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शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2016

navgeet

नवगीत
*
नयनों ने नैनों में
दुनिया को देखा
*
कितनी गहराई
कैसे बतलायें?
कितनी अरुणाई
कैसे समझायें?
सपने ही सपने
देखें-दिखलायें
मन-महुआ महकें तो 
अमुआ गदरायें
केशों में शोभित
नित सिंदूरी रेखा
नयनों ने नैनों में
दुनिया को देखा
*
सावन में फागुन या
फागुन में सावन
नयनों में सपने ही
सपने मनभावन
मन लंका में बैठा
संदेही रावन
आओ विश्वास राम
वरो सिया पावन
कर न सके धोबी अब
मुझ-तुम का लेखा
नयनों ने नैनों में
दुनिया को देखा
*

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