाकर थको जब,
तो बोलो उसे लस्तकारी मुहब्बत।
*
 


भेजे संदेशा, न मन में भरोसा,
कहें क्यों करें? कष्टकारी मुहब्बत।
*


दुनिया को जीता मगर दिल को हारा,
दिलवर यही पस्तकारी मुहब्बत।
*



रखे एक पर जब नजर दूसरा तो,
कहते उसे गश्तकारी मुहब्बत।
*



छिपे धूप से रवि, शशि चांदनी से,
यही है यही अस्तकारी मुहब्बत।
*



मन से मिले मन, न मिलकर हो उन्मन,
मन न भरे, मस्तकारी मुहब्बत।
*



'सलिल' एक रूठे, मनाये न दूजा,
समझिए हुई ध्वस्तकारी मुहब्बत।
*

मिलकर बिछड़ते, बिछड़कर मिलें जो,
करते 'सलिल' किस्तकारी मुहब्बत।
*




Acharya Sanjiv verma 'Salil'

http://divyanarmada.blogspot.com

http://hindihindi.in



मुक्तिका: कैसे-कैसे लोग---- डॉ. अ. कीर्तिवर्धन

मुक्तिका: 

कैसे-कैसे लोग---- 

डॉ. अ. कीर्तिवर्धन
*
अक्सर उनसे डरते लोग, 
महज दिखावा करते लोग| 

हम भी यह सब खूब समझते, 
चापलूसी क्यूँ करते लोग? 

वो हैं चोरों के सरदार, 
कहने से क्यूँ डरते लोग? 

सफ़ेद भेडिये खुले घूमते, 
क्यूँ नहीं उन्हें पकड़ते लोग? 

कहते हैं सब बे ईमान , 
क्यूँ नहीं उन्हें बदलते लोग? 

अबकी बार चुनाव होगा , 
फिर से उन्हें चुनेंगे लोग| 

लूट रहे जो अपने देश को 
कहते देश भक्त हैं लोग|
****

मुक्तिका: बात अंतःकरण की शेष धर तिवारी

मुक्तिका:

बात अंतःकरण की

शेष धर तिवारी


*
 बात अंतःकरण की स्वीकार कर लूं
और थोड़ी देर तक मनुहार कर लूं

कौन जाने कल मुझे तुम भूल जाओ 
आज तो जी भर तुम्हे मैं प्यार कर लूं

बुद्धि मेरी, जो समझ पायी न तुमको
आज उसके साथ दुर्व्यवहार कर लूं

मत परोसो अब मुझे सपने सलोने
मैं किसी से तो उचित व्यवहार कर लूं

आँसुओं को व्यर्थ मैं कब तक बहाऊँ
क्यूँ न पीकर मैं उन्हें अब हार कर लूं

शब्द जिह्वा पर युगों से हैं तड़पते
दे सहज वाणी उन्हें साकार कर लूं

एक शाश्वत  सत्य को समझा न पाया
इस अपाहिज झूंठ का प्रतिकार कर लूं

"प्यार तो बस आत्मघाती रोग सा है"
मैं इसे ही अब सफल हथियार कर लूं

दण्ड अपने आपको मैं दे सकूं तो
आत्मा को सत्य के अनुसार कर लूं

सत्य जागा नीद से अंगडाइयां ले
झूठ का मैं भी न क्यूँ व्यापार कर लूं

और सह सकता नही मैं, सोचता हूँ
रेशमी आगोश का आसार कर लूं

********

गुरुवार, 12 जुलाई 2012

लघु कथा: short story: सच्चा प्रेम true love

लघु कथा: सच्चा प्रेम 

एक गरीब आदमी अपनी पत्नी के साथ रहता था। 

 एक दिन पत्नी ने अपने लिए एक कंघे की फरमाइश की ताकि वह अपने लम्बे बालों की देखभाल ठीक से कर सके। पति ने बहुत दुखी मन से मना करते हुई बताया कि पैसे न होने के कारण वह अपनी घड़ी का टूटा हुआ पट्टा भी नहीं सुधरवा पा रहा है। पत्नी ने अपनी बात पर जोर नहीं दिया। 

पति काम पर जाते समय एक घड़ी-दुकान के सामने से गुजरा, उसने अपनी टूटी घड़ी कम दाम पर बेचकर एक कंघा खरीद लिया। 

शाम घर आते समय वह खुश था कि अपनी पत्नी को नया कंघा दे सकेगा किन्तु अपनी पत्नी के छोटे-छोटे बाल देखकर चकित रह गया। उसकी पत्नी अपने बाल बेचकर घड़ी का नया पट्टा हाथ में लेकर खड़ी थी। 

यह देखकर दोनों की आँखों से एक साथ आँसू बहने लगे। यह अश्रुपात अपना प्रयास के विफल होने के कारण न होकर एक दूसरे के प्रति पारस्परिक प्रेम के आधिक्य के कारण था। 

वास्तव में प्यार करना कुछ नहीं है, प्यार पाना कुछ उपलब्धि है किन्तु प्यार करने के साथ-साथ प्रेमपत्र का प्यार पाना ही सच्ची उपलब्धि है। प्यार को अपने आप मिली वास्तु न मानें, प्यार पाने के लिए प्यार दें।



short story:

true love  

A very poor man lived with his wife. One day, his wife, who had very long hair asked him to buy her a comb for her hair to grow well and to be well-groomed. The man felt very sorry and said no.

He explained that he did not even have enough money to fix the strap of his watch he had just broken. She did not insist on her request. The man went to work and passed by a watch shop, sold his damaged watch at a low price and went to buy a comb for his wife. 

He came home in the evening with the comb in his hand ready to give to his wife. He was surprised when he saw his wife with a very short hair cut. She had sold her hair and was holding a new watch band. 

Tears flowed simultaneously from their eyes, not for the futility of their actions, but for the reciprocity of their love.

MORAL: To love is nothing, to be loved is
something but to love and to be loved by the one you love, that is EVERYTHING. Never take love for granted.:)

दोहा सलिला: --संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला: 

संजीव 'सलिल'

*
कथ्य, भाव, रस, शिल्प, लय, साधें कवि गुणवान.
कम न अधिक कोई तनिक, मिल कविता की जान..
*
मेघदूत के पत्र को, सके न अब तक बाँच.
पानी रहा न आँख में, किससे बोलें साँच..

ऋतुओं का आनंद लें, बाकी नहीं शऊर.
भवनों में घुस कोसते. मौसम को भरपूर..

पावस ठंडी ग्रीष्म के. फूट गये हैं भाग.
मनुज सिकोड़े नाक-भौं, कहीं नहीं अनुराग..

मन भाये हेमंत जब, प्यारा लगे बसंत.
मिले शिशिर से जो गले, उसको कहिये संत..

पौधों का रोपण करे, तरु का करे बचाव.
भू गिरि नद से खेलता, ऋषि रख बालक-भाव..

मुनि-मन कलरव सुन रचे, कलकल ध्वनिमय मंत्र.
सुन-गा किलकिल दूर हो, विहँसे प्रकृति-तंत्र..

पत्थर खा फल-फूल दे, हवा शुद्ध कर छाँव.
जो तरु सम वह देव है, शीश झुका छू पाँव..

तरु गिरि नद भू बैल के, बौरा-गौरा प्राण .
अमृत-गरल समभाव से, पचा हुए सम्प्राण..

सिया भूमि श्री राम नभ, लखन अग्नि का ताप.
भरत सलिल शत्रुघ्न हैं, वायु- जानिए आप..

नाद-थाप राधा-किशन, ग्वाल-बाल स्वर-राग.
नंद छंद, रस देवकी, जसुदा लय सुन जाग..

वृक्ष काट, गिरि खोदकर, पाट रहे तालाब.
भू कब्जाकर बेचते, दानव-दैत्य ख़राब..

पवन, धूप, भू, वृक्ष, जल, पाये हैं बिन मोल.
क्रय-विक्रय करते असुर, ओढ़े मानव खोल..

कलकल जिनका प्राण है, कलरव जिनकी जान.
वे किन्नर गुणवान हैं, गा-नाचें रस-खान..

वृक्षमित्र वानर करें, उछल-कूद दिन-रात.
हरा-भरा रख प्रकृति को, पूजें कह पितु-मात..

ऋक्ष वृक्ष-वन में बसें, करें मस्त मधुपान.
जो उलूक वे तिमिर में, देख सकें सच मान..

रहते भू की कोख में, नाग न छेड़ें आप.
क्रुद्ध हुए तो शांति तज, गरल उगल दें शाप..

***********************************

व्यंग्य चित्र :




व्यंग्य चित्र :
पावर स्विच मिल  तो कृपया चालू कर दें।

आज का विचार : thought of the day

आज का  विचार : thought of the day



संजीव सलिल'
*
जीवन पथ पर 
नहीं अकारण मिलता कोई .
परखे, शोषण करे, 
प्यार कर कोई सीख दे..
श्रेष्ठ वही जो- 
छिपे हुए गुण खोज निकाले.
प्यार करे, स्वीकार करे 
तुम जैसे भी हो.
रहे निकट,
तुम रखो निकट 
उनको निज उर के..
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wish for week


बुधवार, 11 जुलाई 2012

त्रिपदियाँ /तसलीस : सूरज संजीव 'सलिल'

त्रिपदियाँ /तसलीस :
सूरज

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संजीव 'सलिल'



बिना नागा निकलता है सूरज।
कभी आलस नहीं करते देखा
तभी पाता सफलता है सूरज।
 

सुबह खिड़की से झाँकता सूरज।
कह रहा तम को जीत लूँगा मैं
कम नहीं खुद को आँकता सूरज।
 

भोर पूरब में सुहाता सूरज।
दोपहर देखना भी मुश्किल हो
शाम पश्चिम को सजाता सूरज।
 

जाल किरणों का बिछाता सूरज।
कोई अपना न पराया कोई
सभी सोयों को जगाता सूरज।
 

उजाला सबको दे रहा सूरज।
अँधेरे को रहा भगा भू से
दुआएँ  सबकी ले रहा सूरज।



आँख रजनी से चुराता सूरज।
बाँह में एक चाह में दूजी 
आँख ऊषा से लड़ाता सूरज।





काम निष्काम ही करता सूरज।
नाम के लिये न मरता सूरज
भाग्य अपना खुदी गढ़ता सूरज।




 

रविवार, 8 जुलाई 2012

आज का विचार: THOUGHT OF THE DAY:

आज का विचार: THOUGHT OF THE DAY:
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अपने लिए जिए, तो क्या जिए
ऐ दिल! तू जी ज़माने के लिए .....  हिंदी चित्रपटीय गीत
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सुख पा खुश होना न ध्येय हो, खुशियाँ-सुख देना श्रेयस्कर.
अपने हित सब जीते जीवन, सबके हित जीना श्रेयस्कर..
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Being happy is nothing but making others happy is everything because everyone live for themselves but live for others is REAL LIFE.
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