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मंगलवार, 7 अप्रैल 2020

ख़बरदार कविता : कुण्डलिया

ख़बरदार कविता :
कुण्डलिया
बीस साल में जेल है, दो दिन में है बेल.
पकड़ो-छोडो में हुआ, चोर-पुलिस का खेल.
चोर-पुलिस का खेल, पंगु है न्याय व्यवस्था,
लाभ मिले शक का, सुधरे किस तरह अवस्था?
कहे सलिल कविराय, छूटता है क्यों रईस?
मारे-कुचले फिर भी नायक?, यही है टीस
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