कुल पेज दृश्य

सोमवार, 5 अक्तूबर 2020

नागपंचमी

 बचपन में नागपंचमी नामक कविता पढ़ी और याद की थी. कहीं मिल सके तो फिर आनंद लेना चाहता हूँ. कुछ पंक्तियाँ अब भी याद हैं:

सूरज के आते भोर हुआ
लाठी लेझिम का शोर हुआ
यह नागपंचमी झम्मक झम
यह ढोल धमाका ढम्मक ढम
मर्दों की जब टोली निकली
यह चर्चा फैली गली-गली
कुश्ती है खूब अजब रंग की
कुश्ती है खूब अजब ढंग की
यह पहलवान अम्बाले का
यह पहलवान पटियाले का
ये दोनों दूर विदेशों से
लड़ आये हैं परदेशों में
उतरेंगे आज अखाड़े में
चंदन चाचा के बाड़े में
सुन समाचार दुनिया धाई
थी रेल-पेल आवाजाई
देखो ये धट के धट धाये
अद्भट चलते उद्भट आये
थी भारी भीड़ अखाड़े में
चन्दन चाचा के बाड़े में
कुछ हँसते से मुस्काते से
मस्तों का मान घटाते से
जब मांस पेशियाँ बल खातीं
तन पर मछलियाँ उछल आतीं
दोनों की जय बजरंग हुई
फिर दर्शक टोली दंग हुई
दो हाथ मिले, दृग चार हुए
तन से मन से तैयार हुए
यह मारा दांव इसे कसकर
वह दंग कि यह निकला बचकर
दंगल हो रहा अखाड़े में
चन्दन चाचा के बाड़े में

कोई टिप्पणी नहीं: