आद्यक्षरी रचना
राजेंद्र निगम 'राज'
'रा' करता है राज दिलों पर
'जे' जेवर सम काव्य रचे।
'न्' से न्यून न हुआ काव्य-रस
'द्र'वित हुआ दिल, भाव बचे।।
'नि'बल सबल सब साथ रहें मिल
'ग'म पीकर दें बाँट हँसी।
'म'न की बात न हो मनमानी
'रा'ज तभी दे सके ख़ुशी।।
*
इंदु राज निगम
'इ' सको उसको घास न डाली।
'न्'याय किया है दिल के साथ।।
'दु'आ सुनी प्रभु जी ने मेरी
'रा'ह मिली रख ऊँचा माथ।। आद्यक्षरी रचना
'रा' करता है राज दिलों पर
'जे' जेवर सम काव्य रचे।
'न्' से न्यून न हुआ काव्य-रस
'द्र'वित हुआ दिल, भाव बचे।।
'नि'बल सबल सब साथ रहें मिल
'ग'म पीकर दें बाँट हँसी।
'म'न की बात न हो मनमानी
'रा'ज तभी दे सके ख़ुशी।।
*
'ज' य माला ले जीवन साथी
'नि'गम मिले गम मिटे सभी।
'ग'जब हुआ कविता कविता मिल
'म'मता-समता हुई अभी।।
***
दोहा सलिला
मन आँगन में इंदु हों, लेकर रश्मि अनेक
चित्र गुप्त साकार हों, जाग्रत रखें विवेक
राज करें राजेंद्र जी, रहें नि-गम हँस नित्य
बेगम बे-गम रह उन्हें, दें आनंद अनित्य
भेजें वे गुरु ग्राम खुद, रहें शहर में मस्त
कविता सुना सुना करें, जिसको चाहें त्रस्त
आम आदमी हम मिले, आ हमसे राजेंद्र
काश कभी निशि सकें मिल, आकर आप नरेंद्र
मन आँगन में इंदु हों, लेकर रश्मि अनेक
चित्र गुप्त साकार हों, जाग्रत रखें विवेक
राज करें राजेंद्र जी, रहें नि-गम हँस नित्य
बेगम बे-गम रह उन्हें, दें आनंद अनित्य
भेजें वे गुरु ग्राम खुद, रहें शहर में मस्त
कविता सुना सुना करें, जिसको चाहें त्रस्त
आम आदमी हम मिले, आ हमसे राजेंद्र
काश कभी निशि सकें मिल, आकर आप नरेंद्र
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें