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गुरुवार, 24 नवंबर 2022

कृति चर्चा: नयी कहानी : संदर्भ शिल्प - डॉ. भारती सिंह

 कृति चर्चा: 

नयी कहानी : संदर्भ शिल्प - कहानी पर गंभीर विमर्श 

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

[कृति विवरण - नयी कहानी : संदर्भ शिल्प, समालोचना, डॉ. भारती सिंह, प्रथम संस्करण २०२२, आकार डिमाई,  पृष्ठ २१६, आवरण पेपरबैक बहुरंगी जैकेट सहित, मूल्य २२५/-, प्रकाशक- हिंदुस्तानी अकादमी प्रयागराज, कृतिकार संपर्क dr.bharti_singh@yahoo.com]

                    मनुष्य और कहानी का साथ चोली दामन का सा है। मनुष्य ने बोलना सीखने ही बात बनाना आरंभ कर दिया होगा जो कालांतर में पहले वाचिक और बाद में लिखित कहानी का रूप लेकर साहित्य की अग्रगण्य विधा के रूप में विश्व के हर क्षेत्र और हर बोली-भाषा में प्रतिष्ठित हो गई है।  'हरि अनंत हरिकथा अनंता' की उक्ति कहानी के लिए भी सत्य है। कहानी के अनेक रूप उसकी विकास यात्रा में विकसित हुए हैं, हो रहे हैं और होते रहेंगे। हर दशक में नई कहानी लिखी जाएगी और अगले दशक में पुरानी पड़ने लगेगी। ऐसा कहानी ही नहीं हर सृजन विधा के साथ होता है और  होने ही चाहिए, तभी विधा न केवल जिन्दा रहती है अपितु विकसित भी होती है। सतत परिवर्तनशील विधा होने के नाते कहानी के विषय, कथ्य, उद्देश्य, शिल्प, विधान आदि  हर तत्व में बदलाव होता रहता है। इन बदलावों पर सतर्क किन्तु पूर्वाग्रहविहीन दृष्टि रखकर अब तक हुए विकास का विश्लेषण गंभीर, गहन और व्यापक अध्ययन किए बिना संभव नहीं है। डॉ. भारती सिंह ने अपने शोध के लिए कहानी विशेषकर नई कहानी को चुनकर इस चुनौती से आँखें चार की हैं। इस साहस के लिए उन्हें बधाई। 

                    समालोचना एक ऐसी विधा है जिसके मानक और विधान सतत परिवर्तनशील होते हैं। एक कहानी एक विचारधारा के समालोचक को श्रेष्ठ प्रतीत होती है तो अन्य विचारधारा के समालोचक के लिए वह सामान्य या हे हो सकती है। वास्तव में ऐसा नहीं हो नहीं चाहिए, पर होता है क्योंकि समालोचक निष्पक्ष या तटस्थ दृष्टि से आकलन नहीं करता। हिंदी में समालोचक अपनी वैयक्तिक वैचारिक प्रतिबद्धता को अपने सलोचकीय कर्म पर हावी हो जाने देता है। इस वातावरण में यह निश्चित है कि डॉ. भारती जो भी मत प्रस्तुत करेंगी उसका मूल्याङ्कन समीक्षक अपने वैयक्तिक चिन्तन के आधार पर करेंगे, विषय के साथ हुए न्याय-अन्याय के आधार पर नहीं। भारती जी ने इस दूषित वातावरण में भी समालोचना को चुनने का साहस किया है।

                    विवेच्य २१६ पृष्ठीय कृति सात अध्यायों पारम्परिक कथा प्रतिमानों की निरंतरता और कहानी के नए प्रतिमान, स्वातंत्र्योत्तर रचना का समानांतर परिवेश (राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं नैतिक मूल्यों के संदर्भ में मोह भंग), मानव अस्मिता का प्रश्न और नयी कहानी, समानांतर सच्चाइयों का दवाब और नयी कहानी के कथानक प्रयोग, अभिव्यक्ति के नए मुहावरों की तलाश (नयी कहानी के भाषिक और शैलीगत प्रयोग), नयी कहानी की कथागत रूढ़ियाँ : गत्यवरोध (साठोत्तरी कहानी की संभावनाएँ) तथा नयी कहानी के स्थापित कथाकार (नयी कहानी के विशिष्ट हस्ताक्षर) में लिखी गई है।  अंत में उपसंहार तथा संदर्भ सूची ने पुस्तक की उपादेयता में वृद्धि की है। आचार्य वशिष्ठ नारायण त्रिपाठी ने ठीक ही आकलन किया है कि डॉ. भारती के अनुसार नई कहानी पहचान की पुरानी कसौटियों से भिन्न नई कसौटियों की अपेक्षा रखती है। देवेंद्र प्रताप सिंह के मत में प्रस्तुत शोध कृति नई कहानी के रचना विधान यानी शिल्पगत बदलावों की पड़ताल करती है। कथाकार राजगोपाल सिंह वर्मा के शब्दों में डॉ. भारती सिंह ने स्वातंत्र्योत्तर रचना का समानांतर परिवेश, मानव अस्मिता का परिवेश और नई कहानी की ऐतिहासिकता और संदर्भों की गहनता से परख की है।

                    किसी समालोचनात्मक कृति में कथ्य को तथ्यों पर आधारित होना चाहिए और निष्कर्ष निकलते समय सभी तथ्यों और तत्वों को ध्यान में रखा जाना चाहिए। शोध कार्य करते समय शोधार्थी पूर्णत: स्वतंत्र नहीं होता। वक टाँगे में जुटे घोड़े के समान निदेशक के मार्गदर्शन में उसके बताए अनुसार ही कार्य करता है। परोक्षत:, निदेशक की दृष्टि शोधार्थी पर आरोपित हो जाते है। इस सीमा में रहकर भारती जी ने प्रस्तुत पुस्तक में विषय का अध्ययन कर निष्कर्ष निकाले हैं तथापि उनकी पाठकीय और समीक्षकीय दृष्टि की सजगता, सटीकता और सामयिकता की झलक दृष्टव्य है। भारती द्वारा किये गए स्वतंत्र आकलन पर दृष्टिपात करें। 

                    'मुस्लिम और ईसाई समाजों की छाया हिन्दू समाज पर तो पड़ी ही है साथ ही साम्यवादी विचारोंवाले दाम्पत्य जीवन का जो स्वैराचारी चलन है उसका प्रभाव भी भारतीय समाज पर पर्याप्त रूप से पड़ रहा है।- पृष्ठ १५ भारतीय पौराणिक कथाओं में इंद्रादि देवताओं के स्वैराचार के संदर्भ में साम्यवाद को श्रेय देना विचारणीय है। 

                    जिन-जिन बाह्य दबावों का संवेदना के धरातल पर हमारी इन्द्रियों पर प्रभाव पड़ता है, वही रचनात्मक प्रक्रिया से गुजरकर बिम्ब रूप में ढल जाते हैं। यह प्रभाव कच्चे माल के रूप में उपयोग में लाया जाता है। -पृष्ठ २१ इस मत को प्रस्तुत करते समय कुछ उदाहरण दिए जा सकते तो मत संपुष्ट होता। 

                    कहानी में स्वातंत्र्योत्तर परिवेश की चर्चा करते समय काल व मूल्य वैविध्य, मूल्य और आधुनिकीकरण, आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक परिवेश की चर्चा है। यांत्रिक, व्यावसायिक,औद्योगिक व अंतर्राष्ट्रीय परिवेश को जोड़कर इसे पूर्णता दी जानी थी। 

                    मानवीय अस्मिता के संदर्भ में व्यक्ति के अस्तित्व का संकट पाश्चात्य साहित्य का दुष्परिणाम बताने का निष्कर्ष (पृष्ठ ६७) यह संकेतित करता है कि इस काल के पूर्व व्यक्ति के अस्तित्व का संकट नहीं था। इस निष्कर्ष को असंदिग्ध बनाने के लिए गहन पड़ताल की आवश्यकत है जो संभवत: शोध पत्र की सीमा के परे रहा हो। 

                    नई कहानी के कथानक संबंधी प्रयोगों के मूल में समानांतर सच्चाइयों का दबाव होने के संदर्भ में लेखिका का मत है -'नई कहानी ने संवेदना और संरचना के दो अनिवार्य मुद्दे अपने रचनात्मक विन्यास के लिए स्वीकार किए, वस्तु विन्यास की दृष्टि से प्रारंभ, मध्य और अंत की अनिवार्यता के के पूर्ण अस्वीकार में मात्र अभीष्ट अर्थ को प्रकाशित करनेवाले तत्वों के प्रयोग की स्थिति स्वीकार की गई.... घटनाएँ सर्वथा नए रूप में सम्मिलित हुईं। ये क्रमिक वर्णन की पूर्वनिर्धारित स्थिति में न घटकर बहुत हेर-फेर के साथ घटती हुई दिखाई पड़ीं किन्तु अपने इस रूप में भी ये अर्थ को अधिक प्रभावित रूप प्रदान करनेवाली सिद्ध हुईं।' - पृष्ठ १०५ इस निष्कर्ष के पूर्व अनेक कहानीकारों की कहानियों का विश्लेषण किया जाना निष्कर्ष को प्रामाणिक बनाता है।   

                     नई कहानी के भाषिक और शैलीगत प्रयोगों की चर्चा करते हुए भारती नई कविता आंदोलन की पृष्ठ भूमि को इसके उत्स का कारण ठीक ही बताती हैं। अमिधा के स्थान पर व्यंजना और लक्षणा का प्रयोग नवगीत की पहचान रहा है। यही प्रवृत्ति बाद में कहानी ने अंगीकार की। नई कहानी में प्रयोगों की बहुलता, सांकेतिक भाषा का प्रयोग, सटीक बिम्ब योजना, सहज लोक प्रचलित भाषा आदि तत्वों की विवेचना कहती है - 'हर कहानीकार आरंभ से ही अपने अलग व्यक्तित्व को लेकर चला और किसी किसी दूसरे या किन्हीं दूसरों के व्यक्तित्व में उसने अपने को खो जाने नहीं दिया।' - पृष्ठ १५९  निष्कर्ष की पृष्ठभूमि में २१४ संदर्भों की सूची इसे विश्वसनीयता प्रदान करती है। 

                    नई कहानी के सृजन पथ के गत्वयारोधों और भावी संभावनाओं के परिप्रेक्ष्य में  उनके यथर्थाधारित होने के बावजूद उनके सामाजिक प्रभाव पर पुनर्विचार (पृष्ठ १८५) किया जाना वास्तव में आवश्यक है। साहित्य  सामाजिक प्रभाव और साहित्य की सनातनता के परिप्रेक्ष्य में साहित्य में शुभत्व, शिवत्व तथा सुंदरत्व का होना भी अनिवार्य है। यह तथ्य स्पष्ट:न कहकर भी लेखिका इस और संकेत करती है। 

                     नई कहानी के विशिष्ट हस्ताक्षरों का चयन निर्विवाद हो ही नहीं सकता तथापि लेखिका ने संतुलित दृष्टिसे चयन कर निष्पक्षता प्रदर्शित की है। उपसंहार में हिंदी कहानी के भविष्य क्व संबंध में लेखिका स्वयं कुछ न कहकर लक्ष्मीनारायण लाल का एक कथन देकर समापन करती है , इसका कारण संभवत: यह हो कि वह स्वयं को कहानी के भविष्य के संबंध में कुछ कहने के लिए पर्याप्त वरिष्ठ न पाती हो कि उसकी बात को गंभीरता से लिया जाएगा। 

                    कथ्य और विषय वस्तु की दृष्टि से 'नई कहानी : संदर्भ शिल्प' पठनीय और मननीय कृति है। चन्द्रमा के दाग की तरह विराम चिह्नों, अनुस्वार और अनुनासिक, क्रियापदों के वाचिक रूप आदि के प्रति असावधानी खटकती है। गंभीर साहित्यिक कृतियों में हिंदी भाषा के मानक नियमों का पालन किया ही जाना चाहिए। 

संपर्क - विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१, चलभाष ९४२५१८३२४४, ईमेल salil.sanjiv@gmail.com     


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