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बुधवार, 23 नवंबर 2022

मुक्तक, गीत, लघुकथा, सरस्वती, बृज, सॉनेट


सॉनेट
आज
आज कह रहा जागो भाई!
कल से कल की मिली विरासत
कल बिन कहीं न कल हो आहत
बिना बात मत भागो भाई!

आज चलो सब शीश उठाकर
कोई कुछ न किसी से छीने
कोई न फेंके टुकड़े बीने
बढ़ो साथ कर कदम मिलाकर

आज मान आभार विगत का
कर ले स्वागत हँस आगत का
कर लेना-देना चाहत का

आज बिदा हो दुख मत करना
कल को आज बना श्रम करना
सत्य-शिव-सुंदर भजना-वरना
२३-११-२०२२
९४२५१८३२४४
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सरस्वती स्तवन
बृज
*
मातु! सुनौ तुम आइहौ आइहौ,
काव्य कला हमकौ समुझाइहौ।
फेर कभी मुख दूर न जाइहौ
गीत सिखाइहौ, बीन बजाइहौ।
श्वेत वदन है, श्वेत वसन है
श्वेत लै वाहन दरस दिखाइहौ।
छंद सिखाइहौ, गीत सुनाइहौ,
ताल बजाइहौ, वाह दिलाइहौ।
*
सुर संधान की कामना है मोहे,
ताल बता दीजै मातु सरस्वती।
छंद की; गीत की चाहना है इतै,
नेकु सिखा दीजै मातु सरस्वती।
आखर-शब्द की, साधना नेंक सी
रस-लय दीजै मातु सरस्वती।
सत्य समय का; बोल-बता सकूँ
सत-शिव दीजै मातु सरस्वती।
*
शब्द निशब्द अशब्द कबै भए,
शून्य में गूँज सुना रय शारद।
पंक में पंकज नित्य खिला रय;
भ्रमरों लौं भरमा रय शारद।
शब्द से उपजै; शब्द में लीन हो,
शब्द को शब्द ही भा रय शारद।
ताल हो; थाप हो; नाद-निनाद हो
शब्द की कीर्ति सुना रय शारद।
*
संजीव
२२-११-२०१९
***
लघुकथा
बदलाव का मतलब
*
जन प्रतिनिधियों के भ्रष्टाचरण, लगातार बढ़ते कर और मँहगाई, संवेदनहीन प्रशासन और पूंजीपति समर्थक नीतियों ने जीवन दूभर कर दिया तो जनता जनार्दन ने अपने वज्रास्त्र का प्रयोग कर सत्ताधारी दल को चारों खाने चित्त कर विपक्षी दल को सत्तासीन कर दिया।
अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में निरंतर पेट्रोल-डीजल की कीमत में गिरावट के बावजूद ईंधन के दाम न घटने, बीच सत्र में अधिनियमों द्वारा परोक्ष कर वृद्धि और बजट में आम कर्मचारी को मजबूर कर सरकार द्वारा काटे और कम ब्याज पर लंबे समय तक उपयोग किये गये भविष्य निधि कोष पर करारोपण से ठगा अनुभव कर रहे मतदाता को समझ ही नहीं आया बदलाव का मतलब।
​३-३-२०१६ ​
***
गीत:
किरण कब होती अकेली…
*
किरण कब होती अकेली?
नित उजाला बाँटती है
जानती है सूर्य उगता और ढलता,
उग सके फिर
सांध्य-बेला में न जगती
भ्रमित होए तिमिर से घिर
चन्द्रमा की कलाई पर,
मौन राखी बाँधती है
चाँदनी भेंटे नवेली
किरण कब होती अकेली…
*
मेघ आच्छादित गगन को
देख रोता जब विवश मन
दीप को आ बाल देती,
झोपड़ी भी झूम पाए
भाई की जब याद आती,
सलिल से प्रक्षाल जाए
साश्रु नयनों से करे पुनि
निज दुखों का आचमन
वेदना हो प्रिय सहेली
किरण कब होती अकेली…
*
पञ्च तत्वों में समाये
पञ्च तत्वों को सुमिरती
तीन कालों तक प्रकाशित
तीन लोकों को निहारे
भाईचारा ही सहारा
अधर शाश्वत सच पुकारे
गुमा जो आकार हो साकार
नभ को चुप निरखती
बुझती अनबुझ पहेली
किरण कब होती अकेली…
२२-११-२०१६
*
मुक्तक
काैन किसका सगा है
लगता प्रेम पगा है
नेह नाता जाे मिला
हमें उसने ठगा है
*
दिल से दिल की बात हो
खुशनुमा हालात हो
गीत गाये झूमकर
गून्जते नग्मात हो
२३-११-२०१४
***

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