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मंगलवार, 9 फ़रवरी 2016

muktak

मुक्तक
*
औरों की लिखी कम, अधिक अपनी लिखी कहो
पत्थर न बन, खिल कमल सम जलधार में बहो
तिनका भी बहुत डूबते को गर दे सहारा-
पहले जमा लो पाँव, बाँह बाद में गहो
*
हम खुशनसीब हों, जो तुमको मार सकें तो
तुम खुशनसीब हो, जो हमको मार सको तो
दोनों ही खुशनसीब हों वह रास्ता खोजो-
क्या बुरा गर एक-दूसरे को तार सको तो
*


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