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गुरुवार, 10 नवंबर 2022

निष्कलंक महादेव

 निष्कलंक महादेव 

गुजरात के भावनगर में कोलियाक तट से तीन किलोमीटर अंदर अरब सागर में स्थित है पांच स्वयंभू शिवलिंग रूपी 'निष्कलंक महादेव'। यहाँ अरब सागर की लहरें रोज शिवलिंगों का जलाभिषेक करती हैं। निष्कलंक महादेव के दर्शन एवं पूजन से मनुष्य के समस्त कलंकों का नाश हो जाता है और वह भक्त निष्कलंक हो जाता है। पूजन के बाद पांचों स्वयम्भू शिवलिंग एवं समस्त मंदिर सागर में समाहित हो जाते हैं। इस स्थान पर भोलेनाथ ने पांडवों को शिवलिंग के रूप में दर्शन  दिए थे। लोग पानी में पैदल चलकर शिव-दर्शन करने जाते है। उन्हें ज्वार के उतरने का इंतजार करना पड़ता है। भारी ज्वार के समय मंदिर की पताका और खंभा ही नजर आता है। इसे देखकर कोई अंदाजा भी नहीं लगा सकता की पानी के नीचे समुंद्र में महादेव का प्राचीन मंदिर स्थित हैं।

इस मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है। महाभारत के युद्ध में पांडवों ने कौरवों को मारकर युद्ध जीता। युद्ध समाप्ति के पश्चात पांडवों अपने सगे-संबंधियों की हत्या के पाप से छुटकारा पाने के लिए भगवान श्री कृष्ण से उपाय पूछा। श्री कृष्ण ने पांण्डवों को एक काला ध्वज ओर एक काली गाय सौंपी और पांडवों को गाय का अनुसरण करने को कहा तथा बताया कि जब ध्वजा और गाय दोनों का रंग काले से सफेद हो जाए तो समझ लेना कि तुम्हें पाप से मुक्ति मिल गई है तब वहाँ पर तुम सब भगवान शिव की तपस्या करना। पाँचों पांडव भगवान श्री कृष्ण के कथन अनुसार काली ध्वजा हाथ में लिए काली गाय का अनुसरण करने लगे। बाउट समय और कई स्थानों पर भटकने के बाद वर्तमान गुजरात में स्थित कोलियाक तट पर गाय और ध्वजा का रंग सफेद हो गया। पाँचों पांडव भाई वहीं भगवान शिव का ध्यान करते हुए तपस्या करने लगे।

उनकी तपस्या से खुश होकर भगवान भोलेनाथ ने पाँचों भाइयों को लिंग रूप में अलग-अलग दर्शन दिए जिनके सामने नंदी भी हैं। कोलियाक समुद्र तट से पूर्व की और 3 किलोमीटर अंदर अरब सागर में पाँचों शिवलिंग एक वर्गाकार चबूतरे पर स्थित हैं। इस चबूतरे पर एक छोटा सा सरोवर पांडव तालाब है। श्रद्धालु अपने हाथ-पैर धोकर शिवलिंगों की पूजा अर्चना करते हैं। यहाँ पांडवों को अपने भाइयों और सगे संबंधियों की हत्या के कलंक से मुक्ति मिली थी इसलिए इसे निष्कलंक महादेव कहते हैं। 


भाद्रवी मेला

अमावस के दिन इस मंदिर में भक्तों की विशेष भीड़ रहती है। पूर्णिमा और अमावस कोज्वार अधिक सक्रिय होने पर  उसके उतरने पर भक्तजन भगवान शिव का दर्शन करते है। भादों महीने की अमावस को यहाँ भाद्रवी मेला भरता है।लोक मान्यता है कि किसी प्रियजन की चिता की राख शिवलिंग पर लगाकार जल में प्रवाहित कर दें तो उसको मोक्ष मिल जाता है। मंदिर में भगवान शिव को राख, दूध, दही और नारियल चढ़ाए जाते है।

प्रमुख वार्षिक मेला ‘भाद्रवी’ भावनगर के महाराजा के वंशजों द्वारा मंदिर पर पताका फहराने से शुरू होता है और फिर यही पताका मंदिर पर अगले एक साल तक फहराती है। साल भर एक ही पताका लगे पर भी इस पताका को कोई नुकसान नहीं होता। वर्ष २००१ के विनाशकारी भूकंप में यहाँ ५०,००० लोग मारे गए थे पर पताका सुरक्षित रही। 

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