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मंगलवार, 23 अप्रैल 2019

मुक्तिका

मुक्तिका :
संजीव 'सलिल' 
*
राजनीति धैर्य निज खोती नहीं. 
भावनाओं की फसल बोती नहीं..
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स्वार्थ के सौदे नगद होते यहाँ.
दोस्ती या दुश्मनी होती नहीं..
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रुलाती है विरोधी को सियासत
हारकर भी खुद कभी रोती नहीं..
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सुन्दरी सत्ता की है सबकी प्रिया.
त्याग-सेवा-श्रम का सगोती नहीं..
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दाग-धब्बों की नहीं है फ़िक्र कुछ.
यह मलिन चादर 'सलिल' धोती नहीं..
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२३.४.२०१० 

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