लेख :
गेंदा : एक बहु उपयोगी पुष्प
संजीव वर्मा 'सलिल'
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गेंद सदृश गेंदा कुसुम, गोल; न लेकिन पोल।
सज्जा-औषधि-सुलभता, गुणी न पीटे ढोल।।
गेंदा बहु उपयोगी, सर्व सुलभ फूलों का पौधा है। नयनाभिराम दृश्य रचना, सज्जा, पुष्पगुच्छ, पुष्प हार तथा रोगोपचार इसके उपयोग हैं। कद तथा रंगों की विविधता इसका वैशिष्ट्य है। भू-दृश्य की सुन्दरता बढ़ाने, शादी-विवाह में मण्डप सजाने, देवोपासना, सम्मान आदि कार्यों में सदा बहार, अपेक्षाकृत दीर्घजीवी तथा सस्ता गेंदा अहम् भूमिका निभाता है। यह क्यारियों एवं हरबेसियस बॉर्डर के लिए उपयुक्त पौधा है। मुर्गियों के दाने में भी यह पीले वर्णक का अच्छा स्रोत है।भारत में अफ्रीकन गेंदा और फ्रेंच गेंदा की खेती की जाती है। इसे गुजराती में 'गलगोटा', मारवाड़ी में 'हंजारी गजरा फूल' भी कहा जाता है। पौधों की विभिन्न ऊँचाई एवं विभिन्न रंग-छटा के कारण भू-दृश्य की सुंदरता बढ़ाने में इसका बहुत अधिक महत्व है। इसके अन्य नाम चेंदुमली, टेगेटेस, गलगोटा/गलगोटिया (गुजराती), हंजारी गजरा फूल (मारवाड़ी), मेरिगोल्ड (अंग्रेजी) आदि हैं। इसे बगिया, छत, टेरेस, बालकनी आदि स्थानों पर जमीन या गमले में उगाया जा सकता है। गेंदे के फूल को सुखाकर उसके बीज बनाए, बोए-उगाए जा सकते हैं। गीली मिट्टी में यह कलम से भी ऊग जाता है। गेंदा नेपाल का सांस्कृतिक फूल है।
प्रकार
अफ्रीकी मेरी गोल्ड (गेंदा) का पौधा लगभग १ मीटर ऊँचा तथा फूल बहुदलीय चमकीले पीले या नारंगी रंग के होते हैं। फ्रेंच मेरिगोल्ड (गेंदी) का पौधा लगभग आधा मीटर ऊँचा, सघन तथा फूल बहुदलीय पीले-लाल-नारंगी मिश्रित रंग के होते हैं। सिग्नेट मेरिगोल्ड के फूल अपेक्षाकृत छोटे, नाजुक तथा एकल पंक्ति पंखुरियों युक्त पीले रंग के होते हैं। मैक्सिकन मिंट मेरिगोल्ड के पौधे, पत्तियाँ तथा फूल छोटे होते हैं इसका उपयोग रसोई में तथा औषधि के रूप में किया जाता है। लेमन जेम मेरिगोल्ड की खुशबू नीबू जैसी होती है। इसके चमकीले एकल पीले फूलों का उपयोग जड़ी-बूटी के रूप में अधिक होता है। मेक्सिको से आई टैगेट्स लेमोनी सुगंधित पत्तों तथा चमकीले पील-डेजी जैसे फूलों की सजावटी झाड़ी होती है।
बीजारोपण / पौधरोपण
गेंदे के विकसित फूल को धूप में सुखा लें। फूल को तोड़ कर की बीजनिकाल लें। गमले के पेंदी में छेद कर दें ताकि अधिक पानी बह सके। गमले या क्यारी में भुरभुरी मिट्टी की मोती सतह पर बीज फैलाकर मिट्टी की सतह बिछाकर ढाँक दें। इसे दबाना नहीं है। रोज हलम पानी छिड़कते रहें। कुछ दिनों में बीजों से अंकुर निकलेंगे। अंकुर बढ़कर लगभग ३'' लंबे हो जाएँ तो उन्हें अलग अलग लगा दें। गेंदे की मिट्टी नं होने चाहिए, अधिक पानी न दें। पौधों के बीच में ८'' से १०'' का अंतर रखें। मैंने प्लास्टिक शीशियों, पोलीथीन थैली, पुट्ठे के डब्बों आदि में भी गेंदे के पौधे उगाए है। गेंदा बारहमासी फूल है। इसे हल्की धूप चाहिए। गेंदे का पौधा कमजोर होता है। तेज हवा में पौधे की टहनियाँ टूट जाती हैं। पौधा ऊच हो तो उसे सहारा देना होता है। मैंने टूटी हुई टहनियों को कलम की तरह लगाकर भी पौधे तैयार किए हैं। कली को फूल बनकर खिलने और बढ़ने दें किंतु फूल की पत्तियाँ मुरझाने लगें तो फूल को पौधे सेअलग कर दें ताकि पौधे की ऊर्जा बचे तथा अनावश्यक भार से टहनी न टूटे। गेंदे के लिए पत्तियों, गोबर आदि की खाद उपयुक्त होती है। गेंदे की जड़ों में इतना ही पानी दें की मिट्टी नं रहे। अधिक पानी में पौधा सड़ सकता है।
लाभ
गेंदा अपनी जड़ों द्वारा जमीन में अफ्लाटर्थोनाईल रसायन छोड़कर निमॅटोड/सूत्रकृमि को नष्ट करता । इसके फूल मधुमक्खियों को आकर्षित करते कर परागीकरण में सहायक होते हैं। गेंदे के फूलों की गंध मच्छर, मक्खी आदि कीट-पतंगों को दूर भगाती है। गेंदे की पत्तियों का रस मलने से मधुमक्खी का दंश अपने आप बाहर निकल जाता है, दर्द और सुजन से राहत मिलती है। गेंदे के रंग-बिरंगे फूल सकर्तमाक ऊर्जा का प्रसारकर आपको खुशी देते हैं। वास्तु के अनुसार गेंदे के फूल सुंदरता और पवित्रता बढ़ाते हैं, विघ्नेश गणेश जी को गेंद प्रिय है। देवी को गेंदे का हार पहनाकर प्रसन्न किया जाता है। गेंदे का फूल साज-सज्ज में अधिक समय तक तरोताजा बना रहता है। गेंदे में ल्यूटिन होता है जो आँखों के लिए लाभदायक है।
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