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रविवार, 13 नवंबर 2022

दोहा, राम,

दोहा सलिला 

राम कथा 

वह नर हुआ सुरेश, राम कृपा जिस पर हुई। 

उससे खुद देवेश, करे स्पृहा निरंतर।।

कहें आंगिरस सत्य, राम कृष्ण दोउ एक हैं। 

वे परमेश अनित्य, वेणु छोड़ धनु कर गहें।। 

संगीता हर श्वास, जिसके मन संतोष है।

पूरी हो हर आस, सदानंद उसको मिले।।  

जब कृपालु हों राम, जय जयंत को तब मिले। 

प्रभु बिन विधना वाम, सिय अनंत गुण-धाम हैं।। 

कृष्ण कथा रवि-रश्मि, राम कथा आदित्य है।

प्रभु महिमा का काव्य, सच सच्चा साहित्य है।। 

भरद्वाज आश्रम चलें, राम कथा सुन धन्य। 

मूल्य आचरण में ढलें, जीवन बने प्रणम्य।।

करिए मंगल कार्य, बाधाएँ हों उपस्थित। 

करें विहँस स्वीकार्य, तजें न शुभ संकल्प हम।।

परखें आस्था दैव, किसकी कैसी भक्ति है?

विचलित हुआ न कौन?, जिसकी दृढ़ अनुरक्ति है।।

हों सात्विक तब लोग, संत रूप राजा रहे। 

तब सत्ता है रोग, अगर नहीं सद आचरण।।

हो शासक सामान्य, हो विशिष्ट किंचित नहीं। 

जनमत का प्राधान्य, राम राज्य तब हो यहीं।। 

नहीं किसी से बैर, सदा सभी से निकटता। 

तभी रहेगी खैर, जब शासक निष्पक्ष हो।। 

समरसता ही साध्य, कहें राम दें बैर तज। 

स्वामी-सेवक सम रहें, तभी सकेंगे ईश भज।।

राम सखा वर दीन, दीनों के प्रिय हो गए। 

बंधु मानकर दौड़ , भेंटें भुज भरकर भरत।। 

हैं परमेश्वर एक,  किन्तु विभूति अनंत हैं। 

हम मानव हों नेक, भिन्न भले ही पंथ हैं।। 

कोई ऊँच; न नीच, कण-कण में सिय-राम। 

देश-बाग दें सींच, फूले-फले सुदेश तब।।   

राजपुत्र होकर नहीं, जन-चयनित थे राम। 

जन आकांक्षा थी तभी, राम अवध-राजा हुए।।   

मानव है चैतन्य, प्रश्न करे; हल चाहता। 

क्यों जग में वैभिन्न्य, प्रभु से उत्तर चाहता।।

परम शक्ति भगवान्, सब कुछ करता है वही। 

रखें हमेशा ध्यान, जो करते भोगें 'सलिल'।। 

मनुज सोचता रहा, जाकर आते या नहीं?

एक नहीं मत रहा, विविध पंथ तब ही बने।।

भक्ति शक्ति अनुरक्ति, गुरु अनुकंपा से मिले।  

साध्य न होती मुक्ति, प्रभु सेवा ही साध्य हो।। 

सोच गहे आनंद, कामी नारी मिलन बिन। 

धन से रखता प्रेम, लोभी करता व्यय नहीं।। 

भक्त न साधे स्वार्थ, प्रेम अकारण ही करे।

लक्ष्य मात्र परमार्थ, कष्ट अगिन हँसकर सही।।  

चित्रकार हर चित्र, निजानंद हित बनाता। 

कब देखेगा कौन?, क्रय-विक्रय नहिं सोचता।। 

निष्ठा ही हो साध्य, बार-बार बदलें नहीं। 

अगिन न हों आराध्य, तभी भक्ति होती सफल।। 

तन न; साध्य हो आत्म, माय-छाया एक है। 

मूर्त तभी परमात्म, काया जब हो समर्पित।।

१३-११-२०२२ 

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