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गुरुवार, 8 अक्तूबर 2009

नवगीत: आँचल मैला मत होने दो

नवगीत:

आँचल मैला
मत होने दो...

*

ममता का
सागर पाया है.
प्रायः भीगे
दामन में.
संकल्पों का
धन पाया है,
रीते-रिसते
आँचल में.
श्रृद्धा-निष्ठां को
सहेज लो,
बिखरा-फैला
मत होने दो.
आँचल मैला
मत होने दो...

*

माटी से जब
सलिल मिले तो,
पंक मचेगा
दूर न करना.
खिले पंक में
जब भी पंकज,
पुलक-ललककर
पल में वरना.
श्वास-चदरिया
निर्मल रखना.
जीवन थैला
मत होने दो.
आँचल मैला
मत होने दो...

*

2 टिप्‍पणियां:

vijay kumar sappatti ने कहा…

salil ji , maine bahut dino ke baad aapke blog par aa raha hoon , iske liye maafi chahunga , main sada hi aapko padhte rahta hoon aur jitna samaj me aata hai utna gyaan bhi praapt karne ki koshish karta hoon..

is navgeet me aapne dharti aur maata ke upyog se maan jeevan kaise jiya jaaye iska prayog kiya hai .. mujhe ye nav geet bahut pasand aaya ..

Meri badhai sweekar karen..

regards

vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com

Shanno Aggarwal ने कहा…

कितने सुंदर भावों को पिरोया है आपने!