लघुकथा
नैतिकता का बोध
- रघुवीर सहाय
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एक यात्री ने दूसरे से कहा- "भाई ज़रा हमको भी बैठने दो।"
दूसरे ने कहा- "नहीं मैं आराम करूंगा।"
पहला आदमी खड़ा रहा ।उसे जगह नहीं मिली, पर वह चुपचाप रहा।
दूसरा आदमी बैठा रहा और देखता रहा। बड़ी देर तक वह उसे खड़े हुए देखता रहा। अचानक उसने उठकर जगह कर दी और कहा- "भाई! अब मुझसे बरदाश्त नहीं होता। आप यहां बैठ जाइए।"
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