नवगीत:
आँचल मैला
मत होने दो...
*
ममता का
सागर पाया है.
प्रायः भीगे
दामन में.
संकल्पों का
धन पाया है,
रीते-रिसते
आँचल में.
श्रृद्धा-निष्ठां को
सहेज लो,
बिखरा-फैला
मत होने दो.
आँचल मैला
मत होने दो...
*
माटी से जब
सलिल मिले तो,
पंक मचेगा
दूर न करना.
खिले पंक में
जब भी पंकज,
पुलक-ललककर
पल में वरना.
श्वास-चदरिया
निर्मल रखना.
जीवन थैला
मत होने दो.
आँचल मैला
मत होने दो...
*
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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गुरुवार, 8 अक्तूबर 2009
नवगीत: आँचल मैला मत होने दो
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aanchal maila mat hone do,
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sanjiv 'salil'
आचार्य संजीव वर्मा सलिल
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2 टिप्पणियां:
salil ji , maine bahut dino ke baad aapke blog par aa raha hoon , iske liye maafi chahunga , main sada hi aapko padhte rahta hoon aur jitna samaj me aata hai utna gyaan bhi praapt karne ki koshish karta hoon..
is navgeet me aapne dharti aur maata ke upyog se maan jeevan kaise jiya jaaye iska prayog kiya hai .. mujhe ye nav geet bahut pasand aaya ..
Meri badhai sweekar karen..
regards
vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com
कितने सुंदर भावों को पिरोया है आपने!
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