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रविवार, 21 अप्रैल 2019

मुक्तक, द्विपदी

द्विपदी 
*
तितलियाँ खुद-ब-खुद चूमेंगी हमें 
चल महकते फूल बनें, खिल जाएँ
मुक्तक
*
दर्पण में जिसको देखा वह बिम्ब मात्र था 
और उजाले में केवल साया पाया. 
जब-जब बाहर देखा तो पाया मैं हूँ. 
जब-कब भीतर झाँका तो उसको पाया

*
दर्पण में जिसको देखा वह बिम्ब मात्र था
और उजाले में केवल साया पाया.
जब-जब बाहर देखा तो पाया मैं हूँ. 
जब-कब भीतर झाँका तो उसको पाया

*

२१.४.२०१७ 

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