कुल पेज दृश्य

गुरुवार, 11 फ़रवरी 2016

laghukatha

लघुकथा
ह्रदय का रक्त
*
धाँय धाँय धाँय
चीख कर पखेरू, कुछ घंटों रुक-रुक कर होती रही गोलबारी, फिर छा गया सन्नाटा।
जवानों के भारी कदमों की आवाज़ के बीच सुदूर आसमान पर प्रगट हुए बालारुण सजल नयनों से दे रहे थे श्रद्धांजलि, संसद में सफेद वसनधारी लगा रहे थे एक-दूसरे पर आरोप, दूरदर्शन पर लगी थे होड़ सबसे पहले समाचार दिखाने की और भारत माता गर्वित हो समेट रही थी सफ़ेद चादर में अपने ह्रदय का रक्त।
*

कोई टिप्पणी नहीं: