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गुरुवार, 25 अप्रैल 2019

व्यंग लेख

हाय-हाय ये मजबूरी
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अभी २२ अप्रैल को विश्व पृथ्वी दिवस मनाया गया और आज आ धमका है विश्व मलेरिया दिवस। जो समझदार हो खुद-ब-खुद समझ ले कि पृथ्वी पर मलेरिया का राज्य था, है और रहेगा। फेंकू हो या पप्पू, दीदी हों या बुआ, साध्वी हों या अभिनेत्री अदना से दिखनेवाले मच्छर से पार नहीं पा सकतीं। लाख भुनभुनाएँ या गुनगुनाएँ, परमाणु बम बनाएँ या अंतरिक्ष में जाएँ, पहलवानी दाँव आजमाएँ या छप्पन इंची छाती का लोहा मनवाएँ मच्छर को कोई फर्क नहीं पड़ता।

मच्छर पक्का सिद्धांतवादी है। वह जानता है कि पूँजीवादी हो या समाजवादी, हिंदुत्वप्रेमी हो या मुस्लिमपरस्त,  अल्प संख्यक हो या बहुसंख्यक, पुरुष पीड़िता हो या स्त्री पीड़ित, भगवा हो या हरा उनमें कोई अंतर नहीं होता। सबका खून एक जैसा लाल होता है, सब सत्ता सुंदरी के दीवाने होते हैं, सब जनहित के नाम पर निज हित साधते हैं, सब स्वार्थपूर्ति न होने पर मेंढक को मात देते हुए यहाँ से वहाँ कूद जाते हैं, सब बंदर को पीछे छोड़ते हुए फलप्रद शाख की ओर छलाँग लगा लेते हैं, सब गिरगिट को चारों खाने चित्त करते हुए टोपी, झंडों और गमछों के  रंग बदल लेते हैं।

मच्छर तत्ववेत्ता है उसे भली-भाँति ग्यात है कि भारतवासी हर दिन भौं-भौं करें या में-में, काँव-काँव करें या टें-टें आतंकवादियों को कब्र में पहुँचाने के लिए एक हो जाते हैं। इतिहासविद मच्छर यह भी जानता है कि धर्म की अफीम की आदी ताकतवर भारतीय फौजों को गौओं के एक झुंड की आड़ लेकर बढ़ते मुट्ठी भर आक्रांताओं ने रौंद दिया था। इसलिए मच्छर मंत्रोच्चार करते हुए हमला करता है। प्रेमिका की तरह 'मधुर-मधुर मेरे दीपक जल, प्रियतम का पथ आलोकित कर' कहते हुए निकट आता है और फेरे पड़ते ही चंद्रमुखी से सूर्यमुखी होते हुए ज्वालामुखी होने के सनातन सत्य को जानते हुए चुंबन लेने की आड़ में डंक मार देता है। सनातनधर्मी मच्छर जन्म-जन्मांंतर तक संबंध निभाने में विश्वास करता है। वह 'बार-बार देखो हजार बार देखो, ये देखने की चीज है  हमारा दिलरुबा डार्लिंग हो' गाते हुए आता है और 'जागो सोनेवालों' की धुन गुनगुनाते हुए जगा जाता है।

मैं अग्येय होता तो साँप नहीं मच्छर का गैरराजनैतिक साक्षात्कार कर पूछता 'मच्छर!  तुम नेता तो हुए नहीं, चुनाव लड़ना तुम्हें नहीं भाया, एक बात पूछूँ?, उत्तर दोगे?, खून चूसना कहाँ से सीखा, डंक कहाँ से पाया?'

मच्छर टी.आर.पी. बढ़ाने के चक्कर में गुप्त जानकारी प्रकट करनेवाला टी.वी. एंकर तो है नहीं जो हर रहस्य बता तो देता है पर पचा या छिपा नहीं पाता और 'हम-तुम एक कमरे में बंद हों, और चाबी खो जाए' गुनगुनाते हुए परिक्रमा लगाना आरंभ कर देता है। मच्छर यह जानता है कि छुरी खरबूजे पर गिरे या खरबूजा छुरी पर कटता खरबूजा ही है, वे पति के साथ मार्केटिंग करें या पति उनके साथ बटुआ पति का ही खाली होता है,  आपको निशुल्क संगीत सुनाता है और आप उसे कर-पल्लवों को बीच में लेकर ताली बजा पाएँ इसके पहले ही फुर्र हो  जाता है।

मच्छर परोपकारी है। उसे भली-भाँति विदित है कि हम मानव 'देख न सकहिं पराई विभूती' के सच्चे वारिस हैं। इसलिए मौका मिलते ही घर के बँटवारा,  भाषा के प्रश्न, धर्म के सवाल, देश की सीमा,  विचारधारा आदि बहानों से खून बहाकर बलिदानी बनने के आदी हैं। हमें अपने आपका खून बहाने से रोकने के लिए बेचारा मच्छर हमारा खून चूसकर धन्यवाद की प्रत्याशा किए बिना 'कर्मण्ये वाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन' की वि रासत को ज़िंदा रखता है। यह हम कवियों की अहसान फ़रामोशी है कि हमने अब तक मच्छर नारायण की कथा, मच्छर चालीसा, मच्छर आरती आदि की रचना नहीं की।

कृतघ्नता की हद यह कि नारियाँ मच्छर एकादशी का व्रत तक नहीं करतीं। इस पाप से बचने का एकमात्र उपाय मच्छर जयंती पर शासकीय अवकाश और विश्व मच्छर दिवस मनाना ही है। आगामी आम चुनाव में किसी राजनैतिक दल द्वारा मच्छर हितों की रक्षा करने की घोषणा न करने के कारण नोटा का बटन दबाकर मच्छर हित संरक्षण करें। बोलिए मच्छर महाराज की जय।
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संवस
२२५-४-२०१९
७९९९५५९६१८

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